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CM योगी के फैसले से 'कट्टरपंथियों' को झटका! यूपी में मदरसों में पढ़ाया जाएगा धर्मशास्त्र, लागू होगा सरकारी सिलेबस

उत्तर प्रदेश में एनडीए की अगुवाई वाली योगी सरकार लगातार मदरसों के नियमों, सिलेबस समेत दूसरे क्षेत्रों में बदलाव कर रही है. वहीं, योगी सरकार अब मदरसा शिक्षा को लेकर एक और बड़ा बदलाव करने जा रही है. अगर ऐसा हुआ तो उत्तर प्रदेश में नए मदरसों को शुरू करने और सरकार की तरफ से मान्यता हासिल करना आसान नहीं होगा.

24 Jul, 2025
( Updated: 24 Jul, 2025
04:27 PM )
CM योगी के फैसले से 'कट्टरपंथियों' को झटका! यूपी में मदरसों में पढ़ाया जाएगा धर्मशास्त्र, लागू होगा सरकारी सिलेबस

उत्तर प्रदेश में एनडीए सरकार, विशेषकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में, मदरसा शिक्षा प्रणाली में व्यापक सुधार की दिशा में लगातार कदम उठा रही है. अब सरकार मदरसों के मान्यता नियमों को और अधिक कड़ा करने की तैयारी कर रही है. यदि यह प्रस्ताव लागू हुआ, तो राज्य में नए मदरसे खोलना और उन्हें सरकारी मान्यता दिलाना पहले से कहीं अधिक चुनौतीपूर्ण हो जाएगा. प्रदेश सरकार का कहना है कि इस पहल का उद्देश्य मदरसा शिक्षा में गुणवत्ता, पारदर्शिता और आधुनिकता को बढ़ावा देना है, ताकि छात्रों को मुख्यधारा की शिक्षा से जोड़कर बेहतर शैक्षणिक अवसर प्रदान किए जा सकें. 

इसके लिए राज्य सरकार द्वारा गठित एक उच्चस्तरीय समिति अंतिम चरण में है और जल्द ही अपनी रिपोर्ट शासन को सौंपेगी. इस समिति ने पूरे उत्तर प्रदेश में संचालित मदरसों की शैक्षणिक, प्रशासनिक और संरचनात्मक स्थितियों का गहन अध्ययन किया है. सूत्रों के अनुसार, रिपोर्ट में यूपी बोर्ड की तर्ज पर मान्यता प्रक्रिया को सख्त करने की सिफारिश की जाएगी. इससे यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि मदरसों में पढ़ाई का स्तर बेहतर हो और शिक्षा व्यवस्था अधिक पारदर्शी बने. सरकार का दावा है कि यह कदम मदरसा छात्रों को विज्ञान, गणित, अंग्रेज़ी जैसी मुख्यधारा की विषयवस्तु से जोड़ने में सहायक होगा, जिससे वे प्रतियोगी परीक्षाओं में भी समान अवसर पा सकें.

उत्तर प्रदेश में मदरसों के सिलेबस में बड़ा बदलाव

उत्तर प्रदेश सरकार अब मदरसा शिक्षा प्रणाली में और अधिक व्यापक बदलाव करने जा रही है. सरकार की योजना के तहत, मदरसों में कक्षा 9 से 12 तक नया पाठ्यक्रम लागू किया जाएगा. इस सिलेबस में अब केवल अरबी और उर्दू ही नहीं, बल्कि धर्मशास्त्र, गणित, विज्ञान, हिंदी और अंग्रेज़ी जैसे आधुनिक विषय भी शामिल किए जाएंगे.

सरकार का मानना है कि इस कदम से मदरसा छात्र धार्मिक ज्ञान के साथ-साथ आधुनिक विषयों की पढ़ाई कर पाएंगे, जिससे वे प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं में भाग लेने के लिए बेहतर तरीके से तैयार हो सकेंगे.

हालांकि, इस पहल को लेकर सियासी गलियारों और आम लोगों के बीच मिली-जुली प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं. आलोचकों का कहना है कि सरकार की मंशा स्पष्ट नहीं है. एक ओर वह मदरसों को मुख्यधारा की शिक्षा व्यवस्था से जोड़ने की बात कर रही है, वहीं दूसरी ओर बरेली में 250 से अधिक मदरसों को नोटिस जारी किया गया है.

विपक्षी दलों और सामाजिक संगठनों का तर्क है कि सरकार का रवैया द्वैध नीतियों की ओर इशारा करता है—एक ओर नए मदरसों की स्थापना के नियमों को सख्त किया जा रहा है, दूसरी ओर पहले से संचालित मदरसों पर बंदी की तलवार लटकाई जा रही है.

वर्तमान परिदृश्य में आम जनता की निगाहें उत्तर प्रदेश सरकार के अगले कदम पर टिकी हैं. क्या ये बदलाव वाकई मदरसा छात्रों के लिए नए अवसरों के द्वार खोलेंगे, या फिर यह शिक्षा के नाम पर कोई और एजेंडा है—इस पर बहस जारी है.

पहले भी किए जा चुके हैं अहम सुधार

गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश सरकार पहले भी मदरसा शिक्षा व्यवस्था में कई अहम बदलावों की घोषणा कर चुकी है. सरकार ‘यूपी बोर्ड मदरसा एजुकेशन एक्ट 2004’ में संशोधन करने की योजना पर काम कर रही है. इसके तहत कक्षा 10 तक हिंदी और अंग्रेज़ी विषयों को अनिवार्य कर दिया गया है. साथ ही, मदरसों में विज्ञान और कंप्यूटर लैब्स की स्थापना, कक्षा 1 से 3 तक एनसीईआरटी और कक्षा 4 से 8 तक एससीईआरटी आधारित पाठ्यक्रम लागू करने का प्रावधान किया गया है, ताकि छात्रों को मुख्यधारा की आधुनिक शिक्षा से जोड़ा जा सके.

12 लाख से अधिक छात्रों की शिक्षा पर असर, चिंता बढ़ी

वर्तमान में उत्तर प्रदेश के सभी 75 जिलों में कुल 13,229 मान्यता प्राप्त मदरसे संचालित हो रहे हैं, जिनमें लगभग 12 लाख 35 हजार छात्र-छात्राएं पढ़ाई कर रहे हैं. सरकार के लगातार फैसलों, मामूली प्रशासनिक मुद्दों पर सीलिंग या बुलडोज़र कार्रवाई जैसी सख्त कार्रवाइयों के कारण इन छात्रों की पढ़ाई पर नकारात्मक असर पड़ता है.

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वहीं, मान्यता के नियमों को और सख्त किए जाने से भविष्य में नए मदरसों की स्थापना करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है. इससे न केवल शिक्षा के अवसर सीमित होंगे, बल्कि ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में छात्रों की शैक्षणिक पहुंच भी बाधित हो सकती है.

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