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क्या आपका देश दूसरे देश की एयरलाइंस पर लगा सकता है बैन? पढ़ें विस्तार से

क्या कोई देश किसी अन्य देश की एयरलाइंस पर बैन लगा सकता है? यह सवाल सुनने में जितना सरल है, इसका जवाब उतना ही जटिल।
क्या आपका देश दूसरे देश की एयरलाइंस पर लगा सकता है बैन? पढ़ें विस्तार से
अंतरराष्ट्रीय हवाई यात्रा की दुनिया में आए दिन ऐसी घटनाएं होती हैं जो चर्चा का विषय बन जाती हैं। इनमें से एक सवाल जो अक्सर उठता है, वह है - क्या कोई देश दूसरे देश की एयरलाइंस पर बैन लगा सकता है? अगर हां, तो इसके पीछे के नियम क्या हैं, और इस फैसले का प्रभाव कितना बड़ा होता है? यह सवाल सुनने में जितना साधारण लगता है, इसका जवाब उतना ही जटिल है। आइए, इस विषय पर गहराई से चर्चा करते हैं और समझते हैं कि आखिर ऐसा क्यों और कैसे होता है।

एयरलाइंस पर बैन का अधिकार किसके पास है?
हर देश के पास अपनी सीमाओं के भीतर एयरस्पेस (वायु क्षेत्र) पर पूर्ण नियंत्रण होता है। अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत कोई भी देश अपनी सुरक्षा, संप्रभुता, और कानूनों की रक्षा के लिए किसी भी विदेशी एयरलाइंस पर प्रतिबंध लगा सकता है। यह अधिकार शिकागो कन्वेंशन 1944 से प्राप्त होता है, जो अंतरराष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (ICAO) द्वारा नियंत्रित है।

शिकागो कन्वेंशन के अनुच्छेद 6 के तहत, किसी भी विदेशी एयरलाइंस को किसी देश के एयरस्पेस का उपयोग करने के लिए उसकी अनुमति लेनी होती है। अगर किसी देश को लगता है कि कोई एयरलाइंस उसके नियमों का पालन नहीं कर रही, सुरक्षा को खतरा पैदा कर रही, या कूटनीतिक विवाद का कारण बन रही है, तो वह उस एयरलाइंस पर बैन लगा सकता है।

क्यों लगता है एयरलाइंस पर प्रतिबंध?

एयरलाइंस पर बैन लगाने के पीछे कई कारण हो सकते हैं। इनमें मुख्य रूप से सुरक्षा, राजनीतिक विवाद, पर्यावरणीय उल्लंघन, और आर्थिक मुद्दे शामिल हैं। जैसे अगर किसी देश को लगता है कि कोई एयरलाइंस उसकी सुरक्षा के लिए खतरा है, तो वह उस पर तुरंत प्रतिबंध लगा सकता है। उदाहरण के तौर पर, कई देशों ने कुछ एयरलाइंस को प्रतिबंधित किया है क्योंकि वे ICAO के सुरक्षा मानकों का पालन नहीं करतीं। एयरलाइंस पर बैन लगाने के पीछे राजनीतिक कारण भी हो सकते हैं। जैसे 2021 में, बेलारूस के एक विमान को जबरन लैंड कराने के बाद यूरोपीय संघ ने बेलारूस की एयरलाइंस 'बेलाविया' पर प्रतिबंध लगा दिया था। आजकल पर्यावरणीय मुद्दे भी महत्वपूर्ण हो गए हैं। अगर कोई एयरलाइंस पर्यावरण मानकों का उल्लंघन करती है, तो उस पर बैन लगाया जा सकता है। कई बार देशों के बीच व्यापारिक प्रतिस्पर्धा की वजह से भी एयरलाइंस पर प्रतिबंध लगते हैं। यह एक तरह का 'एयर ट्रैफिक वार' भी कहलाता है।

हाल ही में रूस-यूक्रेन संघर्ष के दौरान, अमेरिका और यूरोपीय संघ ने रूसी एयरलाइंस 'एअरोफ्लोट' पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसके पीछे कारण था रूस की आक्रामक नीतियां और अंतरराष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन। इसके अलावा साल 2020 में, यूरोपीय संघ ने पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइंस (PIA) पर प्रतिबंध लगा दिया क्योंकि उनके पायलटों के लाइसेंस फर्जी पाए गए। वही साल 1980 के दशक में, भारत और सऊदी अरब के बीच वाणिज्यिक उड़ानों को लेकर विवाद हुआ था। भारत ने कुछ समय के लिए सऊदी एयरलाइंस पर प्रतिबंध लगाया।

क्या होता है बैन का असर?

जब किसी देश पर एयरलाइंस बैन लगता है, तो इसका प्रभाव उस देश और एयरलाइंस दोनों पर पड़ता है। एयरलाइंस को अपनी उड़ानों को रोकना पड़ता है, जिससे उनकी आय प्रभावित होती है। वहीं, यात्रियों को दूसरे विकल्प तलाशने में परेशानी होती है। इसके अलावा, यह प्रतिबंध देशों के बीच कूटनीतिक संबंधों को भी प्रभावित करता है। जैसे रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों ने उसकी अर्थव्यवस्था और कूटनीति को झटका दिया।

बैन हटाने की प्रक्रिया क्या है?

अगर किसी एयरलाइंस को बैन से बाहर आना है, तो उसे संबंधित देश या संगठन के मानकों को पूरा करना होता है। यह प्रक्रिया कभी-कभी लंबी और जटिल हो सकती है। उदाहरण के लिए, पाकिस्तान एयरलाइंस पर लगे प्रतिबंध को हटाने के लिए उन्हें यूरोपीय संघ के सुरक्षा मानकों को पूरा करना होगा। एयरलाइंस पर बैन लगाना कोई सामान्य प्रक्रिया नहीं है। यह तब किया जाता है जब इसके पीछे ठोस कारण हों। अंतरराष्ट्रीय उड्डयन संगठनों और देशों को चाहिए कि वे इन मुद्दों को बातचीत और सहयोग से हल करें।

किसी भी देश के पास यह अधिकार है कि वह अपनी सुरक्षा और संप्रभुता के लिए दूसरे देश की एयरलाइंस पर बैन लगा सकता है। इसके पीछे सुरक्षा, राजनीतिक विवाद, पर्यावरणीय उल्लंघन और आर्थिक कारण हो सकते हैं। हालांकि, इसका प्रभाव सिर्फ एयरलाइंस पर ही नहीं, बल्कि यात्रियों और अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर भी पड़ता है।
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