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अब 17 KM ऊपर आसमान से होगी निगरानी, जानिए DRDO के नए जासूसी एयरशिप की ताकत

3 मई 2025 को DRDO ने मध्य प्रदेश के श्योपुर से एक ऐसे एयरशिप का सफल परीक्षण किया जो 17 किलोमीटर की ऊंचाई से ज़मीन पर नज़र रख सकता है। यह स्ट्रेटोस्फेरिक एयरशिप आतंकियों की गतिविधियों, घुसपैठ और IED जैसे खतरों पर निगरानी रखने में अहम भूमिका निभाएगा।

04 May, 2025
( Updated: 04 May, 2025
02:20 AM )
अब 17 KM ऊपर आसमान से होगी निगरानी, जानिए DRDO के नए जासूसी एयरशिप की ताकत
भारतीय रक्षा तंत्र में एक नया अध्याय तब जुड़ा जब DRDO ने अपने सबसे महत्वाकांक्षी निगरानी प्लेटफॉर्म का पहला सफल परीक्षण किया। मध्यप्रदेश के श्योपुर स्थित ट्रायल साइट से लॉन्च किया गया यह 'स्ट्रेटोस्फेरिक एयरशिप' अब सिर्फ एक तकनीकी सफलता नहीं, बल्कि भारत की सुरक्षा रणनीति का नया हथियार बन गया है। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद जब देश गुस्से और चिंता में डूबा है, तभी DRDO की इस उड़ान ने यह साबित कर दिया कि अब दुश्मनों की हर हरकत पर 17 किलोमीटर ऊपर से भी पैनी नजर रखी जाएगी।

क्या है स्ट्रेटोस्फेरिक एयरशिप, क्यों है खास?

स्ट्रेटोस्फेरिक एयरशिप एक विशाल, हल्का लेकिन अत्यधिक तकनीकी गुब्बारा है जो पृथ्वी की सतह से लगभग 55,000 फीट ऊपर यानी 17 किलोमीटर की ऊंचाई पर उड़ता है। इसे किसी उपग्रह की तरह स्पेस में नहीं भेजा जाता, बल्कि यह पृथ्वी के ऊपरी वायुमंडलीय हिस्से स्ट्रेटोस्फियर  में स्थिर होकर तैनात रहता है। इस ऊंचाई से न केवल दूर-दूर तक निगरानी संभव है, बल्कि यह सामान्य ड्रोन्स और हेलिकॉप्टर्स की तुलना में कहीं ज्यादा सटीक, लंबी दूरी की और लगातार निगरानी कर सकता है।

इस एयरशिप में DRDO की आगरा स्थित ‘एरियल डिलीवरी रिसर्च एंड डेवलपमेंट एस्टेब्लिशमेंट’ (ADRDE) द्वारा तैयार किया गया एक विशेष पेलोड लगाया गया है। पेलोड में हाई-रेजोल्यूशन कैमरे, नाइट विजन सेंसर, थर्मल इमेजिंग और सिग्नल इंटेलिजेंस सिस्टम्स लगे हैं। इसका मतलब है, अब आतंकियों के पास छिपने की कोई जगह नहीं बची।

ट्रायल में क्या हुआ खास?

श्योपुर से उड़ान भरते समय एयरशिप को खास 'एनवेलप प्रेशर कंट्रोल सिस्टम' और 'इमरजेंसी डिफ्लेशन सिस्टम' से लैस किया गया था। इसका उद्देश्य था एयरशिप की व्यवहारिक क्षमताओं को परखना। करीब 62 मिनट की इस उड़ान के दौरान एयरशिप को 17 किलोमीटर ऊपर ले जाया गया और वहां से महत्वपूर्ण डाटा इकट्ठा किया गया। ट्रायल के बाद सिस्टम को सुरक्षित रूप से रिकवर कर लिया गया और अब DRDO इसकी फाइनल जांच करेगा।

DRDO के वैज्ञानिकों के अनुसार, यह परीक्षण न केवल सफल रहा बल्कि यह भविष्य की स्ट्रेटोस्फेरिक निगरानी प्रणालियों के लिए एक मजबूत आधार भी बन गया है। यह तकनीक आगे चलकर सेना, ITBP, BSF और अन्य सुरक्षा एजेंसियों को आतंकवादी गतिविधियों पर तेज और स्पष्ट नजर रखने में मदद करेगी।

पहलगाम हमले के बाद इस तकनीक का क्या मतलब है?

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हाल ही में हुए आतंकी हमले ने देश को हिला कर रख दिया था। हमले के बाद से घाटी में तलाशी अभियान जारी है, लेकिन मुश्किल भौगोलिक परिस्थितियों, घने जंगलों और आतंकियों के गुप्त रास्तों ने सुरक्षा बलों की चुनौती बढ़ा दी है। ऐसे में जब पारंपरिक निगरानी के तरीके नाकाफी साबित हो रहे हैं, तब यह एयरशिप एक उम्मीद की किरण बनकर उभरा है।

यह तकनीक सुरक्षा बलों को उन इलाकों में नजर रखने की शक्ति देती है जहां इंसान की पहुंच बेहद मुश्किल है। ये एयरशिप ऊंचाई से आतंकियों की मूवमेंट, घुसपैठ की कोशिशें और यहां तक कि बम या IED लगाने जैसी गतिविधियों को पहले ही पकड़ सकता है। और सबसे खास बात यह बिना रडार में आए, चुपचाप निगरानी कर सकता है। स्ट्रेटोस्फेरिक एयरशिप न केवल निगरानी करता है, बल्कि यह रियल टाइम डाटा भी भेजता है। यानी अगर घाटी में कहीं संदिग्ध गतिविधि हो रही है तो उसका लाइव फीड सुरक्षा एजेंसियों के पास तुरंत पहुंचता है। इससे कार्रवाई का समय घट जाता है और सफलता की संभावना बढ़ जाती है।

दूसरी तरफ, यह तकनीक किसी उपग्रह की तुलना में कई गुना सस्ती है। उपग्रह को एक बार लॉन्च करने के बाद उसमें बदलाव करना मुश्किल होता है, लेकिन इस एयरशिप को ज़रूरत के मुताबिक मोडिफाई किया जा सकता है, नीचे लाकर अपडेट किया जा सकता है और फिर से उड़ाया जा सकता है।

भारत की सैन्य तैयारियों में एक नया अध्याय

इस तरह की निगरानी तकनीकें अब तक अमेरिका, चीन और रूस जैसे देशों के पास ही थीं। लेकिन DRDO ने इस परीक्षण के साथ भारत को उस लीग में खड़ा कर दिया है जहां हम न केवल अपनी सीमाओं की बेहतर रक्षा कर सकते हैं, बल्कि भविष्य में यह तकनीक सिविलियन इस्तेमाल के लिए भी खोली जा सकती है जैसे बाढ़ नियंत्रण, वन क्षेत्रों की निगरानी, और आपदा प्रबंधन।

अब जब ट्रायल सफल हो चुका है, तो उम्मीद की जा रही है कि आने वाले महीनों में ऐसे कई स्ट्रेटोस्फेरिक एयरशिप्स जम्मू-कश्मीर, अरुणाचल प्रदेश, और भारत-पाक बॉर्डर के संवेदनशील इलाकों में तैनात किए जाएंगे। यह न केवल आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में हमारी ताकत बढ़ाएगा, बल्कि सीमा पार से हो रही किसी भी साजिश को पहले ही पकड़ने में मदद करेगा। इसके अलावा, DRDO अब इस तकनीक को और एडवांस बनाने पर काम कर रहा है। भविष्य में इसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ऑटोमैटिक टारगेट डिटेक्शन और सैटेलाइट लिंकिंग जैसी क्षमताएं भी जोड़ी जा सकती हैं।

DRDO का यह स्ट्रेटोस्फेरिक एयरशिप न केवल तकनीक की एक बड़ी छलांग है, बल्कि यह भारत की सुरक्षा सोच में आया एक बड़ा बदलाव भी है। यह दिखाता है कि अब भारत पारंपरिक तरीकों से आगे बढ़कर टेक्नोलॉजी की मदद से सुरक्षा को नए स्तर पर ले जा रहा है। पहलगाम जैसे हमले अब सिर्फ एक चेतावनी नहीं, बल्कि एक मौका हैं अपनी तैयारी को और मजबूत बनाने का।

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