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गणतंत्र दिवस पर दुश्मन देशों के नेता भी बने चीफ गेस्ट, जानिए रोचक इतिहास

भारत में हर साल 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन की परेड और समारोह में एक विदेशी राष्ट्राध्यक्ष को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित करना भारतीय कूटनीति की अनूठी परंपरा है।
गणतंत्र दिवस पर दुश्मन देशों के नेता भी बने चीफ गेस्ट, जानिए रोचक इतिहास
भारत, अपनी विविधता और लोकतांत्रिक मूल्यों के साथ, हर साल 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस मनाता है। इस दिन की परेड और समारोह के केंद्र में विदेशी राष्ट्राध्यक्षों को बतौर मुख्य अतिथि आमंत्रित करने की परंपरा है। यह न केवल भारत की कूटनीति का प्रदर्शन करता है, बल्कि वैश्विक मंच पर दोस्ती और सहयोग को बढ़ावा देने का भी प्रतीक है।

हालांकि भारत के इतिहास में ऐसे क्षण भी रहे हैं, जब 'कट्टर दुश्मन' माने जाने वाले देशों पाकिस्तान और चीन के शीर्ष नेताओं को भी गणतंत्र दिवस के मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया। आइए, इस ऐतिहासिक परंपरा और इससे जुड़े दिलचस्प पहलुओं पर नजर डालते हैं।

दुश्मन देशों को चीफ गेस्ट बनाना

1947 में आजादी के बाद से ही भारत और पाकिस्तान के बीच तनावपूर्ण संबंध रहे हैं। वहीं, चीन के साथ भी 1962 के युद्ध के बाद से रिश्तों में कड़वाहट है। बावजूद इसके, भारत ने दोनों देशों के नेताओं को गणतंत्र दिवस समारोह में आमंत्रित कर यह दिखाया है कि भारत अपने पड़ोसियों के साथ संबंध सुधारने के लिए प्रतिबद्ध है। 1955 में, भारत ने पहली बार पाकिस्तान के गवर्नर जनरल मलिक गुलाम मुहम्मद को गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया। यह उस समय की बड़ी कूटनीतिक पहल थी, क्योंकि भारत ने हाल ही में पाकिस्तान के साथ विभाजन के दर्द को सहा था।

इसके बाद, 1965 में, पाकिस्तान के फूड एंड एग्रीकल्चर मिनिस्टर राणा अब्दुल हमीद को भी चीफ गेस्ट के रूप में बुलाया गया। हालांकि, उसी साल भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ, जिसने दोनों देशों के संबंधों को और तनावपूर्ण बना दिया। चीन के साथ रिश्तों में खटास होने के बावजूद, 1958 में भारत ने पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के मार्शल येन जियानयिंग को गणतंत्र दिवस के मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया। यह पहल एक संकेत थी कि भारत अपने पड़ोसियों के साथ संबंध सुधारने में रुचि रखता है।

गणतंत्र दिवस पर चीफ गेस्ट की परंपरा

गणतंत्र दिवस पर चीफ गेस्ट को बुलाने की परंपरा न केवल भारत की आतिथ्य संस्कृति को दर्शाती है, बल्कि यह एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक कदम भी है। हर साल दुनिया के किसी न किसी प्रभावशाली नेता को बुलाना, भारत के बढ़ते वैश्विक प्रभाव का संकेत है। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा (2015) और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (2007) जैसे विश्वस्तरीय नेताओं ने भी गणतंत्र दिवस परेड में भाग लिया है। यह भारत की कूटनीतिक ताकत और वैश्विक संबंधों का प्रमाण है।

कब-कब नहीं आए चीफ गेस्ट?

हालांकि, भारत में कई बार ऐसा भी हुआ जब गणतंत्र दिवस समारोह में कोई मुख्य अतिथि मौजूद नहीं था।
1952 और 1953: भारत में शुरुआती गणतंत्र दिवस समारोह के दौरान विदेशी राष्ट्राध्यक्षों को आमंत्रित करने की परंपरा नहीं थी।
1966: तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के निधन के कारण समारोह में चीफ गेस्ट नहीं थे।
2021: ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन को आमंत्रित किया गया था, लेकिन कोविड-19 के कारण उनकी यात्रा स्थगित हो गई।
2022: कोरोना महामारी के चलते किसी भी विदेशी मेहमान को बुलाया नहीं गया।

भारत द्वारा दुश्मन देशों के नेताओं को गणतंत्र दिवस पर आमंत्रित करना यह दिखाता है कि कूटनीति में भावनाओं के बजाय व्यवहारिकता को प्राथमिकता दी जाती है। यह कदम न केवल शांति का संदेश देता है, बल्कि वैश्विक मंच पर भारत की गंभीरता और दूरदर्शिता को भी रेखांकित करता है। भारत की इस परंपरा ने यह साबित किया है कि चाहे संबंध कितने भी तनावपूर्ण क्यों न हों, संवाद और सहयोग के लिए हमेशा एक रास्ता खुला होता है।

गणतंत्र दिवस पर दुश्मन देशों के नेताओं को बुलाने की परंपरा भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाती है। यह भारत के उस दृष्टिकोण को परिलक्षित करता है, जिसमें कूटनीति और संवाद को प्राथमिकता दी जाती है, भले ही संबंध कितने भी जटिल क्यों न हों।
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