ट्रंप ने बांग्लादेश की जिम्मेदारी मोदी को दी, जानें क्या है इसके राजनीतिक मायने?
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने हालिया बयान मेंं यह स्पष्ट रूप से कहा है कि बांग्लादेश के मामलों में हस्तक्षेप करने की जिम्मेदारी अब भारत की है। ऐसे में आइए जानते है भारत को अब दक्षिण एशिया में अपनी भूमिका को कैसे और मजबूत करना होगा। क्या है इसके राजनीतिक मायने?

भारत और बांग्लादेश का इतिहास बेहद गहरा और जटिल है। एक ऐसी स्थिति, जहां दोनों देशों के बीच अच्छे संबंध होने के बावजूद राजनीतिक घटनाओं की वजह से तनाव भी समय-समय पर देखने को मिलता है। जब बांग्लादेश के राजनीतिक संकट की बात आती है, तो यह सिर्फ बांग्लादेश तक ही सीमित नहीं रहता, बल्कि दक्षिण एशिया के अन्य देशों और वैश्विक शक्ति संतुलन पर भी इसका असर पड़ता है। और अब जब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बांग्लादेश के मामले में भारत को निर्णय लेने की जिम्मेदारी सौंपी है, तो यह सवाल उठता है कि क्या भारत इस जिम्मेदारी को निभाने में सफल होगा, और क्या इसके परिणाम भविष्य में क्षेत्रीय शक्तियों के बीच नए समीकरण को जन्म देंगे?
1971 में बांग्लादेश का इतिहास
1971 में जब बांग्लादेश, जिसे उस समय पूर्वी पाकिस्तान कहा जाता था, तब पाकिस्तान से स्वतंत्रता के लिए उसने संघर्ष शुरू किया था। भारत ने शेख मजीबुर्रहमान के नेतृत्व में इस आंदोलन का समर्थन किया। पाकिस्तान के सैन्य हमलों के बाद, भारत ने एक निर्णायक कदम उठाते हुए युद्ध में भाग लिया, जिसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश स्वतंत्रता हुआ। यह वह समय था, जब भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को हराया और बांग्लादेश को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में जन्म दिया। तब भारत की सैन्य शक्ति और सोवियत संघ का समर्थन पाकिस्तान के लिए बेहद भारी साबित हुआ।
लेकिन, यह पूरी लड़ाई न केवल सैन्य ताकत के लिए बल्कि कूटनीतिक संघर्ष के लिए भी महत्वपूर्ण थी। अमेरिका ने उस समय पाकिस्तान का समर्थन करते हुए भारत के खिलाफ अपना सातवां बेड़ा भेजा था। लेकिन शीत युद्ध के दौर के कारण, सोवियत संघ ने भारत का समर्थन किया। इस कड़ी में, अमेरिका का हस्तक्षेप असफल रहा और भारत ने न केवल युद्ध जीतकर बांग्लादेश को स्वतंत्रता दिलाई, बल्कि दक्षिण एशिया में अपनी ताकत भी साबित की।
ट्रंप: 'बांग्लादेश का फैसला मोदी करेंगे'
आज, जब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बांग्लादेश के मामले में भारत की भूमिका की बात की, तो यह बयान कई मायनों में महत्वपूर्ण है। ट्रंप ने कहा कि बांग्लादेश के मामले में अमेरिकी डीप स्टेट का कोई हस्तक्षेप नहीं होगा और अब यह भारत की जिम्मेदारी है कि वह इस मामले को सुलझाए। एक तरफ यह बयान भारत की बढ़ती शक्ति और प्रभाव का संकेत देता है, तो दूसरी तरफ, यह ट्रंप की नीति "अमेरिका फर्स्ट" को भी उजागर करता है।
यह बयान भारत के लिए एक मौका भी हो सकता है, क्योंकि बांग्लादेश, पाकिस्तान और अन्य सार्क देशों के मामलों में भारत की भूमिका पहले से ही महत्वपूर्ण रही है। भारत, दक्षिण एशिया की सबसे बड़ी शक्ति है, और इस क्षेत्र में स्थिरता और विकास की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इसलिए ट्रंप का यह बयान भारत के लिए एक प्रकार की कूटनीतिक स्वीकृति है कि वह अब दक्षिण एशिया में अमेरिकी सहयोग के बिना भी अपने निर्णयों को लागू कर सकता है।
बांग्लादेश की स्थिति, भारत की जिम्मेदारी
भारत को बांग्लादेश के मामले में अब पूरी तरह से सक्रिय भूमिका निभानी होगी। यह सच है कि भारत ने 1971 में बांग्लादेश की स्वतंत्रता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता ने स्थिति को बदल दिया है। वर्तमान में, बांग्लादेश में मोहम्मद यूनुस की सरकार है, जो एक अंतरिम सरकार के रूप में कार्य कर रही है। बांग्लादेश के अल्पसंख्यक समुदायों पर अत्याचार और सरकार की नीतियों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन बढ़ रहे हैं।
मारूफ रजा जैसे विदेशी मामलों के विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को इस अराजकता को रोकने के लिए सक्रिय होना चाहिए। शेख हसीना, बांग्लादेश की निर्वाचित प्रधानमंत्री, भारत में हैं और भारत को उन्हें सुरक्षित बांग्लादेश में स्थापित करने की दिशा में कदम उठाना चाहिए। यह कदम न केवल बांग्लादेश के लिए बल्कि पूरे दक्षिण एशिया के लिए महत्वपूर्ण होगा, क्योंकि बांग्लादेश में अस्थिरता का असर पड़ोसी देशों पर भी पड़ सकता है।
ट्रंप का 'अमेरिका फर्स्ट' और चीन का प्रभाव
हालांकि, ट्रंप के बयान का स्वागत किया जा सकता है, लेकिन क्या चीन चुप रहेगा? चीन, जो बांग्लादेश, श्रीलंका और पाकिस्तान में अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश कर रहा है, क्या भारत को अपने पड़ोसियों पर प्रभाव डालने का मौका देगा? यह सवाल उठता है। पंकज मोहन जैसे जानकारों का मानना है कि ट्रंप ने भारत को पूरी तरह से अकेला छोड़ दिया है, लेकिन क्या होगा अगर चीन भारत को चुनौती देने के लिए इन देशों के साथ मिलकर कोई कदम उठाए?
चीन का दक्षिण एशिया में प्रभाव लगातार बढ़ रहा है, और वह बांग्लादेश, पाकिस्तान और श्रीलंका जैसे देशों के साथ अपने आर्थिक और राजनीतिक संबंधों को मजबूत कर रहा है। यदि चीन ने बांग्लादेश में हस्तक्षेप किया, तो भारत के लिए स्थिति और भी जटिल हो सकती है। ऐसे में, ट्रंप के बयान के बाद भारत को अपनी कूटनीतिक चालों को और सशक्त बनाना होगा।
SAARC में भारत की कमजोर स्थिति
भारत के लिए यह भी महत्वपूर्ण है कि वह SAARC (South Asian Association for Regional Cooperation) के मंच को मजबूत बनाए। सुदीप ठाकुर जैसे विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को हमेशा इस संगठन का नेतृत्व करना चाहिए था, ताकि छोटे देशों को अपनी ताकत दिखाने का मौका न मिले। आज, बांग्लादेश में भारत विरोधी नारे लग रहे हैं और कई भारत विरोधी संगठन काम कर रहे हैं। यदि भारत ने SAARC का नेतृत्व किया होता, तो शायद इन देशों के भारत विरोधी रुख को रोका जा सकता था। हालांकि, पिछले कुछ सालों में SAARC कमजोर पड़ा है और इसके कारण भारत को पड़ोसी देशों के मामलों में अधिक चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।
आज, वैश्विक पटल पर भारत की भूमिका काफी महत्वपूर्ण हो गई है। एक तरफ जहां अमेरिका, चीन, रूस और अन्य शक्तियाँ अपनी नीतियों में बदलाव ला रही हैं, वहीं भारत को भी अपने कदमों को सतर्कता और समझदारी से बढ़ाना होगा। यदि ट्रंप ने बांग्लादेश के मामले में भारत को पूरी जिम्मेदारी दी है, तो यह एक अवसर है, लेकिन साथ ही यह चुनौती भी है कि भारत इसे किस तरह से संभालता है।
इस पूरी स्थिति में, अगर भारत सही रणनीति अपनाता है और बांग्लादेश में स्थिरता लाने के लिए सक्रिय कदम उठाता है, तो यह न केवल बांग्लादेश के लिए बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए फायदेमंद होगा।