Advertisement

नई दिल्ली पर हुए हादसे ने याद दिलाए वो इसी स्टेशन के तीन मंजर जब भगदड़ से कई लोगों ने गवाई थी जान

नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर शनिवार को हुई भगदड़ में 18 लोगों की जान चली गई। इस भगदड़ ने पुराने दर्दनाक हादसों की याद ताजा कर दी है। इस स्टेशन पर 2004, 2010 और 2012 में भी भगदड़ मची थी, जिसमें कई लोगों की जान गई थी। इस हादसे ने उन भयानक दृश्यों को फिर से लोगों के जेहन में ला दिया है

16 Feb, 2025
( Updated: 16 Feb, 2025
03:44 PM )
नई दिल्ली पर हुए हादसे ने याद दिलाए वो इसी स्टेशन के तीन मंजर जब भगदड़ से कई लोगों ने गवाई थी जान
कुंभ चलो।इस एक नारे ने देश के कोने कोने में रहने वाले और हिन्दू धर्म में आस्था रखने वाले लाखों - करोड़ों लोगों के दिलों में वो अलख जगाई जिससे बच्चा हो या बूढ़ा।महिलाओं ने भी प्रयागराज की तरफ जाने का ठान लिया।बची कुची कसर सोशल मीडिया पर आ रही मेला क्षेत्र की वीडियो ने पूरी कर दी।जो लोग प्रयाग हो आए थे वो प्रशासन की कुछ बदइंतज़ामी या कुछ सरकार की तारीफ़ करते दिखे।लेकिन वीडियो और सरकारी प्रचार को देखकर अब प्रयागराज जाने वालों की होड़ मचने लगी।नतीजा ये हुआ की गर्व से 40 करोड़ का आंकड़ा देने वालों के भीड़ देखकर हांथ पांव फूलने लगे। भीड़ बढ़ रही थी रोज़ाना रेलवे स्टेशनों से भीड़ - मारपीट की डरा देने वालीं तस्वीरें सामने आने लगी। लेकिन शायद अभी भी किसी हादसे का इंतज़ार किया जा रहा था। फिर आई 15 फ़रवरी की वो मनहूस रात। जब नई दिल्ली पर हुए हादसे में 18 लोगों की जान चली गई। कल हुए इस हादसे ने इसी स्टेशन पर हुए उन तीन हादसों को आंखों के सामने ला दिया जिसे शायद दिल्ली या देश में रहने वाला भूल गया था। हां हमें भूलने की आदत है। हम भूल जाते हैं हमारे आस पास हुए हादसों को। मौतों के आंकड़ों को भी। मुआवज़े के तले अपनों को भुलाने का दबाव डाला जाता है।

2004 का वो वक़्त था जब 13 नवंबर को बिहार जाने वाली ट्रेन को पकड़ने के लिए ओवरब्रिज पर हज़ारों की भीड़ थी।लोगों किसी भी सूरत में एक दूसरे को पीछे छोड़ ट्रेन पकड़ना चाहते थे। यही वजह बनी भगदड़ की।लोग एक दूसरे पर गिर पड़े थे।आख़िर में इस भगदड़ में 5 महिलाओं की मौत हो गई थी और कई लोग घायल हुए थे।

2010 में भी कुछ ऐसा ही हुआ था। मई महीने के दिन थे गर्मियों की भीड़ को दौरान, पटना जाने वाली ट्रेन का प्लेटफ़ॉर्म आख़िरी मिनट में बदलने से नई दिल्ली स्टेशन पर भगदड़ मच गई थी। इसमें दो लोगों की जान चला गई थी। और कम से कम 15 यात्री घायल हुए थे। तब अधिकारियों के मुताबिक दोपहर लगभग 2.50 बजे बिहार संपर्क क्रांति एक्सप्रेस के प्लेटफार्म 12 पर आते ही भगदड़ शुरू हो गई। ट्रेन को प्लेटफार्म 13 से रवाना होना था। लेकिन, रवानगी से कुछ मिनट पहले प्लेटफार्म बदल दिया गया।यात्री अपना सामान लेकर नए प्लेटफार्म पर पहुंचने के लिए धक्का-मुक्की करने लगे, जिससे भगदड़ जैसी स्थिति पैदा हो गई।

2012 में भी बिहार की तरफ़ जाने वाली ट्रेन पकड़ने के लिए सैकड़ों लोग प्लेटफार्म के ऊपर बने पुल पर भागे थे इसी दौरान भगदड़ मची।जिसमें एक 35 साल की महिला और एक 14 साल के लड़के की मौत हो गई थी। रेलवे के मुताबिक़ विक्रमशिला एक्सप्रेस अपने निर्धारित समय से पांच मिनट देरी से दोपहर 2.50 बजे प्लेटफार्म 12 की बजाय प्लेटफार्म 13 से रवाना हुई थी। इसके तुरंत बाद, यात्रियों की भीड़ प्लेटफार्म 13 पर खड़ी सप्त क्रांति एक्सप्रेस की ओर दौड़ पड़ी, जो आमतौर पर प्लेटफार्म 12 से चलती है। यानी आख़िरी समय में प्लेटफ़ार्म बदलने से लोगों में पैनिक क्रियिएट हुआ।

और अब बीती रात नई दिल्ली के इसी स्टेशन पर जो हादसा हुआ वो भी कुछ ऐसा ही था। जब आख़री समय पर प्लेटफ़ॉर्म बदला गया। प्रयागराज जाने वालों की भारी भीड़ थी।

प्रयागराज स्पेशल ट्रेन, भुवनेश्वर राजधानी और स्वतंत्रता सेनानी एक्स। तीनों ही प्रयागराज जाने वाले थीं। दो ट्रेनें भुवनेश्वर राजधानी और स्वतंत्रता सेनानी लेट थीं। इन तीनों ट्रेनों की भीड़ प्लेटफॉर्म-14 पर थी। जब प्रयागराज स्पेशल ट्रेन यहां पहुंची, तभी अनाउंस हुआ कि भुवनेश्वर राजधानी प्लेटफॉर्म नं. 16 पर आ रही है। सुनते ही 14 पर मौजूद भीड़ 16 की तरफ भागी।

कई लोग टिकट काउंटर पर थे। इनमें 90% प्रयागराज जाने वाले थे। अचानक ट्रेन आने का अनाउंसमेंट हुआ तो लोग बिना टिकट प्लेटफार्म की तरफ भागे। इससे भगदड़ मची।

और इस भगदड़ में अब तक आए सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ 18 लोगों की जान चली गई है और कई घायलों का इलाज जारी है।

इस सब के बीच सवाल ये है कि 

क्या पिछले महीने प्रयागराज मेला क्षेत्र में हुए हादसे से भी कुछ नहीं सीखा ?

ख़बरों के मुताबिक़ हर घंटे 1500 जरनल टिकट कट रहे थे तब भी भीड़ का अंदाज़ा नहीं हुआ ?

रेलवे प्रशासन और ज़िम्मेदार लोग नहीं जानते थे कि सप्ताह के आख़िरी दो दिन भीड़ बढ़ सकती है तो इसके लिए इंतज़ाम क्यों नहीं थे ?

क्या सिर्फ़ आंख मूंद कर बैठे रहना और लोगों को उनके हाल पर छोड़ देना ये सही था ?

भगदड़ होने के बाद जो फुर्ती दिखाई गई स्टेशन को तुरंत ख़ाली करा दिया गया इसका इंतज़ार किया क्यों गया ?

 ये कुछ सवाल हैं जो पूछे जाने चाहिए और पूछे भी जा रहे हैं। कब तब ऐसा होता रहेगा। कब तक हादसों के बाद मुआवज़े और सोशल मीडिया के ज़रिए मृतकों के परिजनों को सांव्तना दी जाती रहेगी ?

Tags

Advertisement
Advertisement
अधिक
Welcome में टूटी टांग से JAAT में पुलिस अफसर तक, कैसा पूरा किया ये सफर | Mushtaq Khan
Advertisement
Advertisement