बलूचिस्तान ने किया पाकिस्तान से आज़ादी का ऐलान, क्या बलूचिस्तान बनेगा अगला बांग्लादेश?
बलूच नेता मीर यार बलूच ने पाकिस्तान से अलग राष्ट्र घोषित करते हुए अंतरराष्ट्रीय समुदाय और भारत से समर्थन की मांग की है. बलूचिस्तान में मानवाधिकार उल्लंघन को लेकर हालात बिगड़ते जा रहे हैं.

पाकिस्तान के कब्जे वाले बलूचिस्तान में दशकों से सुलग रही चिंगारी अब एक बड़ी ज्वाला बन चुकी है। बलूच नेता मीर यार बलूच ने पूरी दुनिया के सामने यह एलान कर दिया है कि "बलूचिस्तान पाकिस्तान नहीं है"। उन्होंने खुलेआम पाकिस्तान से आज़ादी की घोषणा की है और अंतरराष्ट्रीय समुदाय से हस्तक्षेप की अपील की है। मीर यार ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर एक जोरदार संदेश दिया जिसमें उन्होंने अपने लोगों की दुर्दशा का उल्लेख करते हुए दुनिया को चेताया कि अब वे चुप नहीं बैठेंगे।
बलूचों की आवाज बनकर उठे मीर यार
मीर यार बलूच का यह बयान केवल एक राजनीतिक बयान नहीं है, यह वर्षों की पीड़ा और अन्याय की गूंज है। उन्होंने स्पष्ट कहा कि बलूच अब केवल अपने अस्तित्व की लड़ाई नहीं लड़ रहे, बल्कि एक राष्ट्रीय पहचान और स्वतंत्रता की मुहिम में जुटे हैं। बलूचों का यह आंदोलन अचानक नहीं उठा, बल्कि यह पाकिस्तान द्वारा लगातार किए जा रहे दमन, जबरन गायब किए जाने, हत्या और मानवाधिकार उल्लंघन का परिणाम है। पाकिस्तान की सेना और खुफिया एजेंसियों द्वारा बलूचों को लंबे समय से प्रताड़ित किया जा रहा है, और अब जब विश्व की निगाहें वहां की स्थिति पर हैं, तो यह आंदोलन एक निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुका है।
One renowned journalist asked me.
— Mir Yar Baloch (@miryar_baloch) May 14, 2025
Question: Is the date of independence of Balochistan be declared when Paki6army leaves Baloch soil?
Me: We have already declared our independence on 11 August 1947 when Britishers were leaving Balochistan, and the subcontinent.
भारत और अंतरराष्ट्रीय समुदाय से मांगा समर्थन
बलूच नेताओं ने सिर्फ पाकिस्तान की आलोचना नहीं की, बल्कि भारत सहित पूरी दुनिया से स्पष्ट रूप से समर्थन की मांग भी की है। खास तौर पर मीर यार बलूच ने भारतीय नागरिकों, मीडिया, यूट्यूबर्स और बुद्धिजीवियों से आग्रह किया कि वे बलूचों को "पाकिस्तान के अपने लोग" कहना बंद करें। उन्होंने कहा कि बलूच कभी पाकिस्तान का हिस्सा नहीं रहे और ना ही वे पाकिस्तानी कहलाना चाहते हैं। उनका कहना है कि पाकिस्तान के "अपने लोग" वे पंजाबी हैं जिन्होंने कभी अत्याचार और हवाई बमबारी नहीं झेली। जबकि बलूचों ने अपना सब कुछ खोया है।
PoK को लेकर भारत के रुख का किया समर्थन
बलूचिस्तान से उठी इस आज़ादी की मांग सिर्फ एक सीमित संघर्ष नहीं है। मीर यार बलूच ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) को लेकर भारत के रुख का खुलकर समर्थन किया है। उन्होंने पाकिस्तान पर दो टूक कहा कि उसे पीओके को तत्काल खाली कर देना चाहिए। बलूच नेता ने यह भी चेतावनी दी कि यदि पाकिस्तान नहीं चेतता तो उसे 1971 के ढाका पराजय जैसा अपमान फिर से झेलना पड़ सकता है। यह बयान केवल एक क्षेत्रीय नेता का नहीं, बल्कि एक पूरे आंदोलन की चेतावनी है जो पाकिस्तान की सैन्य नीतियों और विस्तारवादी सोच के खिलाफ खड़ा हो चुका है।
क्या बलूचिस्तान बनेगा अगला बांग्लादेश?
इतिहास एक बार फिर दोहराया जा रहा है। जैसा कि 1971 में बांग्लादेश पाकिस्तान से अलग हुआ, अब बलूचिस्तान भी उसी राह पर चलता दिखाई दे रहा है। फर्क बस इतना है कि इस बार सूचना युग है, जहां सोशल मीडिया, डिजिटल मीडिया और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन सक्रिय हैं। मीर यार बलूच का यह बयान एक प्रकार की अंतरराष्ट्रीय अपील भी है, जिसमें वे संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय संघ और भारत से सीधे हस्तक्षेप की उम्मीद कर रहे हैं। बलूचिस्तान के नागरिक अब पाकिस्तान की गुलामी स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं और उनकी यह क्रांति धीरे-धीरे एक वैश्विक आंदोलन का रूप ले सकती है।
बलूचिस्तान की जमीनी हकीकत
बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा और संसाधनों से भरपूर प्रांत है। यहां गैस, खनिज, कोयला और तांबा जैसे संसाधनों की भरमार है। लेकिन विडंबना यह है कि बलूचों को इसका कोई लाभ नहीं मिलता। पाकिस्तान सरकार और सेना इस क्षेत्र का शोषण करती रही है, और स्थानीय लोगों को हाशिये पर रखकर जबरन सैन्य ठिकाने बनाए गए हैं। हाल ही में अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने रिपोर्ट दी है कि बलूचिस्तान में न्यायेतर हत्याएं, पत्रकारों की हत्या और विरोधियों को गायब करने की घटनाएं आम हैं। मीडिया की वहां कोई पहुंच नहीं है और दुनिया केवल सीमित जानकारी पर भरोसा करती है।
बलूचिस्तान की इस घोषणा को नजरअंदाज करना पाकिस्तान के लिए भारी पड़ सकता है। देश के भीतर पहले से ही आर्थिक संकट, राजनीतिक अस्थिरता और सेना की बढ़ती आलोचना से जूझ रहा इस्लामाबाद अब एक और मोर्चे पर घिरता जा रहा है। बलूचिस्तान की आज़ादी की मांग केवल एक विचार नहीं, बल्कि एक संगठित आंदोलन बन चुका है। अगर अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने इस पर चुप्पी साधे रखी तो यह आग पूरे दक्षिण एशिया को अपनी चपेट में ले सकती है।