जिसे न तोड़ पाया औरंगज़ेब, न समझ पाई ASI... अयोध्या के पास है ये रहस्यमयी स्वयंभू शिवलिंग, काफी प्राचीन है 'धूरि जट रौद्र धाम' का इतिहास
औरंगजेब के आक्रमण के बाद भी रहा अटूट, गहराई पता करने में ASI भी रहा फेल, सावन में सुल्तानपुर के ‘धूरि जट रौद्र धाम’ में स्वयंभू शिवलिंग की देखते ही बनती है भव्यता...क्या है इसका इतिहास, क्या है इसकी कहानी, जानिए पूरी स्टोरी में.
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कहते हैं कि एक अच्छी चीज बाकी को भी अच्छी कर देती हैं. यह जीवन, दीन और दुनिया के हर पहलू पर लागू होता है. यही हुआ कुछ हुआ उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले के साथ, जो कि राम नगरी अयोध्या के काफी निकट है. इसे रामनगरी के सीमावर्ती होने के कारण धार्मिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है. यहां कई प्राचीन शिवलिंग स्थित हैं, जिनकी रहस्यमयता आज भी बनी हुई है. इन्हीं में से एक है सुल्तानपुर शहर से लगभग सात किलोमीटर दूर स्थित दिखौली गांव का प्राचीन शिवलिंग. मान्यता है कि इस स्थान पर स्वयंभू शिवलिंग प्रकट हुआ था.
प्राचीन, स्वयंभू और औरंगज़ेब के हमले में रहा अटूट यह शिवलिंग
स्थानीय लोगों का विश्वास है कि यह शिवलिंग सैकड़ों वर्षों पुराना है. जब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) ने इस शिवलिंग का निरीक्षण किया, तो वे इसकी गहराई और वास्तविक आयु का अनुमान लगाने में असमर्थ रहे. कहा जाता है कि मुग़ल शासक औरंगज़ेब ने भी इस प्राचीन मंदिर को ध्वस्त करने की कई कोशिशें कीं, लेकिन हर बार असफल रहा. इस तरह, यह स्थल न केवल आस्था का केंद्र है, बल्कि एक अद्भुत ऐतिहासिक रहस्य भी अपने भीतर समेटे हुए है.
सावन में ‘धूरि जट रौद्र धाम’ उमड़ता है आस्था का सैलाब
स्थानीय लोगों के अनुसार दिखौली ग्रामसभा में स्थित यह प्राचीन शिव मंदिर ‘धूरि जट रौद्र धाम’ के नाम से जाना जाता है. सावन के पावन महीने में यहां श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या दर्शन के लिए उमड़ती है. मंदिर के संरक्षक विपेन्द्र कुमार सिंह के अनुसार, इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग की कोई स्थापना नहीं की गई थी, बल्कि यह एक स्वयंभू शिवलिंग है, अर्थात् यह स्वयं प्रकट हुआ था.
काफी अटूट और गहरा है या शिवलिंग, ASI भी रहा फेल
इस शिवलिंग की गहराई और वास्तविक आयु जानने के उद्देश्य से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) ने लगभग 12 वर्ष पूर्व यहां सर्वेक्षण किया था. कार्बन डेटिंग जैसी वैज्ञानिक विधियों का सहारा लेने के बावजूद, शिवलिंग की गहराई और उसका वास्तविक कालखंड अब भी एक रहस्य बना हुआ है.
खंडित मूर्तियां दे रही हैं औरंगजेब की क्रूरता की गवाही
धूरि जट रौद्र धाम के नाम से प्रसिद्ध यह प्राचीन शिव मंदिर न सिर्फ धार्मिक, बल्कि ऐतिहासिक दृष्टि से भी सुल्तानपुर की एक महत्वपूर्ण धरोहर माना जाता है. मंदिर परिसर में आज भी लगभग हज़ार वर्ष पुरानी खंडित मूर्तियां मौजूद हैं, जो अपने आप में इतिहास की गवाही देती हैं.
स्थानीय निवासियों के अनुसार, इन मूर्तियों को मुग़ल शासक औरंगजेब के आदेश पर तोड़ा गया था. उसका उद्देश्य सनातन धर्म और इसकी सांस्कृतिक विरासत को नष्ट करना था. हालांकि, सन् 1935 में स्वर्गीय बाबू रूपनारायण सिंह ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाकर इसे पुनः श्रद्धा और भक्ति का केंद्र बना दिया. यह मंदिर आज भी सामाजिक समरसता का प्रतीक है, जहां दिखौली गांव की सभी जातियों के लोग एक साथ आकर पूजा-अर्चना करते हैं, और अपनी आस्था प्रकट करते हैं.
शिवरात्रि के दिन देखते ही बनती है भव्यता
लगभग 20 फीट ऊंचे टीले पर स्थित धूरि जट रौद्र धाम मंदिर में हर वर्ष महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर भव्य भंडारे का आयोजन किया जाता है. यह आयोजन श्रद्धालुओं की भारी भीड़ और भक्ति भाव के साथ संपन्न होता है.
इसके अलावा, हर तीसरे वर्ष मलमास के दौरान यहां एक माह तक लगातार कथा का आयोजन होता है. इस विशेष मौके पर टिकरी से मंदिर तक एक विशाल शिव बारात निकाली जाती है, जो पूरे क्षेत्र का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करती है.
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इस शिव बारात में हाथी, घोड़े, नंदी बैल और पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ 15 हज़ार से भी अधिक श्रद्धालु शामिल होते हैं. यह आयोजन केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक नहीं, बल्कि स्थानीय संस्कृति और परंपराओं का जीवंत उत्सव भी होता है.
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