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कर्ज के जरिए कब्जा! जानिए चीन कैसे बना रहा 75 देशों पर अपनी पकड़

एक नई रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि चीन ने ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ (BRI) के तहत 75 गरीब देशों को अरबों डॉलर का कर्ज दिया है और अब उसी कर्ज की वसूली के लिए भारी दबाव बना रहा है. ये देश पहले ही आर्थिक संकट झेल रहे हैं, और अब चीन की कर्ज वापसी की नीति उनके विकास कार्यों जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा और जलवायु प्रयासों को भी प्रभावित कर रही है.

27 May, 2025
( Updated: 27 May, 2025
11:01 PM )
कर्ज के जरिए कब्जा! जानिए चीन कैसे बना रहा 75 देशों पर अपनी पकड़
दुनिया में ‘विकास’ और ‘सहयोग’ के नाम पर चीन जिस रणनीति के तहत आगे बढ़ रहा है, अब उसका असली चेहरा सामने आने लगा है. ऑस्ट्रेलिया के प्रतिष्ठित थिंकटैंक ‘Lowy Institute’ की नई रिपोर्ट में एक चौंकाने वाला खुलासा हुआ है. इस रिपोर्ट के मुताबिक, चीन ने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के जरिए 75 सबसे गरीब देशों को अरबों डॉलर का कर्ज दिया और अब चीन उसी पैसे की वसूली के लिए जबरदस्त दबाव बना रहा है. इन देशों को इस साल अकेले 22 अरब डॉलर की कर्ज किस्त चीन को चुकानी है. ये वही देश हैं जो पहले ही आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं और अब कर्ज की इस भारी भरकम रकम के चलते उनके लिए बुनियादी सेवाओं जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य और जलवायु संकट पर खर्च करना भी मुश्किल होता जा रहा है.

कर्ज वसूलने वाले के रूप में उभरता चीन, मददगार नहीं

Lowy Institute की रिपोर्ट बताती है कि चीन अब उन देशों के लिए मददगार नहीं रहा, जिन्हें उसने पहले खुद सहायता का वादा किया था. अब वह एक सख्त कर्ज वसूलने वाला देश बन चुका है. रिपोर्ट में यह भी साफ किया गया कि चीन ने ऐसे समय में कर्ज देना बंद कर दिया जब इन देशों को इसकी सबसे अधिक जरूरत थी. ये वही वक्त था जब कोविड और वैश्विक मंदी ने गरीब देशों की कमर तोड़ दी थी. इसके बावजूद चीन ने उन पर वसूली का शिकंजा कसना शुरू कर दिया, जो एक बड़ी वैश्विक चिंता का विषय बनता जा रहा है.

बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव की असलियत

चीन का BRI प्रोजेक्ट राष्ट्रपति शी जिनपिंग की सबसे बड़ी महत्वाकांक्षी योजना है. इस योजना के तहत चीन ने गरीब और विकासशील देशों में आधारभूत ढांचा जैसे पुल, सड़क, एयरपोर्ट, बंदरगाह, स्कूल और अस्पताल के नाम पर भारी निवेश किया. लेकिन यह निवेश सामान्य दरों पर नहीं, बल्कि ऊंचे ब्याज दरों पर दिया गया, जिससे ये देश धीरे-धीरे चीन के आर्थिक नियंत्रण में आ गए. अब स्थिति यह है कि चीन कर्ज की किस्त वसूलने के बहाने इन देशों की नीति, कूटनीति और संसाधनों पर अप्रत्यक्ष रूप से नियंत्रण पाने की दिशा में आगे बढ़ रहा है.

राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश
Lowy Institute की रिपोर्ट इस ओर भी इशारा करती है कि चीन केवल आर्थिक नहीं बल्कि राजनीतिक फायदे भी उठा रहा है. उदाहरण के तौर पर होंडुरास, निकारागुआ, सोलोमन आइलैंड्स, बुर्किना फासो और डोमिनिकन रिपब्लिक जैसे देशों ने ताइवान से अपने संबंध खत्म कर चीन से नजदीकी बढ़ाई. इसके 18 महीने के भीतर ही चीन ने इन देशों को भारी कर्ज दे दिया. इससे साफ होता है कि चीन कर्ज को एक रणनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहा है ताकि वह वैश्विक स्तर पर अपना प्रभाव और दबदबा बना सके.

हालांकि चीन को कर्ज देकर रणनीतिक फायदा जरूर मिल रहा है, लेकिन यह कहानी एकतरफा नहीं है. इन भारी भरकम कर्जों की वसूली को लेकर चीन की सरकार पर भी घरेलू दबाव बढ़ रहा है. रिपोर्ट बताती है कि चीन ने पाकिस्तान, मंगोलिया, कजाखस्तान, लाओस और इंडोनेशिया जैसे कई देशों को कर्ज दिया, जहां अब आर्थिक हालत इतने खराब हैं कि उन्हें कर्ज लौटाने में दिक्कत हो रही है. इससे चीन की अर्थव्यवस्था और उसकी वैश्विक साख पर भी नकारात्मक असर पड़ने का खतरा मंडरा रहा है.

बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव को लेकर दुनिया में जो उम्मीदें बांधी गई थीं, अब वे कड़वी सच्चाई में बदल रही हैं. चीन का यह प्रोजेक्ट अब एक विकास कार्यक्रम नहीं बल्कि रणनीतिक कर्ज-जाल बन चुका है, जिससे गरीब देशों की आर्थिक आज़ादी खतरे में पड़ गई है. अगर वैश्विक संस्थाएं समय रहते हस्तक्षेप नहीं करतीं, तो यह जाल और गहराता जाएगा. 

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