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पाकिस्तान और चीन पर अमेरिका-जापान की चुप्पी... शायद भूल गया QUAD कि भारत क्यों है उसके लिए जरूरी

भारत-पाकिस्तान के बीच हालिया तनाव और चीन की खुली सैन्य मदद के बावजूद अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे QUAD सहयोगियों का तटस्थ रवैया कई सवाल खड़े करता है. भारत को जहां उम्मीद थी कि ये लोकतांत्रिक ताकतें उसके साथ खड़ी होंगी, वहीं उनकी चुप्पी ने QUAD की विश्वसनीयता और उद्देश्य दोनों पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है. इस रिपोर्ट में जानिए क्यों भारत QUAD के लिए सबसे जरूरी सदस्य है, और उसकी अनदेखी से कैसे डगमगा सकता है हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शक्ति संतुलन.

14 May, 2025
( Updated: 15 May, 2025
10:13 AM )
पाकिस्तान और चीन पर अमेरिका-जापान की चुप्पी... शायद भूल गया QUAD कि भारत क्यों है उसके लिए जरूरी
भारत और पाकिस्तान के बीच हाल ही में सरहद पर हुए तनावपूर्ण हालातों ने एक बार फिर दुनिया की बड़ी कूटनीतिक साझेदारियों की असलियत उजागर कर दी है. जब भारत को उम्मीद थी कि QUAD (क्वाड) देश अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया उसके साथ पूरी मज़बूती से खड़े होंगे, तब इन देशों ने आश्चर्यजनक रूप से तटस्थता का रुख अपनाया. ना तो किसी देश ने पाकिस्तान के खिलाफ खुलकर कुछ भी कहा और ना ही भारत के समर्थन में कोई मज़बूत बयान जारी किया। इस चुप्पी ने भारत की कूटनीतिक स्थिति पर तो असर डाला ही, साथ ही क्वाड की उपयोगिता पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं.

सवालों के घेरे में क्वाड का उद्देश्य

क्वाड की स्थापना एक सामरिक समूह के रूप में हुई थी, जिसका मुख्य उद्देश्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते सैन्य और आर्थिक प्रभाव को संतुलित करना था। लेकिन विडंबना देखिए कि भारत-पाकिस्तान तनाव के दौरान जब चीन खुलकर पाकिस्तान के पक्ष में खड़ा हुआ, जहाँ पाकिस्तानी सेना ने चीनी हथियारों, ड्रोन और PL-15 मिसाइल जैसे उपकरणों का उपयोग भारत के खिलाफ किया, तब भी क्वाड के अन्य सदस्य देश चुप्पी साधे रहे। सवाल ये उठता है कि अगर चीन के ऐसे हस्तक्षेप पर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी जाती, तो फिर QUAD का अस्तित्व ही क्या रह जाता है?

भारत की स्थिति क्वाड में क्यों है अलग?

भारत क्वाड के अन्य सदस्यों से कई मायनों में अलग है। उसकी भौगोलिक स्थिति, सामरिक आत्मनिर्भरता और चीन के साथ वास्तविक सीमा विवाद उसे एक अलग वर्ग में रखता है। भारत वह देश है, जो सीधे युद्ध की संभावना से जूझता है, न कि महज़ कूटनीतिक समीकरणों से। भारत की विदेश नीति हमेशा स्वतंत्र रही है, जिसका उदाहरण हमने रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान भी देखा। जहां अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया रूस का खुला विरोध कर रहे थे, तो वहीं भारत ने एक संतुलित रुख अपनाया। यही वजह है कि भारत वैश्विक मंचों पर ग्लोबल साउथ की आवाज़ बनकर उभरा है। 

QUAD का एक बड़ा उद्देश्य चीन की बढ़ती आक्रामकता को संतुलित करना है। चीन अपनी सैन्य ताकत और आर्थिक दबदबे के बल पर छोटे देशों को डराने की कोशिश करता है। लेकिन भारत ही एकमात्र ऐसा देश है, जिसने चीन से सीधे संघर्ष किया है चाहे वो डोकलाम हो या गलवान घाटी। चीन को बैलेंस करने के लिए भारत जैसी ताकतवर और जुझारू साझेदारी की QUAD को ज़रूरत है। भारत दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और इसमें अभी भी विकास की अपार संभावनाएं हैं। क्वाड देश अगर आपसी व्यापार, टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और इंडो-पैसिफिक में सप्लाई चेन विकसित करना चाहते हैं, तो भारत सबसे बड़ा और भरोसेमंद बाजार बनता है। साथ ही भारत की युवा जनसंख्या, तकनीकी दक्षता और स्टार्टअप इकोसिस्टम क्वाड की आर्थिक मजबूती को और बढ़ाता है। क्वाड उन देशों का समूह है जो लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास रखते हैं। भारत, अपने विविधतापूर्ण समाज और मजबूत लोकतांत्रिक परंपराओं के साथ इस विचारधारा का सबसे मजबूत स्तंभ है। ऐसे में भारत की मौजूदगी QUAD को सिर्फ सैन्य या आर्थिक ही नहीं, आदर्शों और मूल्यों के स्तर पर भी मजबूत बनाती है। लेकिन अगर क्वाड के बाकी देश भारत की इस अहमियत को नज़रअंदाज़ करते हैं, तो न केवल भारत की भूमिका कमजोर होगी, बल्कि यह पूरी साझेदारी ही अपने उद्देश्य से भटक जाएगी।

क्वाड केवल चार लोकतंत्रों का समूह नहीं है, बल्कि इसकी असली ताक़त विचारों की समानता और आपसी सम्मान में है। अगर भारत को यह महसूस होने लगे कि उसकी चिंताओं को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा, तो भारत अपनी विदेश नीति में फेरबदल कर सकता है। भारत अपनी स्वतंत्र रणनीति के तहत रूस, ईरान, या दक्षिण एशिया के अन्य साझेदारों की ओर रुख कर सकता है। इससे क्वाड के भीतर असंतुलन पैदा होगा और यह समूह महज़ औपचारिकता बनकर रह जाएगा।

अमेरिका-जापान की चुप्पी रणनीतिक संतुलन या सियासी मजबूरी?

अमेरिका और जापान जैसे देश शायद अपने व्यापारिक और सामरिक हितों के कारण पाकिस्तान और चीन के खिलाफ खुलकर बोलने से बचते हैं। लेकिन यह नीति लंबे समय में न तो भारत के हित में है और न ही स्वयं क्वाड के लिए लाभकारी। अगर पाकिस्तान और चीन की नजदीकियां बढ़ती हैं और यह ब्लॉक चुप बैठा रहता है, तो यह भारत के लिए एकतरफा नुकसान होगा। इससे भारत के अंदर यह भावना पैदा हो सकती है कि जब ज़रूरत पड़ी, तब उसके तथाकथित रणनीतिक साझेदार पीछे हट गए। इससे भारत भविष्य में अपने रणनीतिक विकल्पों पर दोबारा विचार कर सकता है।

चीन-पाकिस्तान की दोस्ती से उपजता नया खतरा

चीन और पाकिस्तान के बीच जिस तरह की सैन्य और तकनीकी साझेदारी बढ़ रही है, वह भारत के लिए एक बड़े खतरे का संकेत है। हाल ही में पाकिस्तान द्वारा इस्तेमाल किए गए ड्रोन और मिसाइल सिस्टम जिनमें तुर्की और चीन की तकनीक शामिल थी. जिससे यह साबित होता है कि भारत को बहुस्तरीय सुरक्षा तैयारियों के साथ-साथ कूटनीतिक मोर्चे पर भी पूरी तरह सतर्क रहना होगा। ऐसे समय में क्वाड जैसी साझेदारियां तभी उपयोगी साबित होंगी जब ये सैद्धांतिक नहीं, बल्कि व्यावहारिक समर्थन दें।

भारत अब वैश्विक शक्ति बनने की ओर अग्रसर है। वह न तो किसी पर निर्भर है और न ही किसी के रहमोकरम पर टिका है। लेकिन कूटनीतिक साझेदारियों में विश्वास और पारदर्शिता जरूरी होती है। अगर क्वाड देश विशेष रूप से अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया भारत की चिंताओं को नज़रअंदाज़ करते रहेंगे और पाकिस्तान जैसे मुद्दों पर चुप रहेंगे, तो यह पूरे गठबंधन के अस्तित्व को खतरे में डाल सकता है। भारत को साझेदार नहीं, एक बराबरी का भागीदार समझना होगा, तभी जाकर क्वाड भविष्य में प्रासंगिक रह पाएगा।

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