Advertisement

World Earth Day 2025: क्या आप जानते हैं धरती का असली ओरिजिन क्या है? कैसे हुआ था इसका जन्म

लगभग 4.6 अरब साल पहले कैसे एक गैस और धूल के बादल से हमारी पृथ्वी बनी, कैसे सूर्य का निर्माण हुआ और कैसे धरती पर पानी, जीवन और वातावरण आया — ये सब बातें विस्तार से समझाई गई हैं। ब्लॉग में तीन प्रमुख सिद्धांतों — Core Accretion, Disk Instability, और Pebble Accretion के माध्यम से यह बताया गया है कि वैज्ञानिक आज भी इस सवाल का जवाब ढूंढने में लगे हैं कि हमारी धरती वास्तव में कैसे बनी।
World Earth Day 2025: क्या आप जानते हैं धरती का असली ओरिजिन क्या है? कैसे हुआ था इसका जन्म
आज हम जिस धरती पर खड़े हैं, जिस पर ज़िंदगी की हर गतिविधि चल रही है वो कभी थी ही नहीं. कोई पहाड़ नहीं था, कोई समंदर नहीं, ना ही थी हवा... था तो सिर्फ अंधकार, गैस और धूल. तो ऐसे में सवाल ये उठता है कि आख़िर पृथ्वी बनी कैसे? क्या वो किसी ईश्वरीय चमत्कार का परिणाम है या किसी वैज्ञानिक प्रक्रिया की अद्भुत कहानी? आइए, आपको लिए चलते हैं 4.6 अरब साल पीछे, जब न तो सूरज था, न चाँद, और न ही हमारे जैसे किसी ग्रह की कल्पना.

शुरुआत हुई थी एक धूल और गैस के गुबार से करीब 4.6 अरब साल पहले, हमारा सौरमंडल सिर्फ एक विशाल गैस और धूल का बादल था, जिसे वैज्ञानिक "सोलर नेबुला" कहते हैं. यह नेबुला ब्रह्मांड के किसी पुराने तारे के विस्फोट के बाद बना था. जब इस नेबुला में हलचल शुरू हुई, तो गुरुत्वाकर्षण ने इसे एक जगह खींचना शुरू किया. यह घूर्णन करने लगा, और इसी घूर्णन से इसका केंद्र गर्म होता गया. फिर वही केंद्र बना—हमारा सूर्य. सूरज के बनने के बाद, जो बची-खुची धूल और गैस थी, वह घूमते हुए छोटी-छोटी गांठों में बंधने लगी. यही गांठें आगे चलकर बनीं ग्रह. लेकिन पृथ्वी की कहानी इतनी सीधी नहीं थी.

कोर एक्रीशन थ्योरी जहां से रखी गई धरती की नींव

विज्ञान में पृथ्वी के निर्माण की सबसे प्रमुख थ्योरी है Core Accretion Model. इसके अनुसार, जैसे ही सूर्य बना, उसके चारों ओर भारी धातुएं. जैसे लोहा, निकल, और सिलिकेट्स एकत्र होने लगे. ये भारी तत्व आपस में टकराकर जुड़ते गए और एक छोटा सा पत्थरीला गोला बना, जो आगे चलकर बना धरती का कोर.

जब ये कोर बड़ा होता गया, तब इसके गुरुत्वाकर्षण ने और अधिक धूल और छोटे-छोटे ग्रह-बीज (planetesimals) को अपनी ओर खींचा. इसी प्रक्रिया में धरती की परतें बनने लगीं—केंद्र में भारी धातुएं नीचे बैठ गईं और हल्की चीज़ें ऊपर तैरती गईं, जिससे बना क्रस्ट यानी धरती की सतह.

चाँद की रहस्यमयी उत्पत्ति और एक टक्कर

जब धरती अपनी प्रारंभिक अवस्था में थी, तभी एक बहुत बड़ा ग्रह जैसे पिंड ने आकर इससे टक्कर मारी. इस टक्कर से धरती का बड़ा हिस्सा अंतरिक्ष में बिखर गया. लेकिन गुरुत्वाकर्षण ने उन्हें फिर से एक जगह खींचा और जो बना हमारा चाँद. ये घटना सिर्फ चाँद का जन्म नहीं थी, बल्कि धरती के घूर्णन, झुकाव और मौसम की स्थिरता में भी चमत्कारी भूमिका निभाई.

धरती पर जीवन कैसे शुरू हुआ?

शुरुआत में धरती पर कोई वातावरण नहीं था. लेकिन जैसे-जैसे धरती ठंडी होती गई, ज्वालामुखी फटने लगे और उन्होंने गैसें छोड़ीं कार्बन डाइऑक्साइड, जलवाष्प, मीथेन व अन्य. इन्हीं गैसों से बना वायुमंडल. एक समय था जब पृथ्वी पर पानी भी नहीं था. वैज्ञानिक मानते हैं कि आकाश से गिरने वाले उल्कापिंड और धूमकेतु पानी लेकर आए, जिन्होंने धीरे-धीरे महासागरों का निर्माण किया. और इसी पानी ने जीवन को जन्म देने की नींव रखी.

पृथ्वी की खास बात ये है कि ये "गोल्डीलॉक्स ज़ोन" में है ना ज़्यादा गरम, ना ज़्यादा ठंडी बस इतनी सही दूरी पर कि पानी तरल रूप में रह सके. और यही बना जीवन के पनपने का कारण.

अन्य ग्रहों की तुलना में पृथ्वी क्यों अलग है?

जब वैज्ञानिकों ने हमारे सौर मंडल से बाहर के ग्रहों (Exoplanets) का अध्ययन किया, तो उन्होंने पाया कि Core Accretion Model उन ग्रहों के निर्माण को भी बहुत हद तक समझा सकता है. 2005 में HD 149026 नामक तारे के चारों ओर एक विशाल ग्रह की खोज हुई, जिसके कोर की संरचना ने Core Accretion थ्योरी को मजबूती दी. इससे यह भी संकेत मिला कि हमारी पृथ्वी जैसी और भी दुनिया ब्रह्मांड में मौजूद हो सकती हैं.

जहां Core Accretion धीमी प्रक्रिया है, वहीं एक दूसरी थ्योरी है Disk Instability Model. इसके अनुसार, सौरमंडल की गैस और धूल अचानक से विशाल "गांठों" में बदल जाती है और वे सीधे एक विशाल ग्रह के रूप में आकार ले लेती हैं—वो भी सिर्फ कुछ हज़ार वर्षों में. यह मॉडल विशेष रूप से गैस दानवों (जैसे बृहस्पति और शनि) के निर्माण को बेहतर तरीके से समझाता है. इससे हमें यह भी समझ आता है कि ब्रह्मांड में कुछ ग्रहों का आकार इतना विशाल और संरचना इतनी अलग क्यों होती है.

छोटे कणों से बना विशाल संसार
2012 में वैज्ञानिकों ने एक नई थ्योरी पेश की Pebble Accretion. इसके अनुसार, छोटे-छोटे "pebbles" यानि धूल के छोटे कण तेज़ी से एक-दूसरे से जुड़ते हैं और बहुत तेज़ गति से बड़े ग्रहों के कोर बना सकते हैं. इस मॉडल में एक दिलचस्प बात सामने आई बड़े पिंड छोटे पिंडों को "बुली" करते हैं, यानि उन्हें किनारे धकेल देते हैं और खुद सभी कणों को निगलकर तेजी से बढ़ते हैं. इसने ग्रह निर्माण की गति को समझने में नई रोशनी डाली.

हालांकि वैज्ञानिकों ने कई मॉडल और सिद्धांत पेश किए हैं, लेकिन पृथ्वी का निर्माण आज भी एक रहस्यमयी कहानी है. हर नया टेलीस्कोप, हर नया एक्सोप्लैनेट, और हर नया स्पेस मिशन हमें एक नया सुराग देता है. CHEOPS, James Webb Space Telescope जैसे मिशन अब ब्रह्मांड में दूर-दराज़ के ग्रहों को देखकर इस रहस्य को हल करने की कोशिश कर रहे हैं.

हमारी धरती सिर्फ एक गोल चट्टान नहीं है, बल्कि यह ब्रह्मांड की सबसे अनोखी प्रयोगशाला है. इसकी बनावट, इसका स्थान, इसका पानी, इसकी जलवायु ये सब एक अद्भुत संयोग हैं. और इसी संयोग ने जन्म दिया हमें, यानी मानव जीवन को. जब भी आप ज़मीन पर पैर रखें, आसमान की ओर देखें या समंदर की लहरों की आवाज़ सुनें तो याद रखें, ये सब कुछ अरबों साल की एक अद्भुत यात्रा का परिणाम है.
Advertisement

Related articles

Advertisement