Supreme Court ने भले ही फैसले पर रोक लगा दी हो, Yogi को जो हासिल करना था वो कर लिया
दुकानदारों को नेम प्लेट लगाने का आदेश भी योगी सरकार ने यूं ही नहीं दिया था। सरकार के इस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने भले ही अंतरिम रोक लगा दी हो लेकिन योगी को जो हासिल करना था वो हासिल कर लिया और साबित कर दिया वो शेर नहीं सवा शेर हैं ।

चार जून को आए चुनावी नतीजों के बाद से ही उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है।एक तरफ जहां योगी को सत्ता से हटाने की खबरें आईं तो वहीं दूसरी तरफ योगी और केशव के बीच कथित झगड़े को लेकर भी खूब खबरें आईं और अब तो ये कहा जा रहा है कि दुकानदारों को नेम प्लेट लगाने का आदेश भी योगी सरकार ने यूं ही नहीं दिया था। सरकार के इस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने भले ही अंतरिम रोक लगा दी हो, लेकिन योगी को जो हासिल करना था वो हासिल कर लिया और साबित कर दिया वो शेर नहीं सवा शेर हैं।
योगी के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक
दरअसल चार सौ पार का नारा देने वाली बीजेपी को इस बार के लोकसभा चुनाव में तो सरकार बनाने लायक सीट भी हासिल नहीं हुई।तो इसकी सबसे बड़ी वजह योगी का उत्तर प्रदेश ही था क्योंकि जिस उत्तर प्रदेश से बीजेपी को कम से सत्तर से ज्यादा सीटों की उम्मीद थी।उस उत्तर प्रदेश में बीजेपी महज तैंतीस सीटों पर ही सिमट कर रह गई। जिसके बाद से ही योगी सरकार में सबकुछ ठीक नहीं लग रहा है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि योगी और केशव के बीच कथित झगड़ा अपने चरम पर पहुंच गया है। तो वहीं दिल्ली वाले भी योगी को सत्ता से हटाने की कोशिश में लगे हुए हैं,ऐसी तमाम अटकलों के बीच योगी सरकार ने आदेश दे दिया कि कांवड़ रूट पर जितने भी होटल, ढाबे या ठेले वाले हैं सबको अपनी दुकानों पर नाम लिखना होगा। फिर वो चाहे हिंदू हों मुसलमान हों, या फिर किसी भी धर्म के हों यानि ये आदेश सबके लिए था। लेकिन विपक्ष ने इसे हिंदू मुसलमान बना दिया और मामला सीधे सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया, जहां योगी के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी गई। जिससे योगी विरोधी इस कदर खुशी से उछलने लगे कि सपाई मुखिया अखिलेश यादव ने तो योगी पर तंज मारते हुए यहां तक कह दिया कि - एक नयी ‘नाम-पट्टिका’ पर लिखा जाए : सौहार्दमेव जयते।
लेकिन दैनिक भास्कर के राजनीतिक संपादक केपी मलिक ने तो सुप्रीम कोर्ट के फैसले और योगी के आदेश का एक अलग ही विश्लेषण किया है।उन्होंने दोनों मामलों को मोदी और शाह से जोड़ते हुए लिखा-
दुकानों पर नाम लिखने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने बेशक अंतरिम रोक लगा दी हो, बाबा को जो हासिल करना था कर लिया, बाबा ने तो अपना वकील भी सुप्रीम कोर्ट में खड़ा नहीं किया, बाबा को हटाने की बड़ी साजिश को बाबा ने एक झटके में धराशायी कर दिया, बाबा जितना दिखता है उससे ज्यादा गहरा है, साहेब और चाणक्य के हाथ आने वाला नहीं है, शेर को सवा शेर मिल गया।
तो वहीं एक और पोस्ट में वरिष्ठ पत्रकार केपी मलिक ने योगी के फैसले को यूपी की दस सीटों पर होने वाले उपचुनाव से पहले बीजेपी की रणनीति से भी जोड़ कर देख रहे हैं।उन्होंने एक और पोस्ट में लिखा -
पश्चिमी यूपी के मुजफ्फरनगर जिले में कांवड़ यात्रा के तहत दुकानों पर नाम लिखने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने बेशक अंतरिम रोक लगा दी हो, लेकिन इस मुद्दे ने सियासी रूप ले लिया है सड़क से लेकर संसद तक यह मुद्दा गूंज रहा है, पश्चिम उत्तर प्रदेश के मुख्य सियासी दल रालोद प्रमुख ने इस विषय पर विरोध का स्टैंड लिया है लेकिन वह सत्ता के साथ बने हुए हैं, तो क्या सियासी दलों की मजबूरी का दोहरा चरित्र भी देखने को मिल रहा है? वहीं दूसरी और इसके पीछे सत्ताधारी दल भाजपा की रणनीति मानी जा रही है कि उत्तर प्रदेश में 10 विधानसभाओं पर उपचुनाव है, उसके मद्देनजर यह फैसला लिया गया है लेकिन असली सच्चाई क्या है? यह अभी किसी को नहीं पता।
दुकानों पर नेम प्लेट लिखवाने के आदेश को उपचुनाव के लिए बीजेपी की रणनीति से जोड़ कर इसलिये भी देखा जा रहा है, क्योंकि मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक सोमवार को जब इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही थी।तो उस वक्त योगी सरकार की ओर से कोई वकील नहीं मौजूद था।इस मामले पर वकील विनीत जिंदल ने बताया कांवड़ यात्रा मामले में तीनों राज्यों की ओर से कोई भी सुप्रीम कोर्ट में उपस्थित नहीं था जिसकी वजह से नेम प्लेट के आदेश पर कोर्ट ने स्टे लगाया।पूरे मामले में राज्यों के आदेश को एक धर्म विशेष के खिलाफ बताया जा रहा है जो गलत है,यही तर्क दे कर आज याचिकाकर्ताओं को स्टे भी मिला है लेकिन तीनों राज्यों का आदेश न्याय संगत और कानून के मुताबिक है।
बीजेपी को चुनाव में मिली करारी हार के बाद भले ही योगी को सत्ता से हटाने की अटकलें लगाई जाती रही हों लेकिन योगी के दम के आगे दिल्ली वाले भी बेदम नजर आए। उन्हें सत्ता से हटाना तो दूर की बात है योगी आज भी यूपी की सत्ता में बरकरार हैं और अब तो डिप्टी सीएम केशव मौर्य की दिल्ली दौड़ पर भी लगता है ब्रेक लग गया है, यानि एक तरफ जहां योगी ने एक झटके में खुद के खिलाफ हो रही साजिश को बेनकाब कर दिया। तो वहीं उपचुनाव से पहले नेम प्लेट का मुद्दा उछाल कर सियासी माइलेज लेने की भी पूरी तैयारी कर ली है, क्योंकि योगी सरकार को अगर अपने आदेश के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट में लड़ना ही होता तो सरकार अपना वकील जरूर खड़ा करती लेकिन कहा तो यहां तक जा रहा है कि योगी सरकार के फैसले के बचाव में कोई वकील ही मौजूद नहीं था।
अब देखना ये है कि 26 जुलाई को होने वाली अगली सुनवाई में योगी सरकार की ओर से कोई वकील जाता है या नहीं। वैसे आपको बता दें अयोध्या में बीजेपी को मिली करारी हार के बाद भले ही विपक्ष इसे हिंदुत्व की हार बता रहा है, लेकिन इसके बावजूद योगी आदित्यनाथ किसी भी कीमत पर बैकफुट पर आने वाले नेताओं में नहीं हैं।क्योंकि हिंदुत्व ही योगीकी राजनीति का मुख्य आधार है। योगी के इसी दम को देख कर वरिष्ठ पत्रकार केपी मलिक ने पीएम मोदी और अमित शाह की ओर इशारा करते हुए यहां तक कह दिया कि शेर को सवाशेर मिल गया।