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महाराष्ट्र में नया नियम, लाइफ-टाइम ट्रस्टियों की नियुक्ति पर पाबंदी, जानें क्या है नया रूल

सरकार का यह फैसला सिर्फ टाटा ट्रस्ट्स तक सीमित नहीं है, बल्कि यह देशभर के सभी बड़े पब्लिक ट्रस्ट्स के लिए एक नया मानक तय करेगा. इससे ट्रस्टों के कामकाज में पारदर्शिता आएगी और किसी एक व्यक्ति या समूह के हाथ में शक्ति केंद्रित नहीं रहेगी.

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13 Nov 2025
( Updated: 11 Dec 2025
06:43 AM )
महाराष्ट्र में नया नियम, लाइफ-टाइम ट्रस्टियों की नियुक्ति पर पाबंदी, जानें क्या है नया रूल
Image Source: Social Media

Maharashtra: महाराष्ट्र सरकार ने महाराष्ट्र पब्लिक ट्रस्ट्स (संशोधन) अध्यादेश 2025 जारी कर एक बड़ा बदलाव किया है. इस नए नियम के तहत अब किसी भी ट्रस्ट में कुल बोर्ड सदस्यों में से सिर्फ एक-चौथाई सदस्य ही आजीवन ट्रस्टी बनाए जा सकेंगे. यानी अगर किसी ट्रस्ट में आठ सदस्य हैं, तो उनमें से सिर्फ दो लोगों को ही लाइफटाइम ट्रस्टी का दर्जा मिलेगा. यह फैसला खास तौर पर इसलिए चर्चा में है क्योंकि यह टाटा ट्रस्ट्स के अक्टूबर 2024 में लिए गए उस निर्णय के विपरीत है, जिसमें सभी मौजूदा ट्रस्टियों को आजीवन नियुक्त करने का फैसला लिया गया था. 

टाटा ट्रस्ट्स की संरचना पर पड़ेगा असर


सरकार के इस नए आदेश का सीधा असर देश के दो सबसे बड़े और प्रभावशाली ट्रस्टों सर रतन टाटा ट्रस्ट (SRTT) और सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट (SDTT) पर पड़ेगा. दोनों ट्रस्टों में इस समय छह-छह सदस्य हैं. यानी अब इनमें से केवल दो ही लोग आजीवन ट्रस्टी रह सकते हैं. हाल ही में एसडीटीटी ने वेणु श्रीनिवासन को लाइफटाइम ट्रस्टी नियुक्त किया था, लेकिन यह फैसला अध्यादेश लागू होने से ठीक पहले लिया गया था. वहीं, नोएल टाटा को पहले ही आजीवन ट्रस्टी बना दिया गया था. अब नए नियम लागू होने के बाद इन नियुक्तियों की स्थिति पर सवाल उठ सकते हैं.


अब ट्रस्टी रहेंगे केवल पांच साल के लिए


इस अध्यादेश के अनुसार, अगर किसी ट्रस्ट की डीड में ट्रस्टी के कार्यकाल का जिक्र नहीं है, तो अब ट्रस्टी का कार्यकाल अधिकतम पांच साल का होगा. पांच साल की अवधि पूरी होते ही ट्रस्टी का पद स्वतः खत्म हो जाएगा. हालांकि, यदि बोर्ड चाहे तो उसी व्यक्ति को दोबारा नियुक्त किया जा सकता है. सरकार का कहना है कि यह बदलाव ट्रस्टों में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने के लिए किया गया है, ताकि कोई व्यक्ति लंबे समय तक पद पर रहकर निर्णयों पर हावी न हो सके.


टाटा ट्रस्ट्स के लिए नई चुनौतियां


टाटा ट्रस्ट्स, जो कि टाटा संस में 66% हिस्सेदारी रखता है, अब इस अध्यादेश के बाद अपनी गवर्नेंस नीति में कई बदलाव करने को मजबूर होगा. विशेषज्ञों का मानना है कि यह नियम रतन टाटा के बाद ट्रस्ट में बढ़ते केंद्रीकरण को सीमित करने की दिशा में एक अहम कदम है. अब ट्रस्ट को अपने बोर्ड की संरचना, ट्रस्टी नियुक्ति की प्रक्रिया और कार्यकाल से जुड़ी नीतियों में सुधार करना होगा.


पारदर्शिता और जवाबदेही की दिशा में कदम

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सरकार का यह फैसला सिर्फ टाटा ट्रस्ट्स तक सीमित नहीं है, बल्कि यह देशभर के सभी बड़े पब्लिक ट्रस्ट्स के लिए एक नया मानक तय करेगा. इससे ट्रस्टों के कामकाज में पारदर्शिता आएगी और किसी एक व्यक्ति या समूह के हाथ में शक्ति केंद्रित नहीं रहेगी. यह कदम उन सभी संस्थाओं के लिए भी मिसाल बनेगा जो सार्वजनिक हित के कामों से जुड़ी हैं.

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