भारत को रिझा रहा चीन! बदलते वैश्विक माहौल में भारतीय इंजीनियरों पर मेहरबान हुआ ड्रैगन
अमेरिका की टैक्स नीति के चलते चीन की वैश्विक व्यापार में पकड़ ढीली पड़ गई है, और अब वह भारत को अपना सबसे बड़ा बाजार बनाने की कोशिश में जुट गया है। जहां पहले चीन अपने उत्पादों और तकनीक को छिपाकर रखता था, वहीं अब वह भारतीय इंजीनियरों को खुद अपने देश बुलाकर मशीनों की ट्रेनिंग दे रहा है।

जिस चीन ने कभी अपने औद्योगिक राज़ों को दुनिया से छिपाकर रखा, वहीं अब वही चीन भारतीय इंजीनियरों को अपने देश बुलाकर मशीनों का हर पेंच-पेंच खोलकर दिखा रहा है. ग्लोबल बिजनेस की राजनीति अब करवट ले रही है और इसकी गूंज भारत-चीन व्यापारिक रिश्तों में साफ़ सुनाई देने लगी है.
अमेरिका की सख्त व्यापारिक नीतियों के चलते चीन की वैश्विक बाजारों में पकड़ पहले जैसी मजबूत नहीं रही. अमेरिकी सरकार ने चीन से आने वाले उत्पादों पर करीब 145 प्रतिशत टैक्स लगा दिया है. इससे चीन को बड़ा झटका लगा है. इस टैक्स के बाद चीन को अपने माल के लिए नया और भरोसेमंद बाजार चाहिए था. और उसकी नज़र भारत पर टिक गई.
कभी चीन अपने उत्पादों और तकनीक की जानकारी देने में बेहद संकोच करता था. लेकिन अब वही चीन भारतीय कंपनियों को न सिर्फ मशीन बेच रहा है, बल्कि उनके इंजीनियरों को बुलाकर खुद अपने देश में ट्रेनिंग भी दे रहा है. शेनझेन और ग्वांगझो जैसे चीन के टेक्नोलॉजी हब में अब भारतीय इंजीनियरों की आवाजाही बढ़ गई है. वहां उन्हें मशीनें खोलकर दोबारा असेंबल करना सिखाया जा रहा है.
सवाल ये है कि आख़िर ऐसा क्या बदल गया कि चीन को भारत के कारोबारियों को इतनी छूट देनी पड़ रही है? असल में, भारत में अब उद्यमी जागरूक हो गए हैं. वे जानते हैं कि एक बार मशीन खराब हो गई तो उसे ठीक कराने के लिए चीन के इंजीनियर बुलाना पड़ता है. और चीन से इंजीनियर को भारत लाने में वीजा की जटिलताएं हैं. नतीजा ये होता था कि मशीनें महीनों तक खराब पड़ी रहती थीं और कारोबारी को भारी नुकसान झेलना पड़ता था.
भारत के कारोबारी के नजरिए से नुकसान को देखने लगा चीन
हाल ही में एचएस ओवरसीज प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक नितिन अग्रवाल चीन गए थे. उन्होंने बताया कि उन्होंने चीन से प्लास्टिक मोल्डिंग की मशीनें खरीदी हैं. लेकिन इस बार डील में एक खास शर्त रखी गई. शर्त ये थी कि चीन की कंपनी भारतीय इंजीनियर को मशीन खोलने, फिट करने और तकनीकी जानकारी देने की पूरी ट्रेनिंग देगी ताकि भारत में मशीन में कोई भी समस्या आने पर वे खुद समाधान कर सकें.
नितिन ने बताया कि चीन की कंपनी इस शर्त पर तैयार हो गई है. केवल सॉफ्टवेयर प्रोग्रामिंग से जुड़ी कुछ सीमित जानकारी ही गोपनीय रखी गई है. लेकिन हार्डवेयर, फिटिंग, असेंबली – हर चीज़ की जानकारी खुले तौर पर दी जा रही है. इसका मतलब ये हुआ कि कुछ सालों में भारत खुद ही ऐसी मशीनें बनाने की स्थिति में आ सकता है. यानी चीन के इस ओपन ट्रेन्ड की वजह से भारत आत्मनिर्भरता की ओर एक और क़दम बढ़ा सकता है.
चीन का व्यवहार अब पहले जैसा नहीं रहा
एक और कारोबारी सचिन गुप्ता, जो कि फुटवियर उद्योग से जुड़े हैं, हाल ही में चीन से लौटे हैं. उन्होंने बताया कि भारत में हाल ही में फुटवियर पर क्वालिटी कंट्रोल के नए नियम लागू किए गए हैं. इसके चलते अब छोटे उद्यमी तैयार उत्पाद चीन से मंगाने के बजाय मशीनें और कच्चा माल मंगा रहे हैं ताकि उत्पादन भारत में ही हो सके.
चीन ने भी इस बदलाव को भांप लिया है और अब भारत को रिझाने की पूरी कोशिश में जुट गया है. सचिन ने बताया कि चीन की कंपनियां अब मशीन के साथ कच्चा माल भी बेहद सस्ते दामों पर देने को तैयार हैं. पहले जहां चीन कंपनियां भारतीय कारोबारियों को सीमित जानकारी देती थीं, अब वे उनकी हर शर्त मानने को तैयार हैं. असल में ये मजबूरी चीन की है, क्योंकि अमेरिका और यूरोपीय बाज़ारों में चीन की पकड़ ढीली पड़ रही है. अब वह भारत जैसे उभरते बाजार को खोना नहीं चाहता.
क्या यह एक रणनीतिक चाल है या फिर भारत की जीत?
ये सवाल उठता है कि चीन की यह उदारता सिर्फ व्यापारिक है या इसके पीछे कोई रणनीतिक सोच भी है? जानकारों की मानें तो चीन की इस नीति के पीछे उसकी आर्थिक मजबूरी है. लेकिन ये भी सच है कि इससे भारत को बड़ा फायदा मिल सकता है अगर भारतीय कारोबारी और सरकार इस मौके को समझदारी से भुनाएं.
हाल ही के आंकड़े भी इसी ओर इशारा करते हैं. वित्तीय वर्ष 2024-25 में भारत ने चीन से करीब 113 अरब डॉलर का आयात किया जबकि सिर्फ 14 अरब डॉलर का निर्यात किया. इस भारी असंतुलन को देखते हुए भी चीन चाहता है कि भारत से उसके रिश्ते और मज़बूत हों. अब भारतीय कंपनियों के पास एक सुनहरा मौका है – न सिर्फ सस्ती मशीन खरीदने का, बल्कि चीन से सीखकर भारत में ही उत्पादन बढ़ाने का भी.
चीन की मजबूरी, भारत के लिए एक मौके में बदल चुकी है. जहां एक ओर चीन अब भारतीय इंजीनियरों को मेहमान बना रहा है, वहीं दूसरी ओर भारतीय उद्योगपति अपने व्यापार को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं. यदि यही सिलसिला चलता रहा, तो आने वाले वर्षों में भारत न सिर्फ चीन से मशीन खरीदने वाला ग्राहक रहेगा, बल्कि एक मजबूत प्रतिस्पर्धी भी बन सकता है.