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भारत में ‘तेरे टुकड़े हों’ जैसी भाषा नहीं होगी बर्दाश्त... संघ प्रमुख मोहन भागवत का दो टूक संदेश, कहा- राष्ट्रहित सर्वोपरि

मोहन भागवत ने अंडमान में कहा कि देश तोड़ने वाली भाषा का भारत में कोई स्थान नहीं है. उन्होंने स्पष्ट किया कि संविधान और समाज दोनों एकता की बात करते हैं, ऐसे में छोटे स्वार्थों के लिए टकराव गलत है और राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखना चाहिए.

Mohan Bhagwat (File Photo)

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने शुक्रवार को जोर देकर कहा कि भारत में ऐसी भाषा का कोई स्थान नहीं होना चाहिए जो देश को तोड़ने वाली हो या लोगों में दरार पैदा करे. उन्होंने साफ कहा कि 'तेरे टुकड़े हों' जैसी भाषा का प्रयोग समाज में बिल्कुल नहीं होना चाहिए. संघ प्रमुख भागवत अंडमान के बेओदनाबाद में आयोजित कार्यक्रम में बोल रहे थे, जहाँ उन्होंने देश की एकता और अखंडता पर विशेष जोर दिया.

छोटी-छोटी बातों पर टकराव गलत  

संघ प्रमुख ने कहा कि भारत हमेशा से एक राष्ट्र के रूप में चला है और हमारा संविधान भी देश की एकता को सर्वोच्च मानता है. जब संविधान और समाज दोनों एकता की बात करते हैं, तो छोटी-छोटी बातों पर टकराव करना गलत है. उन्होंने यह भी कहा कि समाज में कई बार लोग अपने व्यक्तिगत स्वार्थ को देश के हित से ऊपर रख देते हैं, जो कि बिल्कुल अनुचित है. भागवत ने स्पष्ट रूप से कहा, 'पहले राष्ट्र का हित सोचना चाहिए. जब तक चल सकता है, हम देश के लिए चलें. अगर त्याग करना पड़े तो वह भी करें, लेकिन हमारी प्राथमिकता हमेशा भारत होना चाहिए.'

स्वातंत्र्यवीर सावरकर के जीवन का किया जिक्र 

कार्यक्रम में सरसंघचालक ने स्वातंत्र्यवीर सावरकर के जीवन और व्यक्तित्व का भी उल्लेख किया. उन्होंने कहा कि सावरकर का जीवन देशभक्ति और समर्पण का सर्वोत्तम उदाहरण है. उनकी कविताओं और गीतों में देशप्रेम, भक्ति और त्याग साफ झलकता है. भागवत ने कहा कि सावरकर देश की वेदना को अपना दुख मानते थे और जो व्यक्ति मातृभूमि से प्रेम नहीं करता, वह पुत्र कैसे कहलाए. उन्होंने युवाओं से आग्रह किया कि वे सावरकर की तन्मयता और देश के प्रति समर्पण से प्रेरणा लें. मोहन भागवत ने कहा कि सावरकर ने राष्ट्र की कल्पना को 'हिंदू राष्ट्र' कहा, जिसका अर्थ यह नहीं कि किसी का भेदभाव हो, बल्कि हर व्यक्ति देश के लिए जीए और खुद को देश का हिस्सा मानकर चले. जीवन में बड़ा उद्देश्य देश के लिए समर्पित होना चाहिए. उन्होंने जोर देकर कहा कि भक्ति ही वह शक्ति है जिससे व्यक्ति कठिनाइयों को सहन कर पाता है.

हर हाल में देश सर्वोपरि 

भागवत ने समाज को संदेश दिया कि हर काम में देश को सर्वोपरि रखा जाना चाहिए. पेशेवर बनो, पैसा कमाओ, लेकिन देश को कभी मत भूलो. उन्होंने कहा, 'हम सभी को उस पीड़ा को महसूस करना चाहिए जो सावरकर ने देश के लिए महसूस की थी. हमें जो भी काम करना हो, उसमें हमेशा अपने देश को प्राथमिकता देनी चाहिए. सामूहिक प्रयास से ही भारत को अधिक शक्तिशाली और वैभवशाली बनाया जा सकता है.' इस अवसर पर मोहन भागवत ने सभी से यह संकल्प लेने को कहा कि देश के लिए हर प्रयास किया जाएगा और किसी भी परिस्थिति में राष्ट्र की एकता और अखंडता को कभी खतरे में नहीं आने देंगे.

बताते चलें कि मोहन भागवत के इस संबोधन ने एक बार फिर यह संदेश दिया कि राष्ट्र की एकता और अखंडता से बड़ा कोई लक्ष्य नहीं है. उन्होंने समाज को यह सोचने पर मजबूर किया कि भाषा, विचार और कर्म सभी राष्ट्रहित से जुड़े होने चाहिए. देश तभी मजबूत होगा, जब हर नागरिक अपने कर्तव्य को समझते हुए भारत को सर्वोपरि रखेगा.

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