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सिर पर घड़े, थाली पर थिरकते पांव, राजस्थान के जिस भवाई डांस ने मचाई धूम, जानें उसका इतिहास

भवाई कला यूं तो सदियों पुरानी है लेकिन इन दिनों सोशल मीडिया पर छाए एक वीडियो ने लोगों को फिर इसका कायल कर दिया. ये अद्भुत कला कहां से आई और क्या है इसका इतिहास. जानिए

22 Sep, 2025
( Updated: 05 Dec, 2025
05:44 PM )
सिर पर घड़े, थाली पर थिरकते पांव, राजस्थान के जिस भवाई डांस ने मचाई धूम, जानें उसका इतिहास
Snapshot/Instagram- lok_nritya

सिर पर मिट्टी के बड़े घड़े, पीतल की थाली पर थिरकते पांव…ढोलक और तबले की ताल से ताल मिलाते भाव. ये है राजस्थान का पारंपरिक भवाई डांस. ये कला यूं तो सदियों पुरानी है लेकिन इन दिनों सोशल मीडिया पर छाए एक वीडियो ने लोगों को फिर इसका कायल कर दिया. 

सोशल मीडिया पर एक से एक बेहतरीन डांस वीडियो आए दिन वायरल होते हैं. इसी कड़ी में लोगों का दिल जीत लेने वाले भवाई डांस का एक वीडियो वायरल हो रहा है. इसमें एक महिला अपने सिर पर घड़े रखकर पीतल की थाली पर थिरक रही है.  

वीडियो में देख सकते हैं भवाई कलाकार ने सिर पर मिट्टी के तीन घड़े रखे हुए हैं. जो गुलाबी रंग में रंगे हैं. घड़ों को सिर पर रखकर महिला थाली पर खाड़ी होकर डांस कर रही है. महिला कलाकार का हर कदम तबले की थाप के साथ कदमताल कर रहा है. जैसे-जैसे संगीत की रफ्तार बढ़ती है महिला अपने कदमों का संतुलन भी उसी अनुसार करती है. जिससे ये डांस और भी रोचक हो जाती है और देखने वालों की आंखें फटी की फटी रह गईं. इस खूबसूरत और पारंपरिक राजस्थानी डांस को देख पूरा हॉल तालियों से गूंज उठता है. लोग वाह-वाह करते नहीं थक रहे. सोशल मीडिया पर भी लोग इस कला और कलकार के मुरीद हो गए. 

किसी ने लिखा, यह है असली है टैलेंट. तो किसी ने इसे फोकस, संतुलन और खूबसूरती का अनोखा संगम बताया. वहीं, किसी ने लिखा, यही है भारतीय संस्कृति की असली खूबसूरती. 

क्या है राजस्थान का भवाई डांस? 

राजे-रजवाड़ों की धरती राजस्थान ने वीर योद्धाओं के साथ देश को कला का खजाना भी दिया. लोक कलाओं से संपन्न राजस्थान में भवाई नृत्य यहां की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है. 
भवाई डांस राजस्थान की जनजातीय महिलाओं की ओर से किया जाता है. जैसे कालबेलिया या कठपुतली कलाकार. ये संतुलन, कुशलता और उत्सव की भावना को दर्शाता है. वैसे भवाई नृत्य मूल रूप से गुजरात से जुड़ा है, लेकिन राजस्थान में इसे स्थानीय रंग-रूप के साथ अपनाया गया है. खासकर मारवाड़ क्षेत्र में यह नृत्य सामाजिक समारोहों, त्योहारों और शादी-ब्याह में किया जाता है. 

भवाई नृत्य का इतिहास 

भवाई शब्द संस्कृत के भाव से लिया गया है. यानी भावनाओं से सजी एक कला है. जो डांस के जरिए भावों का प्रदर्शन करती है. थाली और घड़ों के साथ साथ इसमें ढोलक, मंडल, सारंगी और बांसुरी का इस्तेमाल भी किया जाता है. यूनेस्को ने इस कला को अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर के रूप में मान्यता भी दी है. 

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