ट्रंप ने फिर दिखाया टैरिफ का तेवर, 6 देशों पर लगाया भारी शुल्क, जानें कौन-कौन है निशाने पर
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने वैश्विक व्यापार नीति के तहत छह नए देशों पर भारी टैरिफ लगा दिए हैं. फेयर एंड रेसिप्रोकल ट्रेड की रणनीति के तहत अल्जीरिया, इराक और लीबिया पर 30%, ब्रुनेई और मोल्दोवा पर 25%, और फिलीपींस पर 20% टैरिफ लागू किया गया है. ट्रंप का उद्देश्य है कि अमेरिकी उत्पादों को विदेशों में वही सुविधाएं मिलें, जैसी विदेशी उत्पादों को अमेरिका में मिलती हैं. इससे इन देशों के लिए अमेरिकी बाजार में व्यापार करना महंगा और चुनौतीपूर्ण हो जाएगा.

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर वैश्विक व्यापार नीति के केंद्र में हैं. उनकी नई घोषणा के तहत अमेरिका ने छह और देशों पर भारी टैरिफ लागू कर दिए हैं. इस फैसले से न केवल संबंधित देशों में हलचल मच गई है, बल्कि वैश्विक व्यापारिक समीकरणों पर भी इसका सीधा असर देखने को मिल सकता है. ट्रंप प्रशासन ने यह कदम “फेयर एंड रेसिप्रोकल ट्रेड” यानी निष्पक्ष और पारस्परिक व्यापार की नीति के तहत उठाया है, जिसका उद्देश्य है अमेरिकी उत्पादों को दूसरे देशों में वैसी ही सुविधाएं मिलें जैसी अमेरिका में विदेशी उत्पादों को दी जाती हैं.
किन देशों पर लगे हैं नए टैरिफ
नए फैसले के तहत अल्जीरिया, इराक और लीबिया पर 30 प्रतिशत का टैरिफ लगाया गया है. वहीं ब्रुनेई और मोल्दोवा पर 25 प्रतिशत और फिलीपींस पर 20 प्रतिशत का टैरिफ लागू किया गया है. ये दरें अमेरिका में आयातित उत्पादों पर सीधे प्रभाव डालेंगी और संबंधित देशों के लिए अमेरिकी बाजार में प्रवेश अब पहले जैसा आसान नहीं रहेगा. यह कदम उस लंबे ट्रेड एजेंडा का हिस्सा है, जिसके तहत ट्रंप पहले ही 14 देशों को टैरिफ संबंधी चेतावनियां भेज चुके हैं.
पहले भेजी थी चेतावनी
ट्रंप प्रशासन ने बीते सप्ताह 14 देशों को सूचित किया था कि अमेरिका उनके व्यापार रवैये से असंतुष्ट है. इन देशों पर अमेरिका का आरोप है कि वे अमेरिकी उत्पादों के लिए अनुचित अड़चनें खड़ी कर रहे हैं, जबकि खुद अपने सामान को अमेरिकी बाजार में आसानी से पहुंचा रहे हैं. अब ट्रंप ने छह और देशों को इस सूची में जोड़ते हुए कुल 20 देशों को टैरिफ के दायरे में ले लिया है. यह संख्या आने वाले समय में और बढ़ सकती है, क्योंकि ट्रंप की रणनीति अब एकतरफा लाभ नहीं चलेगा पर आधारित है.
टैरिफ की समय-सीमा में हुआ बदलाव
हालांकि ट्रंप ने सभी टैरिफ को तुरंत लागू नहीं किया है. पहले जिन टैरिफ को इस सप्ताह बुधवार से लागू होना था, उन्हें अब 1 अगस्त तक टाल दिया गया है. इस बदलाव की वजह व्यापारिक बातचीत के लिए संभावनाएं खोलना बताया जा रहा है. जब उनसे पूछा गया कि क्या यह अंतिम तारीख है, तो ट्रंप ने कहा"यह निश्चित है, लेकिन 100% नहीं. अगर वे (प्रभावित देश) बातचीत करना चाहें, तो हम तैयार हैं." चीन इस छूट से बाहर है और उस पर लगाए गए टैरिफ पहले ही प्रभावी हो चुके हैं. इसका मतलब है कि अमेरिका चीन से बातचीत की तुलना में अन्य देशों के साथ थोड़ा लचीला रुख अपना रहा है.
ट्रंप के टैरिफ की असली मंशा क्या है
डोनाल्ड ट्रंप वैश्विक व्यापार व्यवस्था को दोबारा अमेरिका-केंद्रित बनाने की कोशिश कर रहे हैं. उनका कहना है कि कई देश लंबे समय से अमेरिका के व्यापारिक मॉडल का गलत फायदा उठा रहे हैं और अब उन्हें अपनी रणनीति बदलनी होगी. ट्रंप ने यह भी स्पष्ट किया कि टैरिफ से बचना है तो विदेशी कंपनियों को अमेरिका में मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स स्थापित करनी होंगी. यानी अब उन्हें अमेरिका में निवेश करना होगा या अमेरिकी बाजार से दूरी बनानी पड़ेगी.यह सोच ट्रंप के “अमेरिका फर्स्ट” एजेंडा का हिस्सा है, जिसके तहत वे घरेलू उद्योगों को प्रोत्साहित करने और बेरोजगारी घटाने के लक्ष्य पर काम कर रहे हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि इससे अमेरिकी उत्पादों को घरेलू स्तर पर लाभ मिलेगा, लेकिन अंतरराष्ट्रीय संबंधों में खटास बढ़ सकती है.
वैश्विक व्यापार पर इसका असर
ट्रंप के इस टैरिफ वार का असर केवल छह देशों तक सीमित नहीं रहेगा. यह संकेत है कि अमेरिका अब हर उस देश से टकराने को तैयार है, जो उसकी व्यापार नीति से सहमत नहीं है. इससे वैश्विक व्यापार में अनिश्चितता बढ़ सकती है. ब्राजील, दक्षिण कोरिया, मलेशिया जैसे देश पहले ही अपनी प्रतिक्रिया में कड़े शब्दों का प्रयोग कर चुके हैं. कुछ देशों ने तो जवाबी टैरिफ की चेतावनी तक दे दी है.
बताते चलें कि डोनाल्ड ट्रंप का टैरिफ मॉडल अमेरिका की आक्रामक व्यापार नीति का प्रतीक बन चुका है. छह नए देशों पर लगे टैरिफ यह दिखाते हैं कि यह केवल एक राजनैतिक बयानबाज़ी नहीं, बल्कि सुनियोजित रणनीति है. इससे अमेरिका को कितना फायदा मिलेगा और विश्व को कितना नुकसान यह तो समय बताएगा. लेकिन इतना तय है कि ट्रंप की यह नीति आने वाले महीनों में वैश्विक व्यापार में हलचल मचाएगी और भारत सहित अन्य देशों को भी अपनी रणनीति पर नए सिरे से विचार करना होगा.