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भारत का अंतरिक्ष में बड़ा कदम, श्रीहरिकोटा में बनेगा अत्याधुनिक लॉन्च पैड

भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में एक बड़ा बदलाव आने वाला है। श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र में तीसरे लॉन्च पैड के निर्माण की मंजूरी दी गई है। इस लॉन्च पैड की क्षमता 30,000 टन वजनी अंतरिक्ष यानों को पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित करने की होगी। यह "गगनयान" जैसे मानव मिशनों और चंद्रमा पर अंतरिक्ष यात्रियों को भेजने की योजना का मुख्य आधार बनेगा।

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17 Jan 2025
( Updated: 11 Dec 2025
09:54 AM )
भारत का अंतरिक्ष में बड़ा कदम, श्रीहरिकोटा में बनेगा अत्याधुनिक लॉन्च पैड
भारत के अंतरिक्ष इतिहास में एक और बड़ी छलांग की तैयारी हो रही है। चंद्रमा पर मानव मिशन और अंतरिक्ष में नई ऊंचाइयों को छूने की योजनाओं के बीच, श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र में तीसरे लॉन्च पैड के निर्माण की मंजूरी ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) को नई दिशा दी है। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने हाल ही में इस परियोजना की घोषणा की, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र को नई ऊंचाइयों पर ले जाने की एक और कड़ी है।

श्रीहरिकोटा का तीसरा लॉन्च पैड, भारत के बढ़ते अंतरिक्ष अभियानों के लिए मील का पत्थर साबित होगा। मौजूदा लॉन्च पैड्स के मुकाबले, यह पैड तकनीकी दृष्टि से अधिक उन्नत होगा और भारी अंतरिक्ष यान को पृथ्वी की निचली कक्षा (LEO) में स्थापित करने की क्षमता रखेगा। जहाँ पहले और दूसरे लॉन्च पैड की मौजूदा क्षमता 8,000 टन है, वहीं नया लॉन्च पैड 30,000 टन वजनी अंतरिक्ष यान को प्रक्षेपित करने में सक्षम होगा। इस परियोजना की कुल लागत 3,985 करोड़ रुपये तय की गई है और इसे अगले चार वर्षों में पूरा करने का लक्ष्य है। यह लॉन्च पैड भारत के आगामी "गगनयान" मानव मिशन और अन्य अंतरिक्ष अभियानों को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

वहीं आपको बता दें कि भारत के अंतरिक्ष अभियानों की नींव पहले लॉन्च पैड से रखी गई थी, जिसे 30 साल पहले PSLV (पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल) अभियानों के लिए बनाया गया था। इसके बाद, दूसरा लॉन्च पैड 20 साल पहले स्थापित किया गया, जो मुख्य रूप से GSLV और LVM3 अभियानों के लिए उपयोगी रहा। चंद्रयान-3 जैसे मिशन इसी दूसरे लॉन्च पैड से प्रक्षेपित किए गए। हालांकि, बढ़ते वाणिज्यिक और राष्ट्रीय अभियानों के कारण, मौजूदा लॉन्च पैड पर दबाव बढ़ रहा था। ऐसे में तीसरा लॉन्च पैड इसरो की लॉन्च क्षमताओं को तीन गुना तक बढ़ा देगा।

तीसरे लॉन्च पैड की विशेषताएं

नया लॉन्च पैड इसरो की अब तक की सबसे आधुनिक तकनीकों से लैस होगा। इसमें एनजीएलवी (नेक्स्ट जेनरेशन लॉन्च व्हीकल) के लिए विशेष सुविधाएं होंगी, जिसकी ऊंचाई 91 मीटर होगी, जो दिल्ली की कुतुब मीनार से भी अधिक है। यह लॉन्च पैड न केवल मानव मिशनों को सपोर्ट करेगा, बल्कि यह वाणिज्यिक अभियानों के लिए भी उपयोगी होगा। इस लॉन्च पैड का निर्माण उद्योग भागीदारी के साथ किया जाएगा, जिससे भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी कंपनियों की भागीदारी भी बढ़ेगी। यह न केवल तकनीकी दृष्टि से एक उपलब्धि होगी, बल्कि यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए भी बड़ा योगदान देगी।

भारत का यह कदम वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने की दिशा में एक और मजबूत कदम है। आज विश्व भर में उपग्रह प्रक्षेपण के क्षेत्र में भारत एक भरोसेमंद नाम बन चुका है। तीसरे लॉन्च पैड के निर्माण से भारत बड़े और भारी उपग्रहों के प्रक्षेपण में भी अग्रणी भूमिका निभा सकेगा। इस परियोजना से भारत की उच्च प्रक्षेपण आवृत्तियों की क्षमता बढ़ेगी और मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रमों को मजबूत आधार मिलेगा। इसके साथ ही, यह परियोजना चंद्रमा पर मानव को भेजने और अंतरिक्ष स्टेशन निर्माण के मिशन को भी आगे बढ़ाने में मदद करेगी।

गगनयान और चंद्रमा पर मानव मिशन

तीसरे लॉन्च पैड की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका "गगनयान" मिशन में देखने को मिलेगी। गगनयान, भारत का पहला मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन, इसरो के लिए एक बड़ा मील का पत्थर होगा। इसके तहत, तीन अंतरिक्ष यात्रियों को पृथ्वी की निचली कक्षा में भेजा जाएगा। यह मिशन न केवल तकनीकी, बल्कि रणनीतिक और आर्थिक दृष्टि से भी भारत को सशक्त बनाएगा।

इसके अलावा, भारत का लक्ष्य चंद्रमा पर मानव मिशन को सफलतापूर्वक अंजाम देना है। अमेरिका, रूस और चीन के बाद, भारत चौथा ऐसा देश बन सकता है जो चंद्रमा पर मानव को भेजने में सफल होगा। तीसरे लॉन्च पैड का निर्माण भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को नई गति देगा। यह कदम भारत को न केवल तकनीकी रूप से आत्मनिर्भर बनाएगा, बल्कि वैश्विक स्तर पर अंतरिक्ष अन्वेषण में एक अग्रणी देश के रूप में स्थापित करेगा।

श्रीहरिकोटा का यह नया लॉन्च पैड भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र के लिए एक नया अध्याय है। इसके साथ ही, यह देश के युवाओं को अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नए अवसर प्रदान करेगा। आने वाले सालों में, भारत का यह प्रयास न केवल हमारी वैज्ञानिक क्षमता को बढ़ाएगा, बल्कि "मेक इन इंडिया" अभियान को भी मजबूत करेगा।

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