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भारत-पाक तनाव के बीच मिस्र ने दी थी पाकिस्तान को चुपचाप मदद, गलती से बोल पड़े शहबाज शरीफ

भारत-पाक तनाव के बीच मिस्र की गुप्त भूमिका सामने आई है. शहबाज शरीफ ने खुद राष्ट्रपति अल-सीसी से बात कर शुक्रिया कहा, जिससे मिस्र की संलिप्तता का खुलासा हुआ. फ्लाइट रडार और शहबाज शरीफ की बातचीत से संकेत मिलते हैं कि मिस्र ने पाकिस्तान को कार्गो सपोर्ट और कूटनीतिक मदद दी थी.

22 May, 2025
( Updated: 22 May, 2025
06:21 PM )
भारत-पाक तनाव के बीच मिस्र ने दी थी पाकिस्तान को चुपचाप मदद,  गलती से बोल पड़े शहबाज शरीफ
भारत और पाकिस्तान के बीच जब हाल ही में तनाव की स्थिति बनी तो अंतरराष्ट्रीय समुदाय की निगाहें तुर्की, चीन और अजरबैजान जैसे देशों पर टिकी थीं. ये देश पहले भी पाकिस्तान की रणनीतिक और सैन्य मदद करते आए हैं. लेकिन इस बार जिस देश का नाम अचानक सामने आया, उसने सबको चौंका दिया. खुद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने एक ऐसी बात कह दी, जिससे पर्दा हट गया कि पाकिस्तान की मदद करने वालों की फेहरिस्त में मिस्र (Egypt) का नाम भी शामिल है. यह नाम न केवल अप्रत्याशित था, बल्कि यह दर्शाता है कि पाकिस्तान अपने पुराने संबंधों को फिर से जीवित करने की कोशिश में जुटा है.

शहबाज शरीफ की फिसली जुबान

पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने हाल ही में मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फत्ताह अल-सीसी से टेलीफोन पर बातचीत की. यह बातचीत केवल औपचारिक नहीं थी. इसमें शहबाज शरीफ ने खुलकर कहा कि भारत के साथ तनाव के समय मिस्र का संतुलित और सहयोगी रवैया पाकिस्तान के लिए बेहद मददगार रहा. यह बयान अप्रत्यक्ष रूप से यह संकेत दे गया कि मिस्र ने पाकिस्तान को न केवल नैतिक समर्थन दिया, बल्कि रणनीतिक स्तर पर भी सहयोग किया. इस खुलासे के बाद सवाल उठने लगे कि मिस्र आखिर पर्दे के पीछे से पाकिस्तान को क्या और कैसे मदद कर रहा था?

फ्लाइट रडार से सामने आया सच

इस रहस्य को थोड़ा और खोलने वाला संकेत मिला था 12 मई को, जब ‘फ्लाइट 24 रडार’ पर एक मिस्र का कार्गो विमान पाकिस्तान में उतरता हुआ दर्ज किया गया था. यह विमान पाकिस्तान की सियालकोट एयरबेस पर लैंड हुआ था. उस समय इस खबर को ज़्यादा तवज्जो नहीं दी गई थी, लेकिन अब शहबाज शरीफ के बयान के बाद ये घटना एक नई रोशनी में देखी जा रही है. यह आशंका जताई जा रही है कि उस कार्गो विमान में सैन्य उपकरण या जरूरी सप्लाई भेजी गई हो सकती है. हालांकि इस पर पाकिस्तान और मिस्र की तरफ से कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं की गई, लेकिन स्थिति काफी कुछ बयां कर रही है.

मिस्र क्यों कर रहा है पाकिस्तान की मदद?

यह सवाल अपने आप में बेहद अहम है. मिस्र, जो मध्य-पूर्व में अमेरिका और सऊदी अरब के सहयोगी के तौर पर देखा जाता है, आखिर क्यों पाकिस्तान के इतने करीब आ रहा है? जानकारों का मानना है कि मिस्र पाकिस्तान के जरिए दक्षिण एशिया में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता है. साथ ही यह भी हो सकता है कि मिस्र, तुर्की और चीन की तरह, इस्लामिक एकजुटता के नाम पर पाकिस्तान के साथ खड़ा दिखना चाहता हो. हालांकि इसकी एक और वजह यह भी हो सकती है कि मिस्र भारत के रुख से चिंतित है, खासकर जब भारत मिस्र में भी निवेश और रणनीतिक साझेदारी बढ़ा रहा है. ऐसे में मिस्र का यह झुकाव पाकिस्तान की ओर एक संतुलन बनाने की कोशिश भी हो सकती है.

सिंधु जल संधि पर भी हुई चर्चा

इस बातचीत में शहबाज शरीफ ने भारत और पाकिस्तान के बीच की सिंधु जल संधि का जिक्र भी किया. उन्होंने मिस्र के राष्ट्रपति को बताया कि पाकिस्तान इस संधि को क्षेत्रीय स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण मानता है. यह उल्लेख इसलिए भी खास है क्योंकि भारत ने हाल ही में इस संधि को होल्ड पर रखा है. यह पहली बार नहीं है जब पाकिस्तान ने सिंधु जल संधि को वैश्विक मंच पर उठाया है. लेकिन मिस्र जैसे देश के साथ यह मुद्दा उठाना इस बात की ओर इशारा करता है कि पाकिस्तान इस सहयोग को केवल सैन्य तक ही सीमित नहीं रखना चाहता, बल्कि कूटनीतिक समर्थन भी चाहता है.

मिस्र को पाकिस्तान आने का न्यौता
बातचीत के अंत में शहबाज शरीफ ने मिस्र के राष्ट्रपति को पाकिस्तान आने का औपचारिक निमंत्रण भी दिया. मिस्र की ओर से इस न्यौते को स्वीकार कर लिया गया है, जिससे यह स्पष्ट है कि दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों को नई ऊर्जा दी जा रही है. अब देखना यह होगा कि इस दौरे के दौरान क्या समझौते होते हैं और इनमें से कितने भारत की रणनीतिक स्थिति को प्रभावित कर सकते हैं.

इस पूरी घटना ने यह साफ कर दिया है कि भारत-पाक तनाव केवल सीमा तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहराई से जुड़ी अंतरराष्ट्रीय राजनीति भी काम कर रही है. मिस्र की भूमिका पर अभी भले ही कोई स्पष्ट जवाब ना मिले, लेकिन जिस तरह से पाकिस्तान की ओर से उसका नाम सामने आया, उसने कई अनुत्तरित सवालों को जन्म दे दिया है. आने वाले समय में अगर और ऐसे संकेत मिलते हैं, तो यह तय है कि भारत को अपने कूटनीतिक रुख में और भी मजबूती लानी होगी.

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