भारत ने पाकिस्तान को किया बेनकाब, IMF फंड से आतंक को मिल रही ताकत, मतदान से भी बनाई दूरी
अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक बार फिर भारत ने पाकिस्तान को आईना दिखा दिया है। इस बार मंच था अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की वह महत्वपूर्ण बैठक, जिसमें पाकिस्तान के लिए दो नए बेलआउट पैकेज पर चर्चा होनी थी। जब चर्चा शुरू हुई, तो भारत ने न सिर्फ पाकिस्तान की आर्थिक साख पर सवाल उठाया, बल्कि यह भी स्पष्ट कर दिया कि वह ऐसे किसी निर्णय का हिस्सा नहीं बन सकता, जो आतंकवाद को परोक्ष रूप से बढ़ावा देने का खतरा पैदा करे।

पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था लंबे समय से ICU में है. हर कुछ सालों में जब विदेशी मुद्रा भंडार खाली होने लगता है, जब जनता की जेब में पैसे नहीं होते, जब बिजली और रोटी के लिए देश त्राहि-त्राहि करता है, तब पाकिस्तान की सरकार IMF का दरवाज़ा खटखटाती है. ये कहानी अब नई नहीं है. लेकिन इस बार भारत ने चौंकाने वाला कदम उठाया. IMF की वॉशिंगटन बैठक में भारत ने न सिर्फ पाकिस्तान को दिए जा रहे 1.3 बिलियन डॉलर के बेलआउट पैकेज का विरोध किया, बल्कि वोटिंग से पूरी तरह दूरी बना ली.
IMF के सामने भारत ने गंभीर सवाल खड़े किए. सवाल ये कि क्या पाकिस्तान IMF से लिए गए पैसे का सही इस्तेमाल करता है? क्या वह उन पैसों को सुधारों में लगाता है, या फिर उन फंड्स की आड़ में आतंक की खेती करता है? ये सवाल सिर्फ भारत के नहीं हैं, बल्कि आज दुनिया के कई लोकतांत्रिक मुल्कों के भी हैं.
ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत ने बदला रुख
22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुआ आतंकी हमला, जिसमें 26 निर्दोष लोग मारे गए थे, उसने भारत को झकझोर दिया. जवाब में भारत ने जिस तरह ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत POK और पाकिस्तान में आतंक के ठिकानों को नष्ट किया, उसने पाकिस्तान की नींव हिला दी. लेकिन भारत का रुख यहीं नहीं थमा. भारत ने एक और बड़ा मोर्चा खोला कूटनीति का.
9 मई को IMF की वॉशिंगटन बैठक में भारत ने दो टूक कहा कि पाकिस्तान का ट्रैक रिकॉर्ड बेहद खराब है. हर बार बेलआउट पैकेज लेने के बाद वो न तो आर्थिक सुधार करता है, न ही पारदर्शिता बढ़ाता है. ऊपर से भारत ने यह आरोप भी लगाया कि IMF के पैसे का इस्तेमाल अप्रत्यक्ष रूप से आतंकी संगठनों जैसे लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद को सहायता देने में होता है. भारत के इस बयान ने बैठक में सन्नाटा फैला दिया.
MF की रिपोर्ट में भी पाकिस्तान पर सवाल
यह केवल भारत का दावा नहीं है. IMF की अपनी रिपोर्ट में भी साफ कहा गया है कि पाकिस्तान 'टू बिग टू फेल' कर्जदार बन चुका है. यानी उसे कर्ज न देने का जोखिम IMF लेना ही नहीं चाहता. क्योंकि डर ये है कि अगर पाकिस्तान डिफॉल्ट करता है, तो उसकी लहरें पूरी दुनिया की वित्तीय स्थिरता को हिला सकती हैं. इस वजह से पाकिस्तान को बार-बार छूट दी जाती है, उसकी असफलताओं को नजरअंदाज किया जाता है.
भारत ने इस रिपोर्ट का हवाला देकर IMF से पूछा कि क्या वह अब भी आतंकवाद को नजरअंदाज कर अपनी छवि को धूमिल करना चाहता है? यह बात IMF के लिए असहज करने वाली थी. भारत की चिंता केवल आर्थिक नहीं, बल्कि सुरक्षा को लेकर है. भारत ने स्पष्ट कहा कि अगर IMF आंखें मूंदकर पाकिस्तान को बेलआउट देता है, तो वह पैसा पाकिस्तान की मिलिट्री और ISI के पास जाएगा. और वहीं से वह पैसा पुलवामा जैसे हमलों की तैयारी के लिए भेजा जाएगा. यही वो “टेरर फंडिंग” है, जिसका भारत ने सबूतों के साथ खुलासा किया.
सूत्रों की मानें तो भारत ने IMF को यह भी याद दिलाया कि FATF (फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स) ने भी पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में डाल रखा है. और अगर पाकिस्तान पर आतंकवाद की फंडिंग के पुख्ता आरोप हैं, तो IMF को उससे आर्थिक व्यवहार में भी सतर्क रहना चाहिए.
भारत का वोट न देना, तीखा संदेश
इस पूरी स्थिति में भारत का वोटिंग में भाग न लेना सिर्फ एक औपचारिक फैसला नहीं था. यह एक राजनयिक सिग्नल था. एक ऐसा संकेत जिसे IMF, अमेरिका, चीन और बाकी वैश्विक ताकतें समझें कि भारत अब न तो पाकिस्तान की आतंकी राजनीति को नजरअंदाज करेगा, न ही वैश्विक मंचों पर चुप रहेगा. विशेषज्ञों की मानें तो भारत का ये रुख बताता है कि अब वह सिर्फ LOC पर ही नहीं, IMF जैसे ग्लोबल मंचों पर भी पाकिस्तान की आर्थिक चालबाजियों को उजागर करने के लिए तैयार है.
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था ICU में
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था बुरी तरह लड़खड़ा चुकी है. महंगाई आसमान पर है. डॉलर की कीमत लगातार बढ़ रही है. बेरोजगारी और भूख ने जनता को सड़कों पर उतार दिया है. ऐसे में IMF का बेलआउट पाकिस्तान के लिए जीवनदान जैसा है. लेकिन सवाल ये है कि क्या ये जीवनदान सही हाथ में है?
अगर बेलआउट के पैसे का इस्तेमाल सिर्फ सेना की गाड़ियों में पेट्रोल भरने और आतंकी नेटवर्क की फंडिंग में होगा, तो फिर IMF की भूमिका एक खतरनाक वित्तीय हथियार जैसी बन जाएगी.
IMF के मंच पर भारत का यह कदम बताता है कि नई दिल्ली अब सिर्फ सैनिक जवाब नहीं देती, वह कूटनीतिक और आर्थिक मोर्चे पर भी उतनी ही आक्रामक है. यह सिर्फ पाकिस्तान के लिए नहीं, दुनिया भर की उन संस्थाओं के लिए भी चेतावनी है जो आतंकवाद को अनदेखा कर राजनीतिक हितों में उलझी रहती हैं.