आखिर क्या है हिंदुओं के पक्ष में सुनाया गया वो फैसला… जिससे विपक्ष में मची खलबली, स्टालिन की सत्ता पर आई आंच!
एक पहाड़ी जिसकी तलहटी पर मंदिर बसा है, लेकिन उसी जगह पर हिंदू एक दीया भी नहीं जला सकते. आखिर ऐसा क्यों? जज ने हिंदुओं के पक्ष में फैसला सुनाया तो हिंदू विरोधी उनके दुश्मन बन गए.
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Thiruparankundram hill Dargah dispute: दक्षिणी राज्य तमिलनाडु में अगले साल यानी साल 2026 में विधानसभा चुनाव होंगे, लेकिन सियासत अभी से गर्मा गई. यहां सैकड़ों साल पुराने मुद्दें ने जजों को भी राजनीति के केंद्र में ला दिया और केंद्र की सत्ता को भी इस विवाद से जोड़ दिया. हम बात कर रहे हैं थिरुप्परनकुंद्रम पहाड़ी विवाद की.
थिरुप्परनकुंद्रम पहाड़ी पर दीप जलाने से सारा विवाद जुड़ा हुआ है. जिस पर जज ने हिंदू पक्ष के समर्थन में फैसला सुनाया तो उन पर महाभियोग चलाने की तैयारी शुरू हो गई. महाभियोग लाने के लिए 107 सांसदों ने स्पीकर को एप्लिकेशन तक डे डाली. आपको बताते हैं कहां से शुरू हुआ ये पूरा विवाद, कौन हैं वो जज, कैसे तमिलनाडु की सत्ता में इस मुद्दे से उथल-पुथल मच गई.
सबसे पहले बात थिरुप्परनकुंद्रम पहाड़ी की, क्या है धार्मिक महत्व?
विशाल पहाड़ी थिरुप्परनकुंद्रम पहाड़ी मदुरै से 10 किलोमीटर दूर स्थित है. यह उन हिंदू पवित्र तीर्थ स्थानों में से एक है. जो हिंदू धर्म में विजय और युद्ध के देवता माने जाने वाले मुरुगन के आवास स्थान माने जाते हैं. इस पहाड़ी की तलहटी पर एक भव्य मंदिर भी है, जहां श्रद्धालुओं मुरुगन के दर्शन करने आते हैं.
पहाड़ी पर दरगाह, स्तंभ और दीप जलाने का विवाद क्या है?
थिरुप्परनकुंद्रम पहाड़ी पर एक दरगाह भी स्थित है दावा किया जाता है कि यह 17वीं शताब्दी में बनाई गई थी. इसका नाम सिकंदर बादुशा दरगाह. है. दरगाह के पास एक स्तंभ है, जहां लंबे समय से दीप जलाने की मांग की जा रही है. लोगों का कहना है कि इसी स्तंभ पर पहले कार्तिगई दीपम त्योहार पर दीप जलाया जाता था.
कार्तिगई दीपम तमिलनाडु का बेहद अहम त्यौहार है. जिस तरह उत्तर भारत में दीवापली मनाई जाती है उसी तरह दक्षिण भारत में कार्तिगई दीपम है. यह त्योहार भगवान मुरुगन (कार्तिकेय) को समर्पित है. इस बार कीर्तिगई दीपम पर थिरुप्परनकुंद्रम पहाड़ी के स्तंभ पर हिंदू धर्म के लोगों ने दीप जलाने की मांग की है, चूंकि यहां बादुशा सिंकदर दरगाह भी है तो बात इतनी आसान नहीं थी. तमिलनाडु सरकार ने कहा कि स्तंभ पर दीप जलाने की परंपरा का कोई बड़ा सबूत या आधार नहीं मिला है.
मुस्लिम संगठनों ने की पहाड़ी का नाम बदलने की मांग
स्तंभ पर दीप जलाने की मांग के बीच नया विवाद उस वक्त खड़ा हो गया. जब मुस्लिम संगठनों ने फरवरी में थिरुप्परनकुंद्रम पहाड़ी का नाम बदलकर सिकंदर मलाई करने की मांग की. इस बीच कुछ लोगों पर पहाड़ी की सीढ़ियों पर नॉनवेज खाने का भी आरोप लगा. जिस पर हिंदू लोग भड़क गए.
कोर्ट कैसे पहुंचा मामला?
थिरुप्परनकुंद्रम पहाड़ी के स्तंभ पर दीप जलाने, पहाड़ी पर पशुबलि प्रतिबंधित करने और दरगाह के पास कुछ खास हिस्सों में नमाज बैन करने की मांग लेकर हिंदू संगठनों ने कोर्ट का रुख किया. इसके विरोध में मुस्लिम पक्ष ने पहाड़ी का नाम सिंकदर मलाई (पहाड़ी) रखने की याचिका लगाई. हालांकि कोर्ट ने जून 2025 में पहाड़ी का नाम बदलने से इंकार कर दिया. साथ ही साथ पहाड़ी पर पशु बलि को भी बैन कर दिया.
उधर स्तंभ पर दीप जलाने का मामला मद्रास हाईकोर्ट पहुंच गया. हिंदूवादी नेता रामा रवि कुमार कोर्ट में थिरुप्परनकुंद्रम पहा़ड़ी के इतिहास का वर्णन करते हुए कहा कि दीप जलाने की इजाजत दी जाए. फिर एक दिसंबर को आया वो फैसला जिसने इस मामले को धार्मिक से राजनीतिक मोड़ दे दिया. मद्रास हाईकोर्ट के जज जस्टिस जीआर स्वामीनाथन ने आदेश दिया कि तमिल परंपरा के हिसाब से मंदिर प्रशासन दीपथून (स्तंभ वाली जगह) पर दीपक जला सकते हैं. जज स्वामीनाथन के इस फैसले पर तमिलनाडु की DMK सरकार ने कड़ा विरोध जताया. कोर्ट के फैसले को दरकिनार करते हुए स्तंभ के पास जाने पर रोक लगा दी. इसके पीछे सरकार ने सांप्रदायिक तनाव का हवाला दिया.
हिंदू संगठनों का विरोध, पुलिस से झड़प
3 दिसंबर को थिरुप्परनकुंद्रम पहा़ड़ी पर कार्तिगई दीपम का दीप जला लेकिन उस जगह नहीं जहां हिंदू चाहते थे. वही पहले वाली जगह मंदिर के पास दीपक जला. इसके विरोध में आए हिंदू पहाड़ी पर चढ़ गए पुलिस ने रोकने की कोशिश की तो झड़प के हालात हो गए. जिसमें कई लोग घायल हो गए.
हिंदुओं ने स्टालिन सरकार को कोर्ट में किया चैलेंज
इस मामले के बाद हिंदू संगठनों का गुस्सा DMK की स्टालिन सरकार के खिलाफ फूट पड़ा. हिंदुओं ने फिर कोर्ट का रुख किया. इस बार जज स्वामीनाथन ने सख्त लहजे में कहा, कोर्ट कैंपस की सुरक्षा में जो CISF कर्मचारी लगे हैं उनके साथ दीपथून (स्तंभ के पास) दीपक जलाया जाए. इसके साथ ही उन्होंने मंदिर के अधिकारी और पुलिस आयुक्त को भी कोर्ट में पेश होने का नोटिस भेजा. हालांकि ये कोशिश भी बेकार रही और हिंदू इस बार भी दीपथून पर दीपक नहीं जला पाए, क्योंकि सरकार ने थिरुप्परनकुंद्रम पहा़ड़ी के आस-पास धारा 144 लगा दी थी.
जस्टिस स्वामीनाथन के खिलाफ महाभियोग की तैयारी
पहाड़ी पर पवित्र दीपक जलाने का आदेश देने वाले जस्टिस स्वामीनाथन के बाद तमिलनाडु सरकार ने महाभियोग लगाने की कोशिश की. इसमें INDIA के सांसदों ने भी साथ दिया.
सबसे पहले तो स्टालिन सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में मद्रास हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी. DMK ने तर्क दिया कि पहले भी ‘कोर्ट ने दीप जलाने की जगह को दरगाह के पास शिफ्ट करने की इजाजत नहीं दी थी, क्योंकि इससे इलाके की शांति और सौहार्द बिगड़ने का डर था. इसके साथ ही कोई ठोस सबूत भी नहीं थे, लेकिन जस्टिस स्वामीनाथन ने फैसला शांति और सौहार्द के पक्ष में नहीं सुनाया. उन्हें मौजूदा स्थिति को ही बनाए रखना चाहिए था.’
प्रियंका अखिलेश समेत 107 सांसदों ने दिया एप्लिकेशन
जस्टिस स्वामीनाथन को हटाए जाने के लिए DMK और INDIA के अन्य दलों के 107 सांसदों ने 9 दिसंबर महाभियोग की मांग करते हुए स्पीकर को एप्लीकेशन दी. इन सांसदों में प्रियंका गांधी और अखिलेश यादव भी शामिल हैं.
सांसदों ने एप्लीकेशन में जस्टिस स्वामीनाथन के आचरण को ‘निष्पक्षता, पारदर्शिता और न्यायपालिका की धर्मनिरपेक्ष कामकाज पर गंभीर सवाल उठाने वाला बताया. उन्होंने जस्टिस स्वामीनाथ पर खास समुदाय और खास राजनीतिक राजनीतिक विचारधारा के आधार पर फैसला सुनाने का आरोप लगाया.
BJP और RSS ने क्या कहा?
BJP ने सत्तारूढ़ DMK पर ‘हिंदुओं के पूजा के अधिकार को काटने’ का आरोप लगाया है. हालांकि RSS प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि इस मामले में उन्हें कूदने की जरूरत नहीं है. कोर्ट और स्थानीय लोग इसे सुलझा लेंगे. हां उन्होंने ये जरूर कहा कि फैसला हिंदुओं के पक्ष में ही रहे.
जस्टिस स्वामीनाथ के समर्थन में आए 56 पूर्व जज
जहां विपक्ष जस्टिस स्वामीनाथन के खिलाफ महाभियोग लाकर उन्हें हटाने में जुटा है तो वहीं, 56 पूर्व जजों का दल उनके समर्थन में उतर पड़ा. उन्होंने गंभीर आपत्ति दर्ज करवाते हुए कहा, 'समाज में खास वर्ग की वैचारिक और राजनीतिक उम्मीदों के अनुसार न चलने वाले जजों को डराने-धमकाने की बेशर्म कोशिश बताया है.’ जजों ने इसे लोकतंत्र की जड़ों पर हमला करार दिया. उन्होंने कहा, 'यह हमारे लोकतंत्र और न्यायपालिका की स्वतंत्रता के मूल जड़ों को ही काट देगा.’ पूर्व जजों ने इसे महाभियोग का मामला नहीं माना. उन्होंने सांसदों के कारणों को आधारहीन मानते हुए कहा, सांसदों के पॉइंट्स महाभियोग जैसे दुर्लभ, अपवाद और गंभीर संवैधानिक कदम को सही ठहराने के लिए पूरी तरह से पर्याप्त नहीं हैं. महाभियोग का असली मकसद न्यायपालिका की ईमानदारी बनाए रखना है, न कि उसे दबाव बनाने, संकेत देने और बदले की कार्रवाई का हथियार बनाना.
फिलहाल थिरुप्परनकुंद्रम पहा़ड़ी का मामला फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में है लेकिन इसका असर न केवल तमिलनाडु की सियासत में साफ दिख रही है बल्कि NDA को हिंदुओं के पक्ष में एक बड़ा चुनावी मुद्दा भी दे दिया है. जिसका साल 2026 में BJP की चुनावी रैलियों और भाषणों में गूंजना तय है.
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