Advertisement

क्या नकाब पहनकर महिला वकील कर सकती हैं अदालत में बहस? J&K हाईकोर्ट में उठा सवाल

हाल ही में जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट में एक दिलचस्प और संवेदनशील मामला सामने आया। सवाल यह था कि क्या मुस्लिम महिला वकील नकाब पहनकर अदालत में पेश होकर पैरवी कर सकती हैं? इस घटना ने न केवल न्यायिक प्रक्रियाओं पर, बल्कि व्यक्तिगत अधिकारों और धार्मिक परंपराओं पर भी बहस छेड़ दी है।

24 Dec, 2024
( Updated: 24 Dec, 2024
11:23 PM )
क्या नकाब पहनकर महिला वकील कर सकती हैं अदालत में बहस? J&K हाईकोर्ट में उठा सवाल
क्या मुस्लिम महिला वकील नकाब पहनकर कोर्ट में पैरवी कर सकती हैं? यह सवाल हाल ही में जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट में एक मामले के दौरान चर्चा का विषय बना। घटना उस समय की है जब एक महिला वकील ने घरेलू हिंसा के मामले में अपने मुवक्किल का पक्ष रखने के लिए अदालत में पेश होकर बहस करनी चाही। हालांकि, वह नकाब में थीं, जिससे उनके चेहरे का बड़ा हिस्सा ढका हुआ था। जज ने उनकी बात सुनने से इनकार करते हुए नकाब हटाने का अनुरोध किया। जब महिला वकील ने नकाब हटाने से मना किया, तो जज ने भी सुनवाई से इंकार कर दिया और इस मामले को रजिस्ट्रार जनरल की रिपोर्ट के आधार पर आगे बढ़ाने का फैसला किया।
क्या है बार काउंसिल ऑफ इंडिया का नियम?
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के जज खजूरिया काजमी ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) के नियमों का हवाला देते हुए कहा कि वकीलों के लिए निर्धारित ड्रेस कोड में नकाब या चेहरा ढकने का कोई प्रावधान नहीं है। BCI के Chapter IV (Part VI) में महिला वकीलों के लिए काली पूरी आस्तीन वाली जैकेट या ब्लाउज, सफेद बैंड, और काला कोट के साथ पारंपरिक परिधान (जैसे साड़ी) को स्वीकार्य बताया गया है। लेकिन आवश्यक अदालती पोशाक में चेहरा ढकने का उल्लेख नहीं है।

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वकील होने के नाते महिला को अदालत के नियमों का पालन करना चाहिए। नकाब पहनने की वजह से उनकी पहचान सुनिश्चित करना मुश्किल हो जाता है, और न्याय प्रक्रिया में पारदर्शिता बनाए रखना अदालत का कर्तव्य है।

इस मामले की शुरुआत तब हुई जब सैयद एनैन कादरी नामक महिला वकील अदालत में घरेलू हिंसा के मामले में अपने मुवक्किल का पक्ष रखने पहुंचीं। उन्होंने अदालत में वकील की पारंपरिक वेशभूषा तो पहनी थी, लेकिन चेहरे को नकाब से ढक रखा था। सुनवाई के दौरान जज ने उन्हें नकाब हटाने का निर्देश दिया। इस पर महिला वकील ने कहा कि यह उनका मौलिक अधिकार है और उन्हें नकाब पहनने से रोका नहीं जा सकता। जज ने महिला वकील के इस तर्क को सुनने के बाद रजिस्ट्रार जनरल से रिपोर्ट मांगी। रिपोर्ट में BCI के नियमों का हवाला देते हुए कहा गया कि नकाब पहनकर अदालत में पैरवी करना मान्य नहीं है।
अदालत के निर्देश
हाईकोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि अदालत में वकीलों के लिए निर्धारित ड्रेस कोड का पालन करना अनिवार्य है। चेहरा ढकने से न केवल पहचान सुनिश्चित करने में समस्या होती है, बल्कि यह न्याय प्रक्रिया की पारदर्शिता पर भी सवाल खड़े करता है। अदालत ने कहा कि यह मामला व्यक्तिगत अधिकार और न्यायिक प्रक्रिया के संतुलन का है।

महिला वकील ने तर्क दिया कि नकाब पहनना उनका धार्मिक और मौलिक अधिकार है। उन्होंने कहा कि नकाब हटाने की मांग उनके व्यक्तिगत स्वतंत्रता के खिलाफ है। हालांकि, अदालत का मानना था कि न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता और पहचान सुनिश्चित करना सर्वोपरि है।
इस मामले का व्यापक प्रभाव
यह घटना न केवल कानून और धर्म के बीच संतुलन का विषय है, बल्कि न्यायिक प्रक्रिया में वकीलों की भूमिका और जिम्मेदारी पर भी सवाल खड़े करती है। अदालत का यह फैसला स्पष्ट रूप से संकेत देता है कि न्यायालय में निर्धारित नियमों का पालन सभी के लिए अनिवार्य है, चाहे वह कोई भी धर्म या समुदाय से हो। इस घटना ने कोर्टरूम के अनुशासन और न्याय प्रक्रिया में पारदर्शिता के महत्व को उजागर किया है। अदालत में वकील की पहचान और उसकी पेशेवर भूमिका के बीच संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। यह मामला कानून और व्यक्तिगत अधिकारों के बीच सीमाओं की व्याख्या का एक महत्वपूर्ण उदाहरण बन सकता है।

आने वाले समय में इस विषय पर व्यापक बहस और चर्चा हो सकती है, जिससे यह स्पष्ट होगा कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता और न्यायिक प्रक्रिया के बीच किस तरह का संतुलन स्थापित किया जाए।

Tags

Advertisement
Advertisement
Tablet से बड़ा होता है साइज, Oral S@X, Size लड़कियों के लिए मैटर करता है? हर जवाब जानिए |Dr. Ajayita
Advertisement
Advertisement