सिंधु जल समझौते बिलावल भुट्टो की चेतावनी, 'भारत ने पानी रोका तो नदियों में खून बहेगा'
भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल समझौते को लेकर तनाव बढ़ता जा रहा है। हाल ही में भारत ने इस समझौते को निलंबित करने की घोषणा की, जिसके जवाब में पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के चेयरमैन बिलावल भुट्टो ने तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर भारत ने सिंधु नदी का पानी रोका, तो इसके गंभीर परिणाम होंगे, और 'या तो पानी बहेगा या खून'।
26 Apr 2025
(
Updated:
11 Dec 2025
03:15 AM
)
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कश्मीर के पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले के बाद भारत सरकार ने पाकिस्तान के खिलाफ कड़े कदम उठाए हैं. इनमें सबसे महत्वपूर्ण है 1960 की सिंधु जल संधि का निलंबन. यह संधि दोनों देशों के बीच जल बंटवारे का आधार रही है, और इसके निलंबन से क्षेत्रीय तनाव और बढ़ गया है.
दरअसल 23 अप्रैल 2025 को पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 26 भारतीय पर्यटकों की मौत हो गई. भारत ने इस हमले के लिए पाकिस्तान स्थित आतंकवादी समूहों को जिम्मेदार ठहराया. इसके जवाब में, भारत सरकार ने सिंधु जल संधि को निलंबित करने का निर्णय लिया. भारत का कहना है कि जब तक पाकिस्तान आतंकवाद का समर्थन करता रहेगा, तब तक सहयोग संभव नहीं है.
पाकिस्तान की प्रतिक्रिया
पाकिस्तान ने भारत के इस कदम को युद्ध की घोषणा के समान बताया है. पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के चेयरमैन बिलावल भुट्टो ने कहा, "अगर भारत सिंधु का पानी रोकेगा, तो फिर इसके भयावह नतीजे होंगे. सिंधु में या तो पानी बहेगा या फिर खून बहेगा." पाकिस्तान ने भारतीय विमानों के लिए अपने हवाई क्षेत्र को बंद कर दिया है और भारत के साथ सभी द्विपक्षीय समझौते निलंबित कर दिए हैं.
भारत के इस निर्णय से पाकिस्तान की कृषि पर गहरा असर पड़ सकता है. पश्चिमी नदियों के जल पर निर्भर पाकिस्तान की सिंचाई प्रणाली को संकट का सामना करना पड़ सकता है. विशेषज्ञों का मानना है कि यदि भारत इन नदियों पर बांध बनाता है या जल प्रवाह को नियंत्रित करता है, तो पाकिस्तान में जल संकट गहरा सकता है.
"دریائے سندھ ہمارا ہے اور ہمارا ہی رہے گا، اِس دریا سے ہمارا پانی بہے گا یا اُن کا خون بہے گا۔@BBhuttoZardari
— PPP (@MediaCellPPP) April 25, 2025
#ThanksBBZ pic.twitter.com/LfNVVW9TnT
संधि का इतिहास और महत्व
सिंधु जल संधि 19 सितंबर 1960 को भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के बीच कराची में हस्ताक्षरित हुई थी. विश्व बैंक की मध्यस्थता से बनी इस संधि के तहत, भारत को पूर्वी नदियों—रावी, ब्यास और सतलुज—का नियंत्रण मिला, जबकि पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों सिंधु, झेलम और चिनाब का अधिकार दिया गया. संधि के अनुसार, भारत को पश्चिमी नदियों के जल का सीमित उपयोग जैसे सिंचाई, विद्युत उत्पादन और नौवहन के लिए अनुमति थी, लेकिन वह इन नदियों के जल को रोक नहीं सकता था.
सिंधु जल संधि का निलंबन भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव का संकेत है. यह कदम दोनों देशों के बीच विश्वास की कमी को दर्शाता है. यदि स्थिति में सुधार नहीं हुआ, तो यह क्षेत्रीय स्थिरता के लिए खतरा बन सकता है. संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं दोनों देशों से संयम बरतने और संवाद के माध्यम से समाधान निकालने की अपील कर रही हैं.
सिंधु जल संधि का निलंबन भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों में एक नया मोड़ है. यह निर्णय न केवल दोनों देशों के लिए, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण है. अब देखना होगा कि दोनों देश इस संकट से कैसे निपटते हैं और क्या वे संवाद के माध्यम से समाधान निकाल पाते हैं या नहीं.
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