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'यह युद्ध का युग नहीं...' ट्रंप-पुतिन मुलाकात से पहले भारत ने दोहराया PM मोदी का संदेश, जानें वैश्विक राजनीति में इसका प्रभाव

15 अगस्त को अलास्का में ट्रंप-पुतिन की मुलाकात में यूक्रेन युद्ध खत्म करने पर चर्चा होगी. भारत ने इस पहल का स्वागत करते हुए शांति बहाली में सहयोग की पेशकश की.

10 Aug, 2025
( Updated: 07 Dec, 2025
10:14 AM )
'यह युद्ध का युग नहीं...' ट्रंप-पुतिन मुलाकात से पहले भारत ने दोहराया PM मोदी का संदेश, जानें वैश्विक राजनीति में इसका प्रभाव
Image: File Photo By Social Media

अंतरराष्ट्रीय राजनीति के पन्नों में 15 अगस्त 2025 को एक नया अध्याय जुड़ने वाला है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन अलास्का में आमने-सामने बैठकर उस मुद्दे पर चर्चा करेंगे, जिसने पिछले लगभग तीन साल से दुनिया को हिला रखा है. वो है रूस-यूक्रेन के बीच चल रहा युद्ध. इस मुलाकात में युद्ध समाप्त करने को प्राथमिकता में रखकर चर्चा जाएगी और विकल्प तलाशें जाएंगे. 

दरअसल, यह मुलाकात सिर्फ दो नेताओं की राजनीतिक बातचीत नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की उम्मीदों का केंद्र बन चुकी है. क्योंकि अगर इस बैठक से युद्ध खत्म करने का कोई रास्ता निकलता है, तो इसका असर यूरोप से लेकर एशिया तक महसूस किया जाएगा. भारत ने भी इस पहल का खुले दिल से स्वागत किया है और साफ कहा है कि वह यूक्रेन में शांति बहाली के हर प्रयास में सहयोग देने को तैयार है.

भारत ने जताया समर्थन

भारत ने इस पहल का गर्मजोशी से स्वागत किया है. विदेश मंत्रालय के आधिकारिक बयान में कहा गया है, "भारत अलास्का में होने वाली अमेरिका-रूस बैठक का स्वागत करता है. यह बातचीत यूक्रेन में शांति बहाली और संघर्ष समाप्ति के नए अवसर पैदा कर सकती है. जैसा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बार-बार कहा है, यह युद्ध का युग नहीं है." भारत का यह रुख उसकी संतुलित विदेश नीति को दर्शाता है. वह न तो किसी पक्ष की अंधी पैरवी करता है, न ही शांति के प्रयासों से किनारा करता है. यही वजह है कि अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में भारत की भूमिका लगातार अहम होती जा रही है.

ट्रंप-पुतिन मुलाकात के संभावित एजेंडे

डोनाल्ड ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'ट्रुथ सोशल' पर इस बैठक की घोषणा करते हुए इसे 'बहुप्रतीक्षित' करार दिया. उन्होंने कहा कि यह मुलाकात 'ग्रेट स्टेट ऑफ अलास्का' में होगी, जो अमेरिका और रूस के भौगोलिक निकटता का भी प्रतीक है. रूस के राष्ट्रपति कार्यालय क्रेमलिन ने स्पष्ट किया कि बातचीत का केंद्र बिंदु यूक्रेन संकट का दीर्घकालिक और शांतिपूर्ण समाधान ढूंढना होगा. हालांकि उन्होंने स्वीकार किया कि यह प्रक्रिया आसान नहीं है, लेकिन रूस इसमें सक्रिय रूप से योगदान देगा.क्रेमलिन ने कहा है कि दोनों नेता यूक्रेन संकट का दीर्घकालिक और शांतिपूर्ण समाधान खोजने पर फोकस करेंगे. मास्को ने माना कि यह प्रक्रिया चुनौतीपूर्ण है, लेकिन रूस इसमें सक्रिय रूप से भाग लेगा.

2015 के बाद पहली अमेरिकी यात्रा

इस मुलाकात की एक और खास बात यह है कि यह पुतिन की 2015 के बाद पहली अमेरिकी यात्रा होगी. उस समय उन्होंने तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा से मुलाकात की थी. इसके अलावा, यह 2021 के बाद पहली अमेरिका-रूस शिखर बैठक भी होगी, जब जिनेवा में जो बाइडेन और पुतिन की मुलाकात हुई थी. अलास्का बैठक से पहले, आर्मेनिया-अजरबैजान शांति समझौते पर हस्ताक्षर के दौरान व्हाइट हाउस में बोलते हुए ट्रंप ने संकेत दिया कि यूक्रेन और रूस के बीच संभावित समझौते में कुछ क्षेत्रों का आदान-प्रदान हो सकता है. ट्रंप ने कहा, "हम कुछ वापस लेंगे और कुछ वापस देंगे. दोनों देशों के हित में कुछ क्षेत्रों की अदला-बदली होगी."

यूक्रेन का कड़ा रुख

यूक्रेनी राष्ट्रपति वलोदिमीर जेलेंस्की ने इस तरह के किसी भी विचार को सिरे से खारिज कर दिया है. उन्होंने साफ कहा, "यूक्रेन अपनी जमीन का कोई भी हिस्सा नहीं छोड़ेगा." जेलेंस्की ने टेलीग्राम पर लिखा, "यूक्रेन के क्षेत्रीय प्रश्न का उत्तर पहले से ही हमारे संविधान में है. कोई भी इससे अलग हटकर कुछ नहीं कर सकता. यूक्रेनवासी किसी कब्जा करने वाले को अपनी जमीन नहीं देंगे." उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि यूक्रेन की सहमति के बिना हुआ कोई भी समझौता 'मृत समाधान' होगा, जो कभी काम नहीं करेगा.

इस बैठक पर दुनियाभर की निगाहें 

यूक्रेन युद्ध ने पिछले लगभग तीन साल में न सिर्फ हज़ारों लोगों की जान ली है, बल्कि लाखों लोगों को बेघर किया है. यूरोप की अर्थव्यवस्था पर इसका गहरा असर पड़ा है, वहीं ऊर्जा संकट और महंगाई ने कई देशों को परेशान कर रखा है. अमेरिका और रूस, दोनों परमाणु शक्ति संपन्न देश हैं, और इनका एक टेबल पर बैठना अपने आप में बड़ी बात है. अगर यह बैठक सकारात्मक परिणाम देती है, तो न केवल यूक्रेन, बल्कि पूरी दुनिया में शांति की संभावना बढ़ेगी.

भारत की भूमिका पर नजर

भारत लगातार कहता आया है कि वह किसी भी संघर्ष का समाधान बातचीत और कूटनीति के जरिए चाहता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बयान "यह युद्ध का युग नहीं है" वैश्विक मंचों पर गूंज चुका है. अलास्का बैठक में भारत भले ही प्रत्यक्ष रूप से मौजूद न हो, लेकिन उसकी राय और समर्थन इस प्रक्रिया में अहम माना जाएगा. अभी कहना मुश्किल है कि अलास्का की बर्फीली वादियों में होने वाली यह गर्मागर्म बातचीत क्या रंग लाएगी. लेकिन इतना तय है कि 15 अगस्त को दुनिया की निगाहें अमेरिका के सबसे उत्तरी राज्य पर टिकी होंगी.

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बता दें कि एक तरफ ट्रंप हैं, जो खुद को 'डील मेकर' कहते हैं. दूसरी तरफ पुतिन हैं, जो अपनी सख्त छवि और रणनीतिक सोच के लिए जाने जाते हैं. और बीच में है यूक्रेन, जो अपने अस्तित्व और संप्रभुता की लड़ाई लड़ रहा है. अगर इस बैठक से युद्ध का कोई ठोस समाधान निकलता है, तो यह न सिर्फ 21वीं सदी की सबसे बड़ी कूटनीतिक सफलता होगी, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए यह संदेश भी होगा कि दुनिया के सबसे जटिल विवाद भी बातचीत से सुलझाए जा सकते हैं.

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