क्या वापसी करेगा 2015 का परमाणु समझौता? ईरान-अमेरिका के बीच दोबारा बातचीत
ईरान और अमेरिका के बीच चल रहे परमाणु विवाद पर मस्कट, ओमान में दूसरे दौर की अप्रत्यक्ष वार्ता शुरू हो गई है। यह वार्ता 2015 के परमाणु समझौते को फिर से बहाल करने की कोशिशों का हिस्सा है, जिसे अमेरिका ने 2018 में तोड़ दिया था। इस डील का मकसद ईरान के परमाणु कार्यक्रम को नियंत्रित करना और आर्थिक प्रतिबंधों को हटाना है।

"जब दुश्मन आमने-सामने न हों, पर बातचीत फिर भी हो तो वह कूटनीति की सबसे महीन कला होती है." यह कथन इस समय पूरी तरह फिट बैठता है ईरान और अमेरिका के बीच हो रही अप्रत्यक्ष परमाणु वार्ता पर. एक बार फिर, ओमान की राजधानी मस्कट इस ऐतिहासिक बातचीत की मेजबानी कर रही है. यह वही मस्कट है, जो मध्य पूर्व की राजनीति में एक शांत राजदूत की भूमिका निभाता रहा है न ज्यादा बोलता है, न ही किसी एक पक्ष की तरफ झुकता है, लेकिन हर किसी से संवाद बनाए रखता है.
शनिवार की सुबह मस्कट के एक सुरक्षित होटल में कुछ गाड़ियां रुकीं. दरवाजे बंद थे, कैमरे दूर रखे गए थे, लेकिन दुनिया की सबसे पेचीदा कूटनीतिक पहेली को हल करने की कोशिश अंदर चल रही थी. एक तरफ थे ईरान के उपविदेश मंत्री सईद अब्बास अराघची, और दूसरी ओर खुद उपस्थित न होते हुए भी— अमेरिका के प्रतिनिधि स्टीव विटकॉफ की ओर से संदेशों का आदान-प्रदान हो रहा था.
यह बातचीत सीधी नहीं थी. यह “अप्रत्यक्ष वार्ता” थी यानी दोनों देश एक-दूसरे से आमने-सामने नहीं बैठे, बल्कि ओमान के माध्यम से बात करते रहे. शब्दों से ज़्यादा, इरादों की परीक्षा चल रही थी.
कैसे टूटा था परमाणु समझौता?
ईरान और अमेरिका के बीच यह खींचतान कोई नई नहीं. कहानी 2015 से शुरू होती है, जब ईरान ने P5+1 देशों – अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस, ब्रिटेन और जर्मनी – के साथ एक ऐतिहासिक परमाणु समझौता किया था.
इस समझौते के तहत ईरान ने वादा किया कि वह अपने परमाणु कार्यक्रम को सीमित करेगा, और बदले में उसे मिलने थे आर्थिक प्रतिबंधों से राहत.
लेकिन मई 2018 में जब अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस समझौते से एकतरफा तरीके से अमेरिका को बाहर निकाल लिया, तो ईरान को लगा कि उसके साथ धोखा हुआ है. ट्रंप प्रशासन ने न केवल समझौता तोड़ा, बल्कि ईरान पर फिर से कड़े आर्थिक प्रतिबंध थोप दिए. इसके बाद से ईरान ने भी धीरे-धीरे समझौते के तहत किए गए वादों को पूरा करना बंद कर दिया.
क्या बदलेगा तेहरान और वाशिंगटन का रिश्ता?
समय बदल गया है. ट्रंप अब व्हाइट हाउस में नहीं हैं, लेकिन उनके फैसलों की छाया अब भी अमेरिकी विदेश नीति पर मंडरा रही है.
वहीं, ईरान भी लगातार आर्थिक संकटों और अंदरूनी दबावों से जूझ रहा है. ऐसे में दोनों देशों के बीच बातचीत की नई खिड़की खुलना न सिर्फ ज़रूरी है, बल्कि पूरे विश्व के लिए सुकून देने वाली खबर है.
ईरानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता एस्माईल बाघेई ने इस बार के वार्ता के बारे में बताया कि यह ओमान की पहल पर संभव हो पाया है. ओमान हमेशा से एक शांत मध्यस्थ रहा है, जिसने बीते वर्षों में कई बार छुपकर हो रही वार्ताओं की मेजबानी की है.
जानकारी के मुताबिक, ये वार्ताएं मुख्यतः दो बिंदुओं पर केंद्रित हैं ईरान के परमाणु कार्यक्रम को किस सीमा तक रोका जा सकता है, ताकि वह परमाणु हथियार बनाने की दिशा में न बढ़े. अमेरिका किन प्रतिबंधों को हटाने को तैयार है, जिससे ईरान की डगमगाती अर्थव्यवस्था को राहत मिल सके. इन दोनों विषयों पर सीधी नहीं, पर प्रभावशाली बातचीत हो रही है. मस्कट की बैठक में जो संदेश एक कमरे से दूसरे कमरे तक गया, उसमें सिर्फ शब्द नहीं, बल्कि राजनीतिक भविष्य की संभावनाएं समाहित थीं.
क्या इटली बनेगा अगला मंच?
इस बीच, एक और महत्वपूर्ण खबर सामने आई – इटली ने संकेत दिया है कि अगली बातचीत रोम में हो सकती है. इटली के विदेश मंत्री एंटोनियो तजानी ने मीडिया से कहा कि वे ओमान और बातचीत कर रहे पक्षों के अनुरोध पर वार्ता की मेजबानी के लिए तैयार हैं. अगर ऐसा होता है, तो यह संकेत होगा कि बातचीत सिर्फ शुरू नहीं हुई है, बल्कि आगे बढ़ने की राजनीतिक इच्छा भी है.
शायद कुछ लोग सोचें कि यह वार्ता तो दो देशों के बीच है आम इंसान का इससे क्या लेना? पर सच्चाई यह है कि अगर यह वार्ता सफल होती है, तो तेल की कीमतों से लेकर वैश्विक बाजारों तक, शांति से लेकर युद्ध की आशंका तक सब पर गहरा असर होगा. एक स्थिर ईरान मतलब है कम तनाव वाला मध्य पूर्व, और कम तनाव का मतलब है कम सैन्य हस्तक्षेप, बेहतर व्यापार, और सस्ते पेट्रोल की संभावना.
क्या यह वार्ता सफल होगी? यह कहना फिलहाल जल्दबाज़ी होगी. ईरान और अमेरिका की आपसी अविश्वास की दीवार बहुत ऊंची है. लेकिन यह बात भी सच है कि जब दो दुश्मन देश भी बातचीत की मेज पर लौट आते हैं, तो यह संकेत होता है कि बदलाव की हवा चल पड़ी है.