Advertisement

बिहार में चुनाव से पहले एक बार फिर चर्चा में आया 'भूरा बाल साफ करो' का नारा, जानिए इसके सियासी मायने

बिहार में विधानसभा चुनाव करीब हैं और ऐसे में सूबे में एक बार फिर से 90 के दशक का नारा "भूरा बाल साफ करो" गूंजने लगा है. इसके पीछे का क्या है सियासी कारण जानिए हमारी इस रिपोर्ट में.

19 Sep, 2025
( Updated: 05 Dec, 2025
06:52 PM )
बिहार में चुनाव से पहले एक बार फिर चर्चा में आया 'भूरा बाल साफ करो' का नारा, जानिए इसके सियासी मायने

बिहार में जनता दल (यूनाइटेड) के वरिष्ठ नेता पूर्व सांसद आनंद मोहन ने बिहार के मुजफ्फरपुर में रघुवंश-कर्पूरी विचार मंच की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि भूरा बाल ही तय करेगा कि बिहार के सिंहासन पर कौन बैठेगा. 

भूरा बाल ही तय करेगा बिहार के सिंहासन पर कौन बैठेगा

मुजफ्फरपुर में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए आनंद मोहन ने कहा, "सवर्णों को भूरा बाल कहकर संबोधित किया जाता था, तब आप लोग किंगमेकर थे. समय बदल गया है और अब सिंहासन पर आप हैं. हम तय करेंगे कि उस सिंहासन पर कौन बैठेगा." 

दरअसल, बिहार में चुनाव से पहले एक बार फिर ये चर्चा में तब आया जब जुलाई के महीने में 10 तारीख को गया में आरजेडी का एक कार्यक्रम था. इस कार्यक्रम में आरजेडी के एक स्थानीय नेता ने 'भूरा बाल साफ करो' के नारे का जिक्र करते हुए कहा था कि इसकी वापसी का समय आ गया है. 

बीजेपी ने शेयर किया राजद नेता का वीडियो 

भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने 17 जुलाई को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर अपने ऑफिशियल हैंडल से आरजेडी के एक नेता का वीडियो शेयर किया था. इस वीडियो में आरजेडी की टोपी पहने बुजुर्ग नेता जी भूरा बाल नारे का मतलब समझाते नजर आ रहे हैं. बीजेपी ने भूरा बाल को लेकर फेसबुक पर भी अपने पेज से पोस्ट किया था. 17 जुलाई को शेयर की गई इस पोस्ट में लिखा है कि भूरा बाल साफ करो कोई नारा नहीं, बल्कि लालू यादव की सोची-समझी साजिश थी. बिहार के सवर्ण समाज को जातियों में तोड़ने की, नफरत की राजनीति करने की

बिहार के गांव-गलियों तक 1990 के दशक में इस नारे की गूंज थी. यह वही दौर था, जब बिहार की राजनीति में प्रभुत्व सवर्ण जातियों से शिफ्ट हो रहा था. लालू यादव मुख्यमंत्री थे और जातीय नरसंहार हो रहे थे. सवर्णों के खिलाफ अन्य पिछड़ा वर्ग और दलितों के साथ ही अनुसूचित जनजाति को गोलबंद करने के लिए इस नारे का खूब इस्तेमाल हुआ.

गैर सवर्ण जातियों को लामबंद करने के लिए दिया गया नारा 

कहा जाता है कि उस दौर में लालू यादव ने गैर सवर्ण जातियों को अपने पक्ष में लामबंद करने के लिए यह नारा दिया है. लालू यादव और उनका परिवार 15 साल तक बिहार की सत्ता पर काबिज रहा, तो उसके पीछे भी इस नारे को अहम फैक्टर कहा जाता है. 

हालांकि, लालू यादव खुद कई मौकों पर यह कह चुके हैं ऐैसा कोई नारा हमने कभी नहीं दिया. लालू यादव ने एक इंटरव्यू में कहा था कि कोई भी मुख्यमंत्री इस तरह के नारे नहीं दे सकता. वह इसे झूठ और गलत बताते हुए यह साबित करने की चुनौती देते रहे हैं, कि उन्होंने ही यह नारा दिया था. 

बिहार में 'भूरा बाल' जिसकी आबादी 10.57 प्रतिशत 

बिहार की जातिगत जनगणना-2023 के मुताबिक सूबे की कुल आबादी में भूमिहार की भागीदारी 2.87%, राजपूतों की 3.45%, ब्राह्मण की 3.65% और लाला यानी कायस्थों की भागीदारी 0.60% है.

यह भी पढ़ें

बिहार की कुल आबादी में इन चार जातियों की भागीदारी 10.57 फीसदी पहुंच जा रही है. प्रतिनिधित्व की बात करें तो बिहार की कुल 40 में से 12 सांसद अगड़ी जातियों से हैं. यह 30% पहुंचता है. 243 सदस्यों वाली बिहार विधानसभा में 64 सवर्ण 2020 का विधानसभा चुनाव जीते थे. विधानसभा में सवर्णों का प्रतिनिधित्व 26% है. ये आंकड़े बिहार की सियासत में सवर्ण जातियों का प्रभाव दर्शाते हैं. 

Tags

Advertisement

टिप्पणियाँ 0

LIVE
Advertisement
Podcast video
'मुसलमान प्रधानमंत्री बनाने का प्लान, Yogi मारते-मारते भूत बना देंगे इनका’ ! Amit Jani
Advertisement
Advertisement
शॉर्ट्स
वेब स्टोरीज़
होम वीडियो खोजें