फर्जी प्रमाण पत्र से सरकारी टीचर बनी पाकिस्तानी महिला, बरेली का बड़ा मामला
उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के माधोपुर प्राथमिक विद्यालय में सहायक अध्यापिका के रूप में कार्यरत शुमायला खान का असली सच सामने आने के बाद शिक्षा विभाग में हड़कंप मच गया। शुमायला, जो पिछले आठ वर्षों से सरकारी स्कूल में पढ़ा रही थी, असल में पाकिस्तान की नागरिक निकली।

बरेली (उत्तर प्रदेश) के एक सरकारी स्कूल में पढ़ाने वाली सहायक अध्यापिका शुमायला खान का मामला सामने आते ही शिक्षा विभाग में हड़कंप मच गया। यह महिला, जो पिछले आठ साल से बरेली के माधोपुर प्राथमिक विद्यालय में पढ़ा रही थी, अब जांच के दायरे में है। आरोप है कि उसने पाकिस्तान की नागरिकता होने के बावजूद फर्जी दस्तावेजों के सहारे उत्तर प्रदेश में सरकारी नौकरी हासिल कर ली। यह मामला केवल एक फर्जीवाड़ा नहीं है, बल्कि यह प्रशासनिक व्यवस्था और दस्तावेज सत्यापन की प्रक्रिया पर भी बड़े सवाल खड़े करता है।
2015 में हुई थी नियुक्ति
शुमायला खान को 2015 में बरेली के माधोपुर प्राथमिक विद्यालय में सहायक अध्यापिका के पद पर नियुक्त किया गया था। नियुक्ति के लिए उसने जो निवास प्रमाण पत्र और अन्य कागजात लगाए थे, वे रामपुर जिले के बताए गए। शुरुआती जांच में ये कागजात पूरी तरह सही प्रतीत हुए, लेकिन गहराई से जांच करने पर पता चला कि निवास प्रमाण पत्र फर्जी है।
कैसे हुआ फर्जीवाड़े का खुलासा?
शिक्षा विभाग को पिछले कुछ समय से शुमायला खान की नागरिकता को लेकर शिकायतें मिल रही थीं। शिकायतों की गंभीरता को देखते हुए विभाग ने मामले की जांच शुरू की। तहसीलदार (सदर) रामपुर द्वारा किए गए दस्तावेजों के सत्यापन में पता चला कि शुमायला का निवास प्रमाण पत्र जाली है। इसके साथ ही यह भी सामने आया कि शुमायला पाकिस्तान की नागरिक है, जिसने नौकरी पाने के लिए अपने देश की नागरिकता छिपाई और फर्जी दस्तावेजों के सहारे उत्तर प्रदेश का मूल निवास प्रमाण पत्र बनवाया।
जांच रिपोर्ट सामने आने के बाद शिक्षा विभाग ने तुरंत प्रभाव से शुमायला खान को निलंबित कर दिया। बेसिक शिक्षा अधिकारी ने थाने में मुकदमा दर्ज करवाया और अब शुमायला के खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू कर दी गई है। पुलिस अधीक्षक (उत्तरी) मुकेश चंद मिश्रा ने बताया कि यह मामला केवल फर्जी दस्तावेजों का नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और प्रशासनिक चूक का भी बड़ा मुद्दा है।
प्रशासनिक चूक, कहां हुई गलती?
इस मामले ने प्रशासनिक चूक और सत्यापन प्रक्रिया की खामियों को उजागर कर दिया है। सवाल उठ रहा है कि नियुक्ति प्रक्रिया में दस्तावेजों की गहन जांच क्यों नहीं की गई? यह भी जांच का विषय है कि रामपुर में फर्जी प्रमाण पत्र किसने और कैसे बनाया। शुमायला ने अपने फर्जी प्रमाण पत्र के लिए रामपुर के एसडीएम (सदर) कार्यालय से जारी निवास प्रमाण पत्र का उपयोग किया। यह प्रमाण पत्र सरकारी प्रक्रिया के अनुसार बनाया गया प्रतीत होता है, लेकिन इसके सत्यापन में लापरवाही हुई।
यह मामला केवल बरेली या रामपुर तक सीमित नहीं है। शुमायला के फर्जीवाड़े ने शिक्षा विभाग को हिला कर रख दिया है। अधिकारियों के अनुसार, यह पहला मामला है जब किसी पाकिस्तानी नागरिक ने उत्तर प्रदेश में सरकारी नौकरी हासिल कर ली हो। इससे यह भी संकेत मिलता है कि फर्जी दस्तावेजों के सहारे अन्य सरकारी विभागों में भी ऐसे मामले हो सकते हैं।
हालांकि अब इस मामले में शुमायला के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है और गिरफ्तारी के प्रयास जारी हैं। यदि आरोप साबित होते हैं, तो उसे न केवल नौकरी से बर्खास्त किया जाएगा, बल्कि वह भारतीय कानून के तहत सजा भी भुगतेगी। इस घटना ने देश की सुरक्षा पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। यदि एक पाकिस्तानी नागरिक इस तरह सरकारी नौकरी हासिल कर सकती है, तो यह बड़े खतरे की घंटी है। सरकार को अब ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए दस्तावेज सत्यापन प्रक्रिया को सख्त और पारदर्शी बनाने की जरूरत है।
शुमायला खान का मामला न केवल प्रशासनिक चूक का उदाहरण है, बल्कि यह भी दिखाता है कि फर्जी दस्तावेजों के सहारे कितनी आसानी से सरकारी व्यवस्था में सेंध लगाई जा सकती है। यह घटना हमें सिखाती है कि देश की सुरक्षा और प्रशासनिक प्रक्रियाओं को मजबूत करना कितना जरूरी है।