बांग्लादेश में हिंदू संत चिन्मय दास को मिली जमानत, देशद्रोह मामले में 6 महीने से जेल में थे बंद
बांग्लादेश की अदालत ने बुधवार को हिंदू संत चंदन कुमार धर उर्फ चिन्मय कृष्ण दास को देशद्रोह के एक मामले में जमानत दे दी. ISKCON के पुजारी चिन्मय कृष्ण दास को 6 महीने बाद जमानत मिल गई है. वे बांग्लादेश की जेल में बंद थे.
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बांग्लादेश की अदालत ने बुधवार को हिंदू संत चंदन कुमार धर उर्फ चिन्मय कृष्ण दास को देशद्रोह के एक मामले में जमानत दे दी. ISKCON के पुजारी चिन्मय कृष्ण दास को 6 महीने बाद जमानत मिल गई है. वे बांग्लादेश की जेल में बंद थे. चिन्मय दास को पिछले साल नवंबर में देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. चटगांव न्यायालय में जमानत पाने के कई असफल कोशिशों के बाद, चिन्मय दास के वकील ने आखिरकार ढाका में बांग्लादेश हाई कोर्ट में आज की सुनवाई में उन्हें जमानत दिलवाई है.
चिन्मय के वकील प्रोलाद देब नाथ ने 'द डेली स्टार' को बताया कि हाईकोर्ट के आदेश के बाद उनके जेल से रिहा होने की उम्मीद है. अगर सुप्रीम कोर्ट इस फैसले पर रोक नहीं लगाता है तो चिन्मय दास को रिहा कर दिया जाएगा. जस्टिस मोहम्मद अताउर रहमान और जस्टिस मोहम्मद अली रजा की पीठ ने चिन्मय की ओर से दायर जमानत याचिका पर सुनवाई के बाद यह आदेश पारित किया.
क्या है पूरा मामला?
रिपोर्ट के मुताबिक 23 अप्रैल को चिन्मय के वकील अपूर्व कुमार भट्टाचार्य ने उच्च न्यायालय की पीठ से अपने मुवक्किल को जमानत देने की प्रार्थना करते हुए कहा कि चिन्मय बीमार हैं और बिना सुनवाई के जेल में कष्ट झेल रहे हैं. पिछले साल 31 अक्टूबर को चटगांव के मोहोरा वार्ड बीएनपी के पूर्व महासचिव फिरोज खान ने कोतवाली पुलिस स्टेशन में मामला दर्ज कराया था. इसमें चिन्मय और 18 अन्य पर बंदरगाह शहर के न्यू मार्केट इलाके में 25 अक्टूबर को हिंदू समुदाय की एक रैली के दौरान राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करने का आरोप लगाया गया.
चिन्मय दास को जेल होने से हिंदू समुदाय में था भारी आक्रोश
26 नवंबर को चटगांव की एक अदालत ने चिन्मय को जेल भेज दिया, इससे एक दिन पहले राजधानी में उनकी गिरफ्तारी के बाद उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी गई थी. दास की गिरफ्तारी से व्यापक आक्रोश फैल गया था, कई लोगों ने उनकी तत्काल रिहाई की मांग की. दास बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के अधिकारों और सुरक्षा के लिए काम करने वालों में शामिल रहे हैं. वे बांग्लादेश में हिंदू समुदाय के मुखर समर्थक रहे हैं, उन्होंने अल्पसंख्यक संरक्षण कानून, अल्पसंख्यक उत्पीड़न के मामलों की त्वरित सुनवाई के लिए न्यायाधिकरण और अल्पसंख्यक मामलों के लिए समर्पित मंत्रालय की स्थापना जैसे प्रमुख सुधारों की मांग की है.
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बता दें कि मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में बांग्लादेश की अंतरिम सरकार पर यह आरोप लगता रहा है कि वह धार्मिक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा देने में नाकाम रही है. पिछले साल अगस्त में शेख हसीना की सरकार गिरने के बाद से देश में धार्मिक अल्पसंख्यक निशाने पर आ गए. भारत ने इस संबंध में बार-बार अपनी चिंता ढाका के साथ साझा की है. नई दिल्ली का कहना है कि अंतरिम सरकार को सभी अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए.
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