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जाति जनगणना पर मोदी सरकार का मास्टरस्ट्रोक, जानें किसे मिलेगा, किसका कटेगा हक?

प्रधानमंत्री मोदी द्वारा जाति जनगणना की घोषणा ने विपक्ष के सबसे बड़े मुद्दे को छीन लिया है और देश की राजनीति में बड़ा बदलाव ला सकता है। इस लेख में बिहार के आंकड़ों के आधार पर OBC, EBC, SC-ST और General वर्ग के आरक्षण के गणित को सरल भाषा में समझाया गया है।
जाति जनगणना पर मोदी सरकार का मास्टरस्ट्रोक, जानें किसे मिलेगा, किसका कटेगा हक?
भारत जैसे विविधताओं से भरे देश में जाति हमेशा से एक संवेदनशील और निर्णायक मुद्दा रहा है. आज़ादी के बाद से अब तक केंद्र सरकार ने कभी भी व्यापक स्तर पर जातिगत जनगणना नहीं करवाई है. आख़िरी बार 1931 में ब्रिटिश राज में जातिगत जनगणना कराई गई थी. उसके बाद यह मुद्दा धीरे-धीरे सियासी गलियारों में दबा रहा, लेकिन अब 2025 के चुनावी माहौल में एक बार फिर यह मुद्दा फोकस में आ गया है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार चुनाव से पहले जातिगत जनगणना कराने का जो फैसला लिया है, उसने पूरे देश की राजनीति को एक नई दिशा दे दी है. विपक्ष वर्षों से इसकी मांग कर रहा था, लेकिन अचानक जब केंद्र ने इसे स्वीकार किया, तो सियासी समीकरण ही बदल गए. अब यह मुद्दा बीजेपी के हाथों में आ गया है. यह सिर्फ एक आंकड़ों की कवायद नहीं है, बल्कि इसके नतीजे भारतीय राजनीति, समाज और आरक्षण व्यवस्था को पूरी तरह बदल सकते हैं.

जाति जनगणना यानी देश की हर जाति की संख्या का पता लगाना. ये जानना कि कौन कितनी संख्या में है और उसे सामाजिक, शैक्षणिक व आर्थिक हिस्सेदारी कितनी मिली है. अभी तक यह पूरी तस्वीर धुंधली थी, सिर्फ अनुमान के आधार पर नीतियां बनती थीं. लेकिन अब आंकड़ों की रोशनी में असल हक़ की बात होगी. और यहीं से शुरू होती है भारत के नए सामाजिक समीकरण की कहानी.

बिहार सर्वे ने खोले जातीय असंतुलन के राज

जाति आधारित सर्वे की शुरुआत बिहार से हुई. राज्य सरकार ने बिहार की संपूर्ण जाति गणना करवाई. नतीजे चौंकाने वाले थे. सर्वे के अनुसार, पिछड़ा वर्ग यानी OBC की आबादी 27.12% और अतिपिछड़ा वर्ग यानी EBC की संख्या 36.01% थी. कुल मिलाकर OBC + EBC की जनसंख्या 63.13% है.

अब अगर “जिसकी जितनी भागीदारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी” का फार्मूला लागू किया जाए, तो इन जातियों को 63% आरक्षण मिलना चाहिए. जबकि हकीकत ये है कि OBC को अभी सिर्फ 12% और EBC को 18% आरक्षण ही मिल रहा है. यानी आबादी के अनुपात में उन्हें पूरा हक़ नहीं मिला. यही बात अब पूरे देश में बहस का विषय बन गई है.

SC-ST को भी चाहिए अधिक आरक्षण

बिहार के आंकड़ों के मुताबिक SC और ST की कुल आबादी 20% से ज्यादा है. लेकिन उन्हें अभी सिर्फ 17% आरक्षण ही मिला हुआ है. अगर OBC और EBC का आरक्षण बढ़ेगा तो जाहिर है SC-ST समुदाय भी अपना कोटा बढ़ाने की मांग करेगा. और जब हर कोई अपने हिस्से का आरक्षण मांगने लगेगा तो कटौती किसके हिस्से आएगी?

जवाब साफ है जनरल वर्ग का हिस्सा कटेगा. बिहार के जातीय सर्वे में जनरल कैटेगरी की आबादी महज 15% बताई गई है. लेकिन अभी उन्हें 50% आरक्षण (Unreserved Seats) में मौका मिलता है. अब अगर OBC, SC और ST को उनकी संख्या के अनुपात में आरक्षण दिया जाएगा तो जनरल वर्ग की हिस्सेदारी तेजी से घटेगी. यहीं से सामाजिक टकराव की संभावना भी खड़ी होती है.

देशभर में जातियों का अनुमान क्या कहता है?

सरकारी आंकड़ों की मानें तो अभी तक देश में जाति जनगणना आधिकारिक तौर पर नहीं हुई है. लेकिन समाजशास्त्रीय और राजनीतिक विश्लेषणों के अनुसार, देश की कुल आबादी में OBC लगभग 35% हैं, SC 16.6%, ST 8.6% और General कैटेगरी 25% के आसपास मानी जाती है. लेकिन कई सामाजिक संगठनों का दावा है कि OBC की संख्या 50% से ज्यादा है. अगर यह सच साबित होता है, तो पूरा आरक्षण ढांचा नए सिरे से तैयार करना पड़ेगा.

अब तक आरक्षण की संवैधानिक सीमा 50% तय की गई थी. लेकिन जब जातिगत आंकड़े सार्वजनिक होंगे और दबाव बढ़ेगा तो उस सीमा को तोड़ने की मांग उठेगी. कांग्रेस नेता राहुल गांधी पहले ही यह कह चुके हैं कि “आरक्षण की सीमा 50% क्यों हो? अगर किसी की आबादी ज्यादा है तो उसे हिस्सेदारी भी उतनी मिलनी चाहिए.” यानी ये सिर्फ सामाजिक मुद्दा नहीं, सियासत का सबसे बड़ा कार्ड बनने जा रहा है.

बीजेपी का बड़ा राजनीतिक गेमप्लान

इस जाति गणना से सबसे बड़ा राजनीतिक लाभ बीजेपी को मिल सकता है. देशभर में OBC समुदाय की संख्या 50% के पार मानी जाती है और इसी वर्ग से बीजेपी को बड़ा वोट मिलता रहा है. जातिगत जनगणना के जरिए बीजेपी अब इन वर्गों को ये संदेश देना चाहती है कि वह उनके हक़ की लड़ाई लड़ रही है. इसके अलावा बीजेपी इस मुद्दे को मुसलमानों को मिलने वाले आरक्षण के खिलाफ खड़ा करके भी सियासी बढ़त हासिल कर सकती है. वह यह दिखाना चाहती है कि कांग्रेस और क्षेत्रीय दल मुस्लिम आरक्षण की बात करते हैं, जबकि बीजेपी हिंदू OBC वर्ग को उनका हक दिलाने में लगी है.

पीएम मोदी ने जातिगत गणना को हरी झंडी देकर विपक्ष के हाथ से यह बड़ा मुद्दा छीन लिया है. कांग्रेस, सपा, RJD, JDU, DMK, और TMC जैसे दल अब बैकफुट पर आ गए हैं क्योंकि उनके चुनावी घोषणापत्र में यह मुद्दा हमेशा रहता था.

क्या आरक्षण का चेहरा पूरी तरह बदलेगा?
अब सवाल ये उठता है कि क्या जाति जनगणना के बाद आरक्षण का चेहरा बदल जाएगा? क्या 50% की सीमा हटेगी? क्या हर जाति को उनकी जनसंख्या के आधार पर आरक्षण मिलेगा? संविधान विशेषज्ञों की राय है कि अगर सही आंकड़े सामने आए तो सुप्रीम कोर्ट भी आरक्षण की सीमा पर पुनर्विचार कर सकता है. 1992 में इंद्रा साहनी केस में सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की सीमा 50% तय की थी. लेकिन अगर सामाजिक असमानता को खत्म करने के लिए संसद या सुप्रीम कोर्ट इसे अपवाद मानती है, तो ये सीमा टूट सकती है.

जाति जनगणना से समाज में एक नई बहस शुरू हो चुकी है. कुछ लोग इसे सामाजिक न्याय की दिशा में क्रांतिकारी कदम बता रहे हैं, तो कुछ इसे सामाजिक टकराव की शुरुआत मान रहे हैं. अगर हर जाति को अपनी संख्या के अनुसार अधिकार मिलते हैं, तो इससे न्याय की भावना मजबूत होगी. लेकिन अगर कुछ वर्गों का हक कटेगा, तो संघर्ष की संभावनाएं भी बढ़ जाएंगी.

जाति जनगणना सिर्फ एक सरकारी प्रक्रिया नहीं है. यह भारत के सामाजिक और राजनीतिक भविष्य की दिशा तय करने वाली ऐतिहासिक घटना है. इससे एक ओर सामाजिक न्याय के सिद्धांत को मजबूती मिलेगी, वहीं दूसरी ओर आरक्षण के मौजूदा ढांचे में जबरदस्त बदलाव भी संभव हैं.
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