130 KM लंबी, ‘16614 ऊंचाई, ’ 70 टन भार क्षमता…चीन के दिमाग में घुस जाएगी भारत की ये ‘सीक्रेट सड़क’, नाम दौलत बेग ओल्डी
भारत गलवान क्लैश से सीख लेने के बाद अपनी रणनीतिक और ढांचागत तैयारियों को और मजबूत बना रहा है. इसी के तहत लेह-लद्दाख तक करीब 130 किलोमीटर लंबी सड़क बना रहा है जो 70 टन से भी ज्यादा भार वाले हथियारों, तोपो को ले जाने में सक्षम होगा. इसे भारत का सीक्रेट रूट कहा जा रहा है जिससे चीन की टेंशन बढ़ गई है.
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लद्दाख के उत्तरी हिस्से में मौजूद दुनिया का सबसे ऊंचा एयरफील्ड कहा जाने वाला ‘दौलत बेग ओल्डी’ का भारत के लिए काफी सामरिक महत्व है. PLA या चाइनीज आर्मी की चाल पर नज़र रखने और अपनी सैन्य तैयारियों को पुख्ता रखने के लिए काफी अहम हो जाता है. भारतीय सेना इसे DBO Ladakh बुलाती है. काराकोरम रेंज और उत्तरी लद्दाख की पहाड़ियों के बीच मौजूद तारीम बेसिन (Tarim Basin) में बनी DBO की ऊंचाई 16,700 फीट यानी 5100 मीटर है. यह एयरफील्ड भारत की सुरक्षा के हिसाब से बेहद महत्वपूर्ण है. यहीं से सेना पाकिस्तान और चीन पर कड़ी निगरानी रखती है.
दौलत बेग ओल्डी (DBO) कराकोरम पर्वतमाला में भारत-चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) से मात्र 8 किलोमीटर दूर है. भारत सरकार बॉर्डर रोड्स ऑर्गनाइजेशन (BRO) के माध्यम से लेह से DBO तक एक नई 130 किलोमीटर लंबी वैकल्पिक सड़क बना रही है, जो रणनीतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है. यह सड़क न केवल भारतीय सेना की तैनाती को आसान बनाएगी, बल्कि चीन की निगरानी से भी बचेगी.
दौलत बेग ओल्डी रोड क्या है?
2020 में गलवान घाटी में हुए चीन सेना के साथ तनाव के बाद भारत रणनीतिक और सैन्य लिहाज से महत्वपूर्ण इलाकों में अपनी ढांचागत तैयारियों को काफी पुख्ता कर रहा है. इसी लिहाज से लद्दाख के दौलत बेग ओल्डी (DBO) तक करीब 130 किलोमीटर लंबी सड़क बना रहा है ताकि शांति और युद्धकाल में अपनी पहुंच सुरक्षित और आसान बनाई जा सके.
दौलत बेग ओल्डी (DBO) कराकोरम पास के पास और लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) से सिर्फ 8 किलोमीटर दूर है. ये इलाका सब-सेक्टर नॉर्थ (SSN) का हिस्सा है, जिसमें डेपसांग मैदान और सियाचिन ग्लेशियर जैसे रणनीतिक क्षेत्र आते हैं.
नई सड़क लेह से दौलत बेग ओल्डी तक एक वैकल्पिक मार्ग है, जो ससोमा-सासेर ला-सासेर ब्रांगसा-गप्शन-DBO के रास्ते बन रही है. यह सड़क मौजूदा दरबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी (DSDBO) सड़क का विकल्प होगी, जो 255 किलोमीटर लंबी है और LAC के बहुत करीब होने के कारण चीनी सेना की निगरानी में रहती है. नया मार्ग 130 किलोमीटर लंबा है, जिससे लेह से DBO की दूरी 322 किलोमीटर से घटकर 243 किलोमीटर हो जाएगी. इससे यात्रा का समय 2 दिन से घटकर 11-12 घंटे हो जाएगा. इस सड़क पर 40 टन भार क्षमता वाले 9 पुल बनाए जा रहे हैं, जो भारी हथियारों और उपकरणों, जैसे बोफोर्स तोपों, को ले जाने में सक्षम होंगे.
इसके अतिरिक्त, सासेर ला में 17,660 फीट की ऊंचाई पर 8 किलोमीटर लंबी एक सुरंग की योजना है, जिसका डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट (DPR) तैयार हो चुका है. यह सुरंग 2028 तक बनकर तैयार हो सकती है, जिससे सर्दियों में भी DBO तक पहुंच आसान होगी.
कैसे बन रही है DBO सड़क?
सड़क का निर्माण बॉर्डर रोड्स ऑर्गनाइजेशन (BRO) द्वारा किया जा रहा है, जो भारत की सीमावर्ती क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे के विकास के लिए जिम्मेदार है. ससोमा से सासेर ब्रांगसा तक का हिस्सा प्रोजेक्ट विजयक के तहत 300 करोड़ रुपये की लागत से बन रहा है, जबकि सासेर ब्रांगसा से DBO तक का हिस्सा प्रोजेक्ट हिमांक के तहत 200 करोड़ रुपये की लागत से बनाया जा रहा है. सड़क का निर्माण 2026 तक पूरा होने की उम्मीद है.
यह सड़क काराकोरम वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी से होकर गुजरती है, इसलिए पर्यावरणीय नियमों का पालन करते हुए निर्माण किया जा रहा है. नेशनल बोर्ड ऑफ वाइल्डलाइफ ने 2022 में इस सड़क को मंजूरी दी, बशर्ते सालाना अनुपालन रिपोर्ट जमा की जाए. सड़क का निर्माण चुनौतीपूर्ण भौगोलिक परिस्थितियों में हो रहा है, जहां ऊंचाई 13,000 से 16,000 फीट तक है और सर्दियों में तापमान -30 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है.
क्यों जरूरी है?
1. सामरिक महत्व: DBO भारत का सबसे उत्तरी सैन्य अड्डा है, जो सियाचिन ग्लेशियर के पास और कराकोरम दर्रे के निकट है. यह सड़क भारतीय सेना को गलवान घाटी और डेपसांग मैदान जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में तेजी से तैनाती और रसद आपूर्ति सुनिश्चित करेगी. युद्ध काल में भारी भरकम हथियारों, सेना के मूवमेंट और नियमित निगरानी के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है.
2. तेज और सुरक्षित पहुंच: मौजूदा DSDBO सड़क LAC के करीब होने के कारण चीनी सेना की निगरानी में रहती है. नई सड़क चीनी नजरों से छिपी रहेगी, जिससे भारतीय सेना की गतिविधियां अधिक सुरक्षित होंगी. साथ ही, यात्रा समय में कमी से आपात स्थिति में त्वरित कार्रवाई संभव होगी.
3. सियाचिन बेस कैंप के लिए सुविधा: सड़क सियाचिन बेस कैंप के पास से गुजरती है, जिससे सैनिकों को उच्च ऊंचाई पर तैनाती से पहले अनुकूलन (Acclimatization) का समय मिलेगा.
4. आर्थिक और सामाजिक लाभ: यह सड़क स्थानीय बलती समुदाय के लिए भी फायदेमंद होगी, जो मुरगो गांव में खुबानी की खेती और याक पालन करते हैं. बेहतर कनेक्टिविटी से उनकी आर्थिक स्थिति सुधरेगी.
DBO के निर्माण में BRO के सामने हैं कई चुनौतियां
1. कठिन भौगोलिक परिस्थितियां: 5,100 मीटर की ऊंचाई, ठंडा मौसम, और ऑक्सीजन की कमी निर्माण कार्य को मुश्किल बनाती है. सर्दियों में बर्फबारी के कारण काम रुक सकता है.
2. पर्यावरणीय नियम: सड़क काराकोरम वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी से होकर गुजरती है, जिसके लिए सख्त पर्यावरणीय नियमों का पालन करना जरूरी है. यह निर्माण की गति को प्रभावित कर सकता है.
3. तकनीकी जटिलताएं: सासेर ला में 8 किलोमीटर लंबी सुरंग का निर्माण तकनीकी रूप से जटिल और महंगा है. इसके लिए 4-5 साल का समय और भारी निवेश की जरूरत होगी.
चीन को क्यों टेंशन है?
1. सामरिक बढ़त: DSDBO सड़क के निर्माण से चीन पहले ही असहज था, क्योंकि यह भारत को LAC पर तेजी से सैन्य तैनाती की क्षमता देती है. नई सड़क और सासेर ला सुरंग इस बढ़त को और मजबूत करेंगे, जिससे चीन की रणनीतिक स्थिति कमजोर पड़ सकती है.
2. गलवान घाटी विवाद: 2020 में गलवान घाटी में भारत-चीन सैनिकों के बीच हिंसक झड़प का एक कारण DSDBO सड़क थी. चीन को डर है कि नया मार्ग भारत को गलवान और डेपसांग जैसे क्षेत्रों में और मजबूत करेगा.
3. चीन की बेल्ट एंड रोड परियोजना: चीन की बेल्ट एंड रोड पहल (BRI) के तहत वह LAC के पास अपनी सड़कों, हवाई पट्टियों और सैन्य ठिकानों को मजबूत कर रहा है. भारत का यह रोड प्रोजेक्ट चीन के लिए एक जवाबी रणनीति है, जो उसकी क्षेत्रीय प्रभुत्व की योजनाओं को चुनौती देता है
4. क्षेत्रीय प्रभुत्व: DBO का ऐतिहासिक व्यापारिक मार्ग कराकोरम दर्रे और चीन के यारकंड तक जाता है. भारत का इस क्षेत्र में बुनियादी ढांचा विकास चीन के क्षेत्रीय प्रभाव को कमजोर कर सकता है.
इस सड़क के बनने के बाद क्या होगा?
2020 में गलवान घाटी में भारत और चीन के बीच जो झड़प हुई, उसका एक बड़ा कारण DSDBO सड़क थी, जो LAC के बहुत पास है और चीनी सेना इसे आसानी से निशाना बना सकती है. चीन ने गलवान घाटी और डेपसांग जैसे इलाकों में अपनी सड़कों और ठिकानों का नेटवर्क बना लिया है, जिससे भारत के लिए खतरा बढ़ गया है. अब अगर DBO Laddakh में नई सड़क बनती है, तो इसके कई फायदे होंगे:
1. सुरक्षा: नई सड़क चीनी सेना की नजरों से दूर और गुप्त होगी, यानी सैनिकों और हथियारों की आवाजाही ज्यादा सुरक्षित और खुफिया रहेगी. इससे भारतीय सेना अपने रणनीतिक मकसद को बिना किसी चुनौती के पूरा कर पाएगी.
2. तेजी: यह सड़क लेह से DBO (Darbuk-Shyok-Daulat Beg Oldi) तक का समय आधा कर देगी. इसका मतलब ये है कि सैनिक और जरूरी सामान बहुत जल्दी वहां पहुंच सकेंगे, जिससे सेना की मोबलाइजेशन प्रतिक्रिया तेज होगी.
3. भारी हथियारों की आवाजाही: नई सड़क पर 70 टन क्षमता वाले पुल बनाए जाएंगे, जिससे भारी हथियार जैसे टैंक और बोफोर्स भी DBO तक आसानी से पहुंच सकेंगे. इससे हमारी ताकत और सुरक्षा मजबूत होगी.
4. सियाचिन और डेपसांग की सुरक्षा: DBO और डेपसांग इलाके सियाचिन ग्लेशियर की सुरक्षा के लिए अहम हैं. अगर ये इलाकें किसी और के हाथ में चले जाते हैं, तो सियाचिन की रक्षा करना बहुत मुश्किल हो जाएगा.
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दौलत बेग ओल्डी तक नई सड़क भारत की रणनीतिक और सामरिक ताकत को बढ़ाने वाला एक महत्वपूर्ण कदम है. यह न केवल सेना की तैनाती और रसद आपूर्ति को सुगम बनाएगी, बल्कि लद्दाख के स्थानीय समुदायों के लिए भी आर्थिक अवसर लाएगी. हालांकि, कठिन भौगोलिक और पर्यावरणीय चुनौतियां निर्माण को जटिल बनाती हैं. चीन की बेचैनी इस सड़क के सामरिक महत्व को और रेखांकित करती है, क्योंकि यह भारत को LAC पर मजबूत स्थिति प्रदान करती है. 2026 तक इस सड़क के पूरा होने और 2028 तक सासेर ला सुरंग के बनने से भारत की सीमा सुरक्षा और क्षेत्रीय प्रभाव में अभूतपूर्व वृद्धि होगी.
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