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जानें कौन थे PM मोदी के गुरु 'वकील साहब'... जिन्होंने उनके लिए खोले RSS के दरवाजे, सिखाए राजनीति के गुर

PM Modi's Birthday Special: नरेंद्र मोदी लंबे राजनीतिक सफर में गुजरात के मुख्यमंत्री से लेकर 2014 में पहली बार प्रधानमंत्री बने और 2024 में तीसरी बार सत्ता संभाली. उनके जीवन में खास भूमिका निभाई आरएसएस के वरिष्ठ स्वयंसेवक लक्ष्मणराव इनामदार ने, जिन्हें मोदी अपने गुरु मानते थे. अहमदाबाद के हेडगेवार भवन में बिताए दिनों से लेकर संघ प्रचारक और आगे चलकर देश के प्रधानमंत्री बनने तक, 'वकील साहब' कहे जाने वाले इनामदार का मार्गदर्शन मोदी की राजनीति की नींव बना.

17 Sep, 2025
( Updated: 05 Dec, 2025
04:57 PM )
जानें कौन थे PM मोदी के गुरु 'वकील साहब'... जिन्होंने उनके लिए खोले RSS के दरवाजे, सिखाए राजनीति के गुर
Narendra Modi (File Photo)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज अपना 75वां जन्मदिन मना रहे हैं. इस खास मौके पर देशभर में भारतीय जनता पार्टी की ओर से भव्य कार्यक्रम आयोजित किए गए हैं. गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में लंबी पारी खेलने के बाद साल 2014 में पहली बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने वाले नरेंद्र मोदी 2024 में लगातार तीसरी बार केंद्र की सत्ता संभाल रहे हैं. उनकी लोकप्रियता और नेतृत्व क्षमता पर दुनिया की निगाहें टिकी हैं. लेकिन मोदी जी की यह बुलंदियों तक की यात्रा सिर्फ उनके संघर्ष और मेहनत की नहीं है, बल्कि इसमें उनके ‘गुरु’ लक्ष्मणराव इनामदार का गहरा योगदान भी शामिल है.

पीएम मोदी के गुरु कौन थे?

नरेंद्र मोदी के शुरुआती जीवन में आरएसएस के वरिष्ठ प्रचारक लक्ष्मणराव इनामदार, जिन्हें संघ परिवार में सभी 'वकील साहब' कहकर पुकारते थे, उनकी जिंदगी का अहम हिस्सा बने. यही वह शख्स थे जिन्होंने पहली बार नरेंद्र मोदी के लिए संघ के दरवाजे खोले. हेडगेवार भवन, अहमदाबाद के कमरे नंबर-3 में मोदी का ठिकाना हुआ करता था, जबकि कमरे नंबर-1 में उनके गुरु लक्ष्मणराव इनामदार रहते थे. एक शिष्य और गुरु के बीच यह रिश्ता समय के साथ इतना गहरा हो गया कि मोदी ने हमेशा उन्हें अपने जीवन का मार्गदर्शक माना.

इनामदार का संघ से था खास नाता

लक्ष्मणराव इनामदार का जन्म 1917 में महाराष्ट्र के खाटव गांव में हुआ था. दस बच्चों वाले एक साधारण परिवार में पले-बढ़े इनामदार ने 1943 में पुणे यूनिवर्सिटी से कानून की पढ़ाई पूरी की और तभी से आरएसएस से जुड़ गए. उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भी हिस्सा लिया और हैदराबाद के निजाम के खिलाफ आंदोलन में अग्रिम पंक्ति में खड़े रहे. अविवाहित जीवन जीते हुए उन्होंने खुद को पूरी तरह संघ के काम के लिए समर्पित कर दिया.

मोदी और इनामदार की पहली मुलाकात

नरेंद्र मोदी और लक्ष्मणराव इनामदार की पहली मुलाकात 1960 के दशक की शुरुआत में वडनगर में हुई थी. उस समय युवा नरेंद्र मोदी अपने गुरु की वाक्पटुता और कार्यशैली से बेहद प्रभावित हुए. बाद में जब मोदी घर छोड़कर अहमदाबाद पहुंचे और अपने चाचा की चाय की दुकान पर काम करने लगे, तब उनकी जिंदगी में इनामदार फिर लौटे. यह वह दौर था जब मोदी एक तरह की उलझन में थे, लेकिन गुरु के मार्गदर्शन ने उन्हें नया रास्ता दिखाया.

हेडगेवार भवन में गुरु के साथ बिताया समय 

अहमदाबाद स्थित हेडगेवार भवन में नरेंद्र मोदी और उनके गुरु का रिश्ता और गहरा होता गया. मोदी सुबह जल्दी उठकर भवन की सफाई करते, चाय बनाते और अपने गुरु के कपड़े धोते. इस दौरान उन्होंने नजदीक से देखा कि इनामदार किस तरह संगठन को मजबूत करते थे. हमेशा सफेद धोती-कुर्ता पहनने वाले इनामदार सादगी की मिसाल थे. वह खूब पढ़ते थे, रेडियो पर बीबीसी सुनते थे और योग-प्राणायाम से खुद को स्वस्थ रखते थे.

 

मोदी कब बने संघ के प्रचारक?

साल 1972 में इनामदार ने नरेंद्र मोदी को औपचारिक रूप से संघ का प्रचारक नियुक्त किया. यही नहीं, उन्होंने मोदी को पढ़ाई जारी रखने के लिए प्रेरित किया और राजनीति विज्ञान में बीए की डिग्री हासिल करने के लिए तैयार किया. उन्होंने कहा, 'नरेंद्र भाई, ईश्वर ने तुम्हें कई गुण उपहार में दिए हैं, तुम आगे क्यों नहीं पढ़ते?' वकील साहब ने अपने शिष्य को दिल्ली यूनिवर्सिटी के कोर्स की सामग्री लाकर दी. 1973 में मोदी ने राजनीति विज्ञान में बीए की डिग्री हासिल कर ली. यही वह मोड़ था जब नरेंद्र मोदी का जीवन नई दिशा में बढ़ा. एंडी मरीनो ने अपनी किताब नरेंद्र मोदीः ए पॉलिटिकल बायोग्राफी में लिखा है कि 'वकील साहब ने मोदी के जीवन में पिता की जगह ले ली थी.'

आपातकाल का कठिन समय

1975 में जब देश में आपातकाल लगा तो संघ पर भी प्रतिबंध लग गया. ऐसे में मोदी और उनके गुरु भूमिगत हो गए. मोदी ने पुलिस से बचने के लिए कभी सिख का तो कभी संन्यासी का भेष धारण किया. इनामदार ने भी कुर्ता-पायजामा पहनना शुरू कर दिया. दोनों ने मिलकर संघ कार्यकर्ताओं को संगठित रखने का बड़ा काम किया. यही वह संघर्ष था जिसने मोदी को संगठन की गहराई समझने और मजबूत नेता बनने में मदद की.

गुरु का निधन से मोदी के जीवन में आया खालीपन

1980 के दशक की शुरुआत में लक्ष्मणराव इनामदार को कैंसर हो गया और 1984 में उनका निधन हो गया. नरेंद्र मोदी के लिए यह व्यक्तिगत रूप से बड़ा आघात था. उन्होंने अपने गुरु की डायरी और कागजात आज तक संभाल कर रखे हैं. एक बार उन्होंने कहा था, 'जब मैं संघ का काम करता था, तब लक्ष्मणराव इनामदार ही थे, जिनसे मैं अपनी हर बात साझा करता था. उनके न रहने के बाद मैंने अपने सोचने की प्रक्रिया को ऑटोपायलट पर डाल दिया."

प्रधानमंत्री आवास से जुड़ी याद

कम ही लोग जानते हैं कि नरेंद्र मोदी पहली बार प्रधानमंत्री आवास में 2001 में कदम रख चुके थे, जब वे भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव थे. उस समय उन्होंने अपने गुरु इनामदार पर लिखी किताब का विमोचन कराने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से निवेदन किया था. शायद तब उन्होंने सोचा भी नहीं होगा कि आने वाले समय में यही आवास उनका स्थायी निवास बन जाएगा.

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बता दें कि नरेंद्र मोदी का 75वां जन्मदिन केवल एक राजनीतिक नेता के जीवन का जश्न नहीं है, बल्कि यह उस यात्रा का प्रतीक भी है जिसमें संघर्ष, सादगी और गुरु-शिष्य का गहरा संबंध शामिल है. लक्ष्मणराव इनामदार ने नरेंद्र मोदी को सिर्फ राजनीति ही नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला भी सिखाई. आज जब पूरा देश प्रधानमंत्री मोदी का जन्मदिन मना रहा है, तब उनके गुरु ‘वकील साहब’ का योगदान याद करना भी उतना ही जरूरी है. यही वह रिश्ता है जिसने एक साधारण स्वयंसेवक को देश का प्रधानमंत्री बनाने की नींव रखी.

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