आरक्षण पर विवादित टिप्पणी: IAS संतोष वर्मा निलंबित, सरकार ने जारी किया कारण बताओ नोटिस
वर्मा के इस बयान पर एससी, एसटी और ओबीसी संगठनों के साथ-साथ ब्राह्मण समाज ने भी कड़ी आपत्ति जताई. सभी संगठनों ने बयान को 'संविधान का अपमान' और 'सामाजिक सद्भाव को नुकसान पहुंचाने वाला' बताया.
Follow Us:
मध्य प्रदेश सरकार ने आरक्षण पर विवादित टिप्पणी करने के मामले में वरिष्ठ आईएएस अधिकारी संतोष वर्मा पर सख्त कार्रवाई की है. सरकार ने उन्हें 'कारण बताओ नोटिस' जारी किया और बुधवार देर रात तत्काल प्रभाव से निलंबित भी कर दिया.
साहित्यिक कार्यक्रम में दिया विवादित बयान
संतोष वर्मा 2011 बैच के अधिकारी हैं और इस समय कृषि एवं किसान कल्याण विभाग में उप सचिव के पद पर तैनात थे.
घटना की शुरुआत 22 नवंबर को हुई, जब भोपाल में एक साहित्यिक कार्यक्रम के दौरान संतोष वर्मा ने आरक्षण व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए विवादित बयान दिया. उन्होंने कहा था कि आरक्षण ने अपना मूल उद्देश्य पूरा कर लिया है और अब इसे एक स्थायी राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है.
उनका एक और बयान सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, जिसमें कहा गया था, "आरक्षण का लाभ एक परिवार के सिर्फ एक सदस्य तक सीमित होना चाहिए, जब तक कि कोई ब्राह्मण अपनी बेटी मेरे बेटे को न दे दे या उससे रिश्ता न जोड़ ले."
संगठनों का विरोध, पुतला दहन और FIR की मांग
वर्मा के इस बयान पर एससी, एसटी और ओबीसी संगठनों के साथ-साथ ब्राह्मण समाज ने भी कड़ी आपत्ति जताई. सभी संगठनों ने बयान को 'संविधान का अपमान' और 'सामाजिक सद्भाव को नुकसान पहुंचाने वाला' बताया.
सरकार की त्वरित कार्रवाई
विभिन्न सामाजिक संगठनों के कार्यकर्ता भोपाल के वल्लभ भवन राज्य सचिवालय के बाहर इकट्ठा हुए, जहां उन्होंने संतोष वर्मा के पुतले जलाए और उनके खिलाफ एसएसी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत एफआईआर दर्ज करने की मांग की.
कार्यकर्ताओं के हाथों में पोस्टर थे, जिनमें 'अफसर संविधान नहीं बदल सकते' और 'बाबासाहेब की विरासत की रक्षा करो' लिखा हुआ था.
संतोष वर्मा को कारण बताओ नोटिस जारी
विवाद बढ़ने पर सरकार ने तुरंत कार्रवाई करते हुए संतोष वर्मा को कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया. नोटिस में कहा गया कि उनका बयान सामाजिक सौहार्द के लिए 'हानिकारक' है और यह अखिल भारतीय सेवा (आचरण) नियम, 1968 तथा अखिल भारतीय सेवा (अनुशासन और अपील) नियम, 1969 का उल्लंघन है.
नोटिस में स्पष्ट चेतावनी दी गई कि सात दिन में जवाब नहीं देने पर एकतरफा विभागीय कार्रवाई की जाएगी.
इसके एक दिन बाद, बुधवार देर रात सामान्य प्रशासन विभाग (जीएडी) ने उन्हें तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया.
“सिविल सर्वेंट सार्वजनिक आलोचना नहीं कर सकते” मंत्रालय अधिकारी
यह भी पढ़ें
एक वरिष्ठ मंत्रालय अधिकारी ने कहा, "कोई भी सिविल सर्वेंट, चाहे किसी भी रैंक का हो, संवैधानिक नीतियों की ऐसी सार्वजनिक आलोचना नहीं कर सकता जिससे सामाजिक ताना-बाना प्रभावित होता हो."
टिप्पणियाँ 0
कृपया Google से लॉग इन करें टिप्पणी पोस्ट करने के लिए
Google से लॉग इन करें