Advertisement

शशि थरूर ने इमरजेंसी पर लिखा आर्टिकल, कहा- आज का भारत 1975 का भारत नहीं; आपातकाल के तीन सबक भी गिनाए

शशि थरूर ने लिखा कि पचास साल पहले प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की ओर से लगाए गए आपातकाल ने दिखाया था कि कैसे आज़ादी को छीना जाता है. इसके अलावा और भी कई बातें लिखी जिससे कांग्रेस पर ही सवाल खड़े हो रहे हैं. पढ़िए लेख में थरूर ने क्या लिखा.

10 Jul, 2025
( Updated: 05 Dec, 2025
07:47 PM )
शशि थरूर ने इमरजेंसी पर लिखा आर्टिकल, कहा- आज का भारत 1975 का भारत नहीं; आपातकाल के तीन सबक भी गिनाए

पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल की कड़ी आलोचना करते हुए कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने कहा कि यह उदाहरण है कि किस तरह स्वतंत्रता को अक्सर छीना जा सकता है. उन्होंने यह भी कहा कि आपातकाल यह दिखाता है कि उस दौर में दुनिया मानवाधिकारों के हनन से किस हद तक अनजान रही. 1975 की इमरजेंसी पर लिखे अपने लेख में थरूर ने इंदिरा गांधी के इस फैसले की तीखी आलोचना की है."

लोकतंत्र के समर्थक रहें सतर्क प्रोजेक्ट सिंडीकेट की तरफ से प्रकाशित लेख में थरूर ने कई बड़ी बातें लिखी हैं. उन्होंने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सत्तावादी नजरिये ने सार्वजनिक जीवन को डर और दमन की स्थिति में धकेल दिया. थरूर ने लिखा कि पचास साल पहले प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की ओर से लगाए गए आपातकाल ने दिखाया था कि कैसे आज़ादी को छीना जाता है, शुरू में तो धीरे-धीरे, भले-बुरे लगने वाले मकसद के नाम पर छोटी-छोटी लगने वाली आजादियों को छीन लिया जाता है. इसलिए यह एक ज़बरदस्त चेतावनी है और लोकतंत्र के समर्थकों को हमेशा सतर्क रहना चाहिए.

कठोर कदम जरूरी थे- थरूर 
थरूर ने लिखा, 'इंदिरा गांधी ने इस बात पर जोर दिया कि कठोर कदम जरूरी थे, सिर्फ आपातकाल की स्थिति ही आंतरिक अव्यवस्था और बाहरी खतरों से निपट सकती थी, और अराजक देश में अनुशासन और दक्षता ला सकती थी.' आपको बता दें कि जून 1975 से मार्च 1977 तक करीब दो साल तक चले आपातकाल में नागरिक स्वतंत्रताएं निलंबित कर दी गईं और विपक्षी नेताओं को जेल में भर दिया गया. उन्होंने कहा कि अनुशासन और व्यवस्था की चाहत अक्सर बिना कहे ही क्रूरता में तब्दील हो जाती थी, जिसका उदाहरण इंदिराजी के बेटे संजय गांधी की ओर से चलाए गए जबरन नसबंदी अभियान थे, जो गरीब और ग्रामीण इलाकों में केंद्रित थे, जहां मनमाने लक्ष्य हासिल करने के लिए ज़बरदस्ती और हिंसा का इस्तेमाल किया जाता था. 

इमरजेंसी में हजारों लोग हुए बेघर 
उन्होंने कहा कि दिल्ली जैसे शहरी केंद्रों में बेरहमी से की गई झुग्गी-झोपड़ियों को ढहाने की कार्रवाई ने हज़ारों लोगों को बेघर कर दिया और उनके कल्याण की कोई चिंता नहीं की गई. उन्होंने लिखा कि आपातकाल ने इस बात का ज्वलंत उदाहरण पेश किया कि लोकतांत्रिक संस्थाएं कितनी कमज़ोर हो सकती हैं, यहां तक कि ऐसे देश में भी जहां वे मज़बूत दिखती हैं. इसने हमें याद दिलाया कि एक सरकार अपनी नैतिक दिशा और उन लोगों के प्रति जवाबदेही की भावना खो सकती है जिनकी वह सेवा करने का दावा करती है.

लोकतांत्रिक स्तंभों को खामोश कर दिया गया
वरिष्ठ कांग्रेस नेता थरूर ने यह भी बताया कि किस तरह अहम लोकतांत्रिक स्तंभों को खामोश कर दिया गया और हिरासत में यातनाएं दी गईं. एक्स्ट्रा ज्यूडिशियल हत्याएं बड़े पैमाने पर की गईं, जिससे उन लोगों के लिए 'काले सच' की तस्वीर सामने आई, जिन्होंने सत्ता को चुनौती देने की हिम्मत दिखाई थी.

यह भी पढ़ें

थरूर ने कहा कि न्यायपालिका भी भारी दबाव के आगे झुक गई, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने बंदी प्रत्यक्षीकरण और नागरिकों के स्वतंत्रता के अधिकार को निलंबित कर दिया. उन्होंने कहा, 'पत्रकार, कार्यकर्ता और विपक्षी नेता सलाखों के पीछे पाए गए. व्यापक संवैधानिक उल्लंघनों ने मानवाधिकारों के हनन की एक भयावह सीरीज को जन्म दिया. आज का भारत ज्यादा मजबूत अपने लेख में थरूर ने कहा कि आज का भारत 1975 का भारत नहीं है. हम ज्यादा आत्मविश्वासी, ज्यादा समृद्ध और कई मायनों में ज्यादा मजबूत लोकतंत्र हैं. फिर भी आपातकाल के सबक चिंताजनक रूप से प्रासंगिक बने हुए हैं. सत्ता को केंद्रीकृत करने, आलोचकों को चुप कराने और संवैधानिक सुरक्षा उपायों को दरकिनार करने का लालच कई रूपों में उभर सकता है. उन्होंने कहा कि अक्सर राष्ट्रीय हित, इस अर्थ में आपातकाल को एक जबरदस्त चेतावनी के रूप में काम करना चाहिए और लोकतंत्र के समर्थकों को हमेशा सतर्क रहना चाहिए.

टिप्पणियाँ 0

LIVE
Advertisement
Podcast video
'मुसलमान प्रधानमंत्री बनाने का प्लान, Yogi मारते-मारते भूत बना देंगे इनका’ ! Amit Jani
Advertisement
Advertisement
शॉर्ट्स
वेब स्टोरीज़
होम वीडियो खोजें