'तारीख पर तारीख' नहीं...! यहां बुजुर्ग दंपति को न्याय देने खुद सड़क पर आ गए जज साहब, वहीं सुनाया फैसला; हो रही तारीफ
तेलंगाना के निजामाबाद जिले के बोधन कस्बे में न्याय की एक ऐसी मिसाल पेश की गई, जो न सिर्फ संवैधानिक दायित्व को दर्शाती है, बल्कि मानवीय संवेदनाओं का आदर्श भी बन गई. यह घटना 30 अप्रैल को तब सामने आई जब एक बुजुर्ग दंपति की न्याय तक पहुंच की सीमाओं को समझते हुए अतिरिक्त जूनियर सिविल जज एस्सम्पेल्ली साई शिवा ने न्यायालय परिसर के बाहर, सड़क पर ही फैसला सुनाया.

Viral News: तेलंगाना के निजामाबाद जिले के बोधन कस्बे में न्याय की एक ऐसी मिसाल पेश की गई, जो न सिर्फ संवैधानिक दायित्व को दर्शाती है, बल्कि मानवीय संवेदनाओं का आदर्श भी बन गई. यह घटना 30 अप्रैल को तब सामने आई जब एक बुजुर्ग दंपति की न्याय तक पहुंच की सीमाओं को समझते हुए अतिरिक्त जूनियर सिविल जज एस्सम्पेल्ली साई शिवा ने न्यायालय परिसर के बाहर, सड़क पर ही फैसला सुनाया.
इंसाफ की अनूठी मिसाल
यह घटना उस समय सामने आई जब बुजुर्ग दंपति — कांतापु सयाम्मा और कांतापु नादपी गंगाराम — को अपने खराब स्वास्थ्य के कारण अदालत कक्ष में उपस्थित होना संभव नहीं था. उन्होंने एक रिक्शे में बैठकर अदालत परिसर तक पहुंचने का प्रयास किया, लेकिन चलने में असमर्थ होने के कारण वे अदालत भवन में प्रवेश नहीं कर सके. इस मानवीय स्थिति को समझते हुए जज साई शिवा स्वयं अदालत से बाहर आए और सड़क पर रिक्शे के पास ही खड़े होकर फैसला सुनाया.
JUDGE DIMISSED CASE RIGHT AT THE RICKSHAW
The elderly couple arrived at the court premises in an auto-rickshaw but were unable to walk to the courtroom due to physical frailty.
Upon learning of their presence and condition, JFCM Magistrate E Sai Shiva stepped down from the… pic.twitter.com/Oj1r4hBVU2
— ShoneeKapoor (@ShoneeKapoor) May 1, 2025
तीन साल पुराना मामला: झूठे आरोप से बरी
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The elderly couple arrived at the court premises in an auto-rickshaw but were unable to walk to the courtroom due to physical frailty.
Upon learning of their presence and condition, JFCM Magistrate E Sai Shiva stepped down from the… pic.twitter.com/Oj1r4hBVU2
यह मामला वर्ष 2021 से चल रहा था, जब दंपति के खिलाफ उनकी बहू ने भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए (वैवाहिक क्रूरता) के तहत शिकायत दर्ज कराई थी. दिसंबर 2021 में आरोप-पत्र दाखिल होने के बाद मुकदमे की सुनवाई बोधन की अदालत में प्रारंभ हुई. तीन वर्षों तक चली करीब 30 सुनवाइयों के बाद न्यायाधीश ने 22 अप्रैल 2025 को फैसला सुरक्षित रख लिया था.
हालांकि, अप्रैल के पहले सप्ताह में अदालत को जानकारी दी गई कि दंपति एक दुर्घटना के कारण चलने में असमर्थ हैं. इसी को देखते हुए न्यायाधीश ने संवेदनशीलता का परिचय देते हुए अदालत की दीवारों से बाहर आकर फैसला सुनाने का निर्णय लिया.
न्याय के साथ करुणा की जीत
न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय में स्पष्ट कहा गया कि “आरोपी नंबर 1 और 2 को आईपीसी की धारा 498-ए के अंतर्गत दोषी नहीं पाया गया.” न्यायालय ने माना कि दंपति पर लगाए गए क्रूरता के आरोप प्रमाणित नहीं हो सके और उन्हें आरोपों से पूर्णतः बरी कर दिया गया.
सोशल मीडिया पर तारीफों की बौछार
जैसे ही यह घटना सामने आई, जज एस्सम्पेल्ली साई शिवा की संवेदनशीलता और मानवीय दृष्टिकोण को सोशल मीडिया पर काफी सराहा गया. लोगों ने इस निर्णय को भारत में न्याय प्रणाली की सकारात्मक दिशा की मिसाल बताया. हालांकि, इसने देश में न्यायिक बुनियादी ढांचे की कमजोरियों की ओर भी ध्यान आकर्षित किया, जहां बुजुर्ग और असहाय लोगों के लिए कोर्ट तक पहुंच एक बड़ी चुनौती बनी हुई है.