Advertisement

'पाकिस्तान पर ब्रह्मास्त्र चला, अब जलास्त्र की बारी', अफगानिस्तान में कुछ बड़ा करने वाला है भारत, तालिबान से बन गई है बात

भारत ने ऑपरेशन सिंदूर में अपनी सैन्य ताकत दिखाई, अब कूटनीतिक दांव दिखाने की बारी है. अब पाक पर दूसरी तरफ से भी प्रहार किया जाएगा, पहले ही सिंधु नदी समझौते को रोक कर भारत ने उसका हलक सूखा दिया है, अब काबुल से भी कुछ बड़े की तैयारी की जा रही है.

Created By: केशव झा
16 May, 2025
( Updated: 30 May, 2025
01:08 PM )
'पाकिस्तान पर ब्रह्मास्त्र चला, अब जलास्त्र की बारी', अफगानिस्तान में कुछ बड़ा करने वाला है भारत, तालिबान से बन गई है बात
दक्षिण एशिया सहित पूरी दुनिया में आतंकवाद को बढ़ावा देने, आतंकियों को प्रश्रय देने के लिए बदनाम पाकिस्तान को एक्सपोज करने के लिए भारत लगातार कोशिशें कर रहा है. ऑपरेशन सिंदूर के तहत उसे पहलगाम सहित कई आतंकी हमलों का दंड दिया गया. इसी बीच मोदी सरकार अपनी आईसोलेट पाकिस्तान की नीति के तहत कई और कड़े कदम उठा रही है. सिंधु जल समझौता के रद्द होने के बाद उसका पहले ही हलक सूख रहा है वहीं अगर उसका अफगानिस्तान से भी आने वाला पानी रोक दिया जाए तो कैसा रहेगा? उसके खैबर KPK प्रांत को पानी की आपूर्ति देनी मुश्किल हो जाएगी.

भारत-पाक के बीच लागू युद्धविराम के बीच विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर की अपने अफगानी समकक्ष अमीर मुत्तकी से फोन पर बात हुई है. दोनों के बीच ये बातचीच 15 मई की शाम को हुई, जिससे एक बड़ी ख़बर सामने आ रही है.

अफगानिस्तान के विकास परियोजनाओं को फंड करेगा भारत!
सूत्रों के हवाले से सामने आ रही जानकारी के मुताबिक जयशंकर और मुत्ताकी के बीच अफगानिस्तान में भारतीय मदद वाली विकास परियोजनाओं को आगे बढ़ाने पर सहमति बनी है. कहा जा रहा है कि जयशंकर और मुत्ताकी के बीच लालंदर की शहतूत बांध परियोजना भी शामिल है, जो काबुल नदी पर बनाई जानी है. 

शहतूत बांध परियोजना पर 2021 में बना था समझौता
दोनों देशों के बीच शहतूत बांध परियोजना को लेकर समझौता वैसे तो फरवरी 2021 में हुआ था, लेकिन काबुल में हुए सत्ता के बदलाव ने इसपर ब्रेक लगा दिया था. पहलगाम आतंकी हमले के बाद विदेश मंत्रालय की सक्रियता ने पाक के कान खड़े कर दिए हैं. 

दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की बातचीत में भारत और अफगानिस्तान के बीच अपने संबंधों को नई दिशा देने का फैसला किया गया है. भारत के इस कूटनीतिक एक्शन से आतंकिस्तान की नींद उड़ गई है. उसने अफगान में लाख कोशिश और साजिशों के बाद तालिबान सरकार की वापसी कराई थी, लेकिन उसके बदले रुख और सधी हुई कूटनीति ने उसे परेशान कर दिया है. कहा जा रहा है कि शहतूत परियोजना से उसके पड़ोसी पाकिस्तान पर भीषण प्रभाव पड़ने वाला है.

सिंधु नदी समझौता बनाम शहतूत बांध
भारत काबुल नदी पर बनने वाली शहतूत बांध परियोजना के लिए अफगानिस्तान को 236 मिलियन डॉलर की वित्तीय और तकनीकी सहायता दे रहा है. यह बांध काबुल शहर और आसपास के करीब 20 लाख लोगों को पेयजल और सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराएगा. इसका फायदा पाकिस्तान को भी मिलता रहा है. काबुल नदी, जो हिंदू कुश पहाड़ों से निकलती है और पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में प्रवेश करती है. शहतूत बांध के निर्माण से पाकिस्तान को मिलने वाले पानी की मात्रा पर असर पड़ सकता है.

कुनार नदी, जो काबुल नदी में मिलती है, सिंधु बेसिन का हिस्सा है. हाल ही में भारत ने 1960 की सिंधु जल संधि को निलंबित करने का फैसला किया था. जिससे पहले ही पाकिस्तान में जल संकट और गहरा गया था और अगर शहतूत पर बांध बनेगा तो उसे और परेशानी होने वाली है.

तालिबान के साथ नया अध्याय
2021 में तालिबान के काबुल पर कब्जे के बाद भारत ने अपने संबंध सीमित कर लिए थे. लेकिन हाल के वर्षों में स्थिति बदली है. अप्रैल 2025 में भारतीय विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव आनंद प्रकाश के काबुल दौरे ने शहतूत बांध परियोजना को गति दी. यह दौरा 22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद हुआ, जिसकी तालिबान ने निंदा की और भारत के साथ सहयोग की इच्छा जताई. 

फरवरी 2025 में खबरें आईं कि भारत तालिबान के राजनयिक प्रतिनिधि को नई दिल्ली में स्वीकार कर सकता है, हालांकि आधिकारिक मान्यता देने से बचा जाएगा. तालिबान ने भी मुंबई में कांसुलर सेवाओं के लिए एक प्रशासक भेजा है. दोहा और दुबई में हुई उच्च-स्तरीय बैठकों ने दोनों पक्षों के बीच व्यापार और कूटनीति के दरवाजे खोले हैं. 

‘पाक पर जलास्त्र का प्रयोग!’
अफगानिस्तान और पाकिस्तान नौ नदी बेसिन साझा करते हैं, जिनमें काबुल, कुनार, सिंधु, गोमल, कुर्रम, पिशिन-लोरा, कंधार-कंद, कदनई, अब्दुल वहाब धारा और कैसर नदी शामिल हैं. ये पाकिस्तान की जल सुरक्षा, विशेषकर सिंधु नदी, के लिए महत्वपूर्ण हैं. अफगानिस्तान की काबुल और कुनार नदियों पर बांध योजनाएं पाकिस्तान की कृषि और जल आपूर्ति को खतरे में डाल सकती हैं. ऐेसे में सिंधु जल समझौता के रद्द होने के बाद कराह रहे पाकिस्तान की एक और मोर्चे पर घेरेबंदी की जा रही है, अब देखना होगा कि ये बातचीत कब अंजाम पर पहुंचेगी.

क्यों जरूरी है तालिबान से अच्छे संबंध?
भारत की यह रणनीति क्षेत्रीय संतुलन को अपने पक्ष में करने की कोशिश है. विशेषज्ञों के अनुसार, भारत को अफगानिस्तान में तालिबान के प्रासंगिकता को स्वीकार करना ही होगा. काबुल को अपना पांचवा प्रांत बनाने के ख्वाब को जमीदोंज करने के लिए ये जरूरी है कि काबुल-दिल्ली को सेम पेज पर होना होगा. 
और क्या कर सकता है भारत?

पावर बैलेंसिंग की भारत की कोशिश!
जानकारों के मुताबित काबुल में चीन के प्रभाव को रोकना के लिए भी भारत की सक्रिया बढ़नी जरूरी है. चीन ने अफगानिस्तान में खनन और बुनियादी ढांचे में निवेश बढ़ाया है भारत तालिबान के साथ संबंधों को बढ़ाकर पावर इक्वेशन को बैलेंस को संतुलित करना चाहता है.

पाकिस्तान को अलग-थलग करना: 
तालिबान और भारत दोनों ही पाकिस्तान के एग्रेशर वाली नीति के खिलाफ हैं. तालिबान ने इस सीमा को कभी मान्यता नहीं दी और भारत इस मुद्दे पर अफगानिस्तान का समर्थन कर सकता है. 

Tags

Advertisement
Advertisement
अधिक
Welcome में टूटी टांग से JAAT में पुलिस अफसर तक, कैसा पूरा किया ये सफर | Mushtaq Khan
Advertisement
Advertisement