1972 के बाद पाकिस्तान ने LoC को तोड़ने की करी कोशिश, जानें सियाचिन से कारगिल तक की पूरी कहानी
कैसे पाकिस्तान ने LOC को बदलने की कोशिश की और भारत ने ऑपरेशन मेघदूत और कारगिल युद्ध के माध्यम से इन प्रयासों को नाकाम किया। यह कहानी सियाचिन ग्लेशियर पर भारतीय सेना की रणनीति, कारगिल युद्ध की पृष्ठभूमि और दोनों देशों के बीच तनाव की जड़ों को उजागर करती है।

भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव कोई नया नहीं है, लेकिन कुछ घटनाएं ऐसी रही हैं जिन्होंने दोनों देशों के रिश्तों को हमेशा के लिए बदल कर रख दिया. 1971 के युद्ध के बाद जो शिमला समझौता हुआ था, उसने एक सीमा खींची थी 'लाइन ऑफ कंट्रोल' यानी एलओसी. पर पाकिस्तान ने दो बार इसे एकतरफा तरीके से बदलने की कोशिश की. पहली बार सियाचिन में और दूसरी बार कारगिल में. आज हम आपको लेकर चलेंगे एक ऐसे रोमांचक सफर पर, जहां बहादुरी, चालाकी और बलिदान की अनसुनी कहानियां दबी पड़ी हैं.
1971 युद्ध के बाद का नया समीकरण
1971 के युद्ध में पाकिस्तान की करारी हार हुई थी और इसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश का जन्म हुआ था. इस युद्ध के सात महीने बाद, जुलाई 1972 में, भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने शिमला समझौते पर हस्ताक्षर किए. इस समझौते में तय हुआ कि दोनों देश किसी भी विवाद को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाएंगे और युद्ध विराम रेखा को 'लाइन ऑफ कंट्रोल' का नाम दिया जाएगा. लेकिन पाकिस्तान ने इस समझौते का सम्मान नहीं किया. उसने कई बार एलओसी को अपने हिसाब से बदलने की कोशिश की, जिसमें सबसे पहली कोशिश सियाचिन ग्लेशियर में हुई.
20,000 फीट की ऊंचाई पर लड़ी गई जंग
1949 के कराची समझौते में भारत और पाकिस्तान की सेनाओं के बीच जो युद्ध विराम रेखा खींची गई थी, वह एनजे 9842 नामक बिंदु पर आकर खत्म हो जाती थी. उसके बाद के क्षेत्र को 'बर्फ से ढका और दुर्गम इलाका' मानते हुए खुला छोड़ दिया गया था.
लेकिन 1970 के दशक के अंत में कुछ ऐसा हुआ जिसने सबका ध्यान इस क्षेत्र की ओर खींचा. भारतीय सेना के हाई-एल्टीट्यूड वारफेयर स्कूल के कमांडर कर्नल नरेंद्र 'बुल' कुमार के पास दो जर्मन पर्वतारोही आए. उनके पास जो नक्शा था, उसमें सियाचिन ग्लेशियर को पाकिस्तान का हिस्सा दिखाया गया था. इस खुलासे ने भारत की नींद उड़ा दी. जांच में पता चला कि पाकिस्तान अपनी ओर से ग्लेशियर में विदेशी पर्वतारोहण दलों को अनुमति देकर वहाँ पर अपना दावा मजबूत करने की चाल चल रहा था.
कर्नल कुमार ने स्थिति की गंभीरता को समझा और सेना के उच्चाधिकारियों को चेताया. भारतीय सेना ने तुरंत सियाचिन पर अपने अधिकार को मजबूत करने का फैसला किया. 13 अप्रैल 1984 को 'ऑपरेशन मेघदूत' के तहत भारतीय सैनिकों ने बर्फीली चोटियों पर कब्जा कर तिरंगा फहराया. भारत ने सिया ला, बिलाफोंड ला और गायोंग ला जैसे महत्वपूर्ण दर्रों को कब्जे में ले लिया. पाकिस्तान ने इसका विरोध करते हुए कई बार हमले किए लेकिन हर बार उसे मुंह की खानी पड़ी.
बाना सिंह का शौर्य और ऑपरेशन राजीव
1987 में पाकिस्तान ने 'कायद पोस्ट' से भारतीय 'सोनम पोस्ट' पर गोलीबारी शुरू कर दी. इससे भारतीय सैनिकों की आपूर्ति बाधित हो गई थी. इसके जवाब में भारत ने 'ऑपरेशन राजीव' शुरू किया. नायक सूबेदार बाना सिंह के नेतृत्व में भारतीय सैनिकों ने भीषण संघर्ष के बाद कायद पोस्ट पर कब्जा कर लिया. इस अद्वितीय वीरता के लिए बाना सिंह को भारत का सर्वोच्च वीरता पुरस्कार 'परमवीर चक्र' प्रदान किया गया. आज उस पोस्ट का नाम 'बाना पोस्ट' है, जो भारतीय शौर्य का प्रतीक है.
कारगिल... पाकिस्तान की दूसरी नापाक साजिश
सियाचिन में हार का बदला लेने के लिए पाकिस्तान ने एक और बड़ी साजिश रची. 1999 में तत्कालीन पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ ने 'ऑपरेशन कोह-ए-पैमा' की योजना बनाई. मकसद था - कारगिल सेक्टर में एलओसी पार करके भारतीय क्षेत्र पर कब्जा करना और श्रीनगर-लेह हाईवे (NH-1A) को काटकर सियाचिन में भारतीय सेना की आपूर्ति बंद कर देना.
पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय वेशभूषा में पहाड़ों की चोटियों पर कब्जा कर लिया. शुरुआत में भारत को इसकी भनक नहीं लगी क्योंकि सर्दियों में ये क्षेत्र आमतौर पर वीरान रहते थे. 3 मई 1999 को पहली बार बटालिक सेक्टर में घुसपैठ की खबर मिली. फिर धीरे-धीरे अन्य क्षेत्रों में भी घुसपैठ का पता चला. जब भारत को पूरी सच्चाई का अहसास हुआ, तब तक पाकिस्तानी घुसपैठिए ऊंची चोटियों पर मजबूत हो चुके थे.
भारत ने तुरंत जवाबी कार्रवाई शुरू की. 'ऑपरेशन विजय' के तहत भारतीय सेना और वायुसेना ने मिलकर भीषण युद्ध छेड़ दिया. दुर्गम पहाड़ियों पर चढ़ाई करना और दुश्मनों को खदेड़ना एक बेहद कठिन कार्य था. लेकिन भारतीय जवानों ने अदम्य साहस दिखाया. करीब दो महीने चले इस संघर्ष में भारत ने एक-एक चोटी वापस अपने कब्जे में ली. इस युद्ध में 527 भारतीय जवान वीरगति को प्राप्त हुए लेकिन देश की अखंडता अक्षुण्ण रही. कारगिल युद्ध ने पाकिस्तान की नीयत को पूरी दुनिया के सामने उजागर कर दिया. अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने पाकिस्तान की कड़ी निंदा की और भारत की स्थिति को सही ठहराया.
आज फिर वही पुरानी साजिशें?
हाल ही में, जब भारत ने जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद सिंधु जल संधि पर पुनर्विचार करने का निर्णय लिया, तो पाकिस्तान ने धमकी दी कि वह शिमला समझौते को "निलंबित" कर सकता है. इस बयान से स्पष्ट है कि पाकिस्तान आज भी वही मानसिकता रखता है जो उसने सियाचिन और कारगिल के समय अपनाई थी. लेकिन आज का भारत 1984 या 1999 वाला भारत नहीं है. अब भारत हर चुनौती का मुंहतोड़ जवाब देने में सक्षम है. पाकिस्तान को यह समझना होगा कि सीमा पर की गई कोई भी नापाक हरकत उसे भारी पड़ेगी.
सियाचिन और कारगिल भारत की वीरता और दृढ़ निश्चय के अमर प्रतीक हैं. ये घटनाएं सिर्फ युद्ध नहीं थीं, बल्कि हमारे सैनिकों के अद्भुत साहस, बलिदान और देशभक्ति की अमर गाथाएं हैं. पाकिस्तान ने दो बार एलओसी बदलने की कोशिश की, लेकिन हर बार उसे हार और अपमान ही हाथ लगा.
आज जब हम सियाचिन और कारगिल के बलिदानों को याद करते हैं, तो गर्व से सीना चौड़ा हो जाता है. हमारे सैनिकों ने न केवल भारत की सीमाओं की रक्षा की बल्कि यह भी साबित कर दिया कि भारत के आत्मसम्मान के साथ कोई समझौता नहीं किया जा सकता.