हिंदी विरोधी Raj Thackeray को Badrinath Dham से मिला मुंहतोड़ जवाब!
Raj Thackeray के समर्थक कभी यूपी बिहार के लोगों के खिलाफ अत्याचार करेंगे तो कभी हिंदी बोलने वाले लोगों के खिलाफ डंडा चलाएंगे, शायद यही वजह है कि आज तक उन्हें महाराष्ट्र में वो सियासी सफलता नहीं मिल पाई, ऐसे हिंदी विरोधियों को इस बार देवभूमि उत्तराखंड की धरती से करारा जवाब मिला है… वो भी श्रीबद्रीनाथ धाम के दरबार से !

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राज ठाकरे. नाम तो सुना ही होगा . महाराष्ट्र की राजनीति का ये वो चेहरा है. जिनके नाम में तो हिंदू हृदय सम्राट बाल ठाकरे का नाम भले ही जुड़ा हो. लेकिन महाराष्ट्र की राजनीति में उनका कद गणित के जीरो से ज्यादा कुछ नहीं है. क्योंकि उनकी राजनीति ही हिंदी विरोध पर टिकी है. उनके समर्थक कभी यूपी बिहार के लोगों के खिलाफ अत्याचार करेंगे तो कभी हिंदी बोलने वाले लोगों के खिलाफ डंडा चलाएंगे. शायद यही वजह है कि आज तक उन्हें महाराष्ट्र में वो सियासी सफलता नहीं मिल पाई. जिसके लिए उन्होंने हिंदी भाषियों के विरोध को हथियार बनाने की कोशिश की. और अब ऐसे हिंदी विरोधियों को इस बार देवभूमि उत्तराखंड की धरती से करारा जवाब मिला है. वो भी श्रीबद्रीनाथ धाम के दरबार से.
देवभूमि उत्तराखंड की सत्ता संभाल रही धामी सरकार ये बात अच्छी तरह से जानती है कि देश के कोने-कोने से श्रद्धालु चारधाम की यात्रा करने के लिए आते हैं. जिनमें कुछ श्रद्धालु तो ऐसे भी होते हैं. जिन्हें ना तो हिंदी भाषा आती है और ना ही अंग्रेजी. ऐसे श्रद्धालुओं की मदद के लिए धामी सरकार ने एक नया तरीका निकाला है. जिसके तहत श्री बद्रीनाथ धाम की यात्रा पर आने वाले सभी श्रद्धालुओं को यात्रा से जुड़ी जानकारी. उनकी अपनी भाषा में दी जाएगी. जैसे यात्रा से जुड़े दिशा-निर्देश, सुरक्षा, मौसम और आपातकालीन सूचना अब गढ़वाली, तेलुगू, गुजराती, अंग्रेजी, हिंदी के साथ-साथ मराठी में भी दी जाएगी. जिससे श्रद्धालुओं को कोई परेशानी ना हो.
उत्तराखंड पुलिस ने जिन 6 भाषाओं में श्रद्धालुओं की मदद कर रही है. उनमें से एक भाषा मराठी भी. जो सबसे ज्यादा उसी महाराष्ट्र में बोली जाती है. जहां राज ठाकरे रहते हैं. और हिंदी विरोध के नाम पर अपनी राजनीति चमकाने का काम करते हैं. उन्हें कम से कम उत्तराखंड की धामी सरकार से सीखना चाहिए कैसे भारत की सभी भाषाओं को सम्मान दिया जाता है. क्योंकि हमारा भारत विविधताओं भरा देश है. जिसके बारे में कहा जाता है. कोस-कोस पर बदले पानी. चार कोस पर वाणी. लेकिन ये बात लगता है महाराष्ट्र नव निर्माण सेना के अध्यक्ष राज ठाकरे को समझ में नहीं आ रहा है. इसीलिये मोदी सरकार ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत सभी सरकारी और प्राइवेट स्कूलों में तीन भाषा वाला फॉर्मूला लागू किया तो राज ठाकरे इसके विरोध में उतर आए. और यहां तक कह दिया कि.
सवाल हिंदी भाषा थोपने का है ही नहीं, क्योंकि यह कोई “राष्ट्रभाषा” नहीं है, वह तो उत्तर भारत के कुछ राज्यों में बोली जाने वाली एक क्षेत्रीय भाषा है, यह जहां कहीं भी बोली जाती है, वहां भी अनेक स्थानीय भाषाएं हैं, जो अब हिंदी भाषा के दबाव में आकर लुप्त होने की कगार पर आ गई हैं, अब उन्हें अपनी स्थानीय भाषाएं बचानी हैं या नहीं, यह फैसला उनका है, हमें उससे कुछ भी लेना-देना नहीं है.
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बात यहीं खत्म नहीं होती. हिंदी का विरोध सिर्फ महाराष्ट्र तक ही सीमित नहीं है. दक्षिण राज्य तमिलनाडु में तो दशकों से हिंदी विरोध हो रहा है. लोगों को अंग्रेजों की भाषा अंग्रेजी पढ़ना तो मंजूर है. लेकिन अपनी ही भारतीय भाषा हिंदी से इतनी नफरत करते हैं कि सड़क पर उतर कर हिंसक प्रदर्शन करने पर भी उतारू हो जाते हैं. ऐसे लोगों को उत्तराखंड की धामी सरकार ने जिस तरह से बद्रीनाथ में मराठी, तेलगु, हिंदी समेत 6 भाषाओं में श्रद्धालुओं की मदद का ऐलान करके हिंदी विरोधियों को जो जवाब दिया है.
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