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अमेरिका के बाद भारत-पाक के बीच मध्यस्थता कराने को फड़फड़ा रहा चीन, जानिए क्या है मंशा?

चीन ने एक बार फिर दक्षिण एशियाई राजनीति में हस्तक्षेप करते हुए भारत और पाकिस्तान के बीच 'स्थायी युद्धविराम' की वकालत की है. पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री इशाक डार की बीजिंग यात्रा के दौरान चीन ने खुद को रचनात्मक भूमिका निभाने के लिए तैयार बताया.

19 May, 2025
( Updated: 20 May, 2025
09:59 AM )
अमेरिका के बाद भारत-पाक के बीच मध्यस्थता कराने को फड़फड़ा रहा चीन, जानिए क्या है मंशा?
भारत और पाकिस्तान के बीच लंबे समय से चले आ रहे सीमा विवाद और तनावपूर्ण रिश्तों के बीच चीन की नई कूटनीतिक सक्रियता ने एक बार फिर दक्षिण एशिया की राजनीति में हलचल मचा दी है. बीते सोमवार को चीन के विदेश मंत्रालय ने आधिकारिक बयान में कहा कि वह भारत और पाकिस्तान के बीच 'पूर्ण और स्थायी' युद्धविराम को सुनिश्चित करने के लिए एक रचनात्मक भूमिका निभाने को तैयार है. यह बयान ऐसे समय आया है जब पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री मोहम्मद इशाक डार चीन के तीन दिवसीय दौरे पर बीजिंग पहुंचे हैं. डार ने वहां चीन के वरिष्ठ राजनयिक वांग यी से मुलाकात की और दोनों देशों के रणनीतिक संबंधों को लेकर बातचीत की.

चीन-पाक रिश्तों की गर्माहट और भारत पर नजर

चीन-पाकिस्तान के रिश्ते हमेशा से 'सदाबहार साझेदारी' के रूप में पहचाने जाते रहे हैं. माओ निंग, जो चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता हैं, उन्होंने सोमवार को प्रेस ब्रीफिंग में स्पष्ट किया कि पाकिस्तान की यह यात्रा दोनों देशों के घनिष्ठ रिश्तों की पुष्टि करती है और चीन, पाकिस्तान को संपूर्ण समर्थन देने के लिए प्रतिबद्ध है. चीन इस समय पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था और इंफ्रास्ट्रक्चर में भारी निवेश कर रहा है, खासकर ‘चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर’ (CPEC) के तहत.

लेकिन इस बार चीन की टिप्पणी सिर्फ पाकिस्तान तक सीमित नहीं रही. माओ निंग ने कहा कि चीन भारत और पाकिस्तान दोनों के साथ संवाद बनाए रखना चाहता है और वह क्षेत्रीय शांति एवं स्थिरता के लिए सहयोग देने को तैयार है. उन्होंने भारत और पाकिस्तान को 'महत्वपूर्ण पड़ोसी' बताया और स्पष्ट किया कि चीन दोनों देशों के साथ संतुलित और लाभकारी रिश्ते चाहता है.

क्या है चीन की मंशा?

जब एक देश किसी क्षेत्रीय विवाद में मध्यस्थता की बात करता है, तो उसकी मंशा पर सवाल उठना स्वाभाविक है. चीन के बयान को भी इसी दृष्टि से देखा जा रहा है. विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिका के इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में बढ़ते प्रभाव के जवाब में चीन दक्षिण एशिया में अपनी पकड़ मजबूत करना चाहता है. पाकिस्तान के साथ गहरे संबंध और अब भारत-पाक के बीच युद्धविराम की बात करके चीन खुद को एक जिम्मेदार और तटस्थ शक्ति के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश कर रहा है.

हालांकि, भारत ने कई बार साफ किया है कि वह द्विपक्षीय मुद्दों में किसी तीसरे पक्ष की भूमिका को स्वीकार नहीं करता. खासकर जब बात जम्मू-कश्मीर या सीमा विवाद की हो, भारत की नीति हमेशा यह रही है कि पाकिस्तान से बातचीत तभी संभव है जब आतंकवाद पर ठोस कार्रवाई हो.

हथियारों की सप्लाई पर चीन की  चुप्पी 

जब चीन से यह सवाल पूछा गया कि क्या वह पाकिस्तान को हथियारों की आपूर्ति कर रहा है, खासकर संघर्ष के समय, तो इस पर चीनी प्रवक्ता ने कोई सीधा जवाब नहीं दिया. उन्होंने कहा कि यह सवाल उनके रक्षा मंत्रालय से किया जाना चाहिए. यह प्रतिक्रिया तब आई जब स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) की रिपोर्ट में बताया गया कि पाकिस्तान को सबसे अधिक हथियार चीन से ही मिलते हैं. इस मुद्दे पर चीन की चुप्पी उसकी रणनीतिक दोहरी भूमिका को दर्शाती है, जहां वह एक ओर मध्यस्थता की बात करता है और दूसरी ओर पाक को सैन्य समर्थन भी देता है.

भारत की प्रतिक्रिया क्या होनी चाहिए?

इस पूरे घटनाक्रम में भारत के लिए सबसे महत्वपूर्ण यह है कि वह अपने पड़ोस में बढ़ती चीनी सक्रियता को गंभीरता से ले. चीन की कूटनीतिक चालों से निपटने के लिए भारत को न केवल पाकिस्तान के साथ कूटनीतिक संतुलन बनाए रखना होगा, बल्कि अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ रणनीतिक गठजोड़ को भी मजबूत करना होगा. इसके अलावा, भारत को चाहिए कि वह वैश्विक मंचों पर अपने रुख को स्पष्टता और दृढ़ता से रखे कि वह किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को स्वीकार नहीं करता.

चीन द्वारा भारत और पाकिस्तान के बीच शांति और स्थायित्व की बात करना एक कूटनीतिक स्टेप तो है, लेकिन इसके पीछे की मंशा पर विश्वास करना मुश्किल है. खासकर तब जब चीन स्वयं पाकिस्तान को हथियारों की आपूर्ति करता रहा हो और CPEC जैसी परियोजनाएं भारत की संप्रभुता को चुनौती देती हों. चीन का यह नया रुख उस रणनीतिक गेम का हिस्सा हो सकता है जिसमें वह खुद को एक वैश्विक नेता और ‘शांति दूत’ के रूप में प्रस्तुत करना चाहता है. लेकिन भारत को अपने हितों की रक्षा के लिए सख्त और स्पष्ट नीति अपनानी ही होगी.

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