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आसमान में दिखेगा कुँवर सिंह का शौर्य, PM नरेंद्र मोदी और CM नीतीश कुमार का फैसला

अबकी बार बिहार में वीर कुंवर सिंह के विजयोत्सव को ऐतिहासक रूप से मनाने का फैसला किया है. बिहार के इतिहास में वीर कुंवर सिंह का शौर्य दिवस इतना भव्य कभी नहीं मनाया गया. दरअसल बिहार में 22-23 अप्रैल 2025 को वीर कुंवर सिंह का विजयोत्सव मनाया जा रहा है. क्योंकि अप्रैल 1858 में जगदीशपुर किले को जीतकर उन्होंने यूनियन जैक का झंडा उखाड़ फेंका था.

12 Apr, 2025
( Updated: 12 Apr, 2025
10:05 PM )
आसमान में दिखेगा कुँवर सिंह का शौर्य, PM नरेंद्र मोदी और CM नीतीश कुमार का फैसला
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मिलकर अबकी बार बिहार में वीर कुंवर सिंह के विजयोत्सव को ऐतिहासक रूप से मनाने का फैसला किया है. बिहार के इतिहास में वीर कुंवर सिंह का शौर्य दिवस इतना भव्य कभी नहीं मनाया गया. दरअसल बिहार में 22-23 अप्रैल 2025 को वीर कुंवर सिंह का विजयोत्सव मनाया जा रहा है. क्योंकि अप्रैल 1858 में जगदीशपुर किले को जीतकर उन्होंने यूनियन जैक का झंडा उखाड़ फेंका था. विजय उत्सव के मौके पर बिहार में 22 और 23 अप्रैल 2025 को पटना के गंगा पथ पर भारतीय वायुसेना की उदय किरण एरोबेटिक टीम अपना शौर्य दिखाएगी. कार्यक्रम सुबह 9.30 बजे से शुरू होगा.  


रक्षामंत्री को मिला निमंत्रण 

हाल ही बिहार के सारण से लोकसभा सांसद राजीव प्रताप रूडी ने इस कार्यक्रम को लेकर देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात की. और इस कार्यक्रम में आने का न्योता दिया. और सूर्यकिरण एरोबेटिक टीम के पटना में प्रदर्शन की मंजूरी के लिए रक्षा मंत्रालय का आभार जताया. इसके साथ ही राजीव प्रताप रूडी ने बाबू वीर कुँवर सिंह और सूर्यकिरण टीम की संयुक्त स्मृति-चित्र मंत्री को भेंट की.


सूर्यकिरण टीम का शौर्य 

गौरतलब है कि सूर्यकिरण टीम, भारतीय वायुसेना की राजदूत टीम के रूप में जानी जाती है. हाल ही में स्वदेशी तकनीक से बने स्मोक पॉड्स इसमें जोड़े गए हैं, जो आकाश में केसरिया, सफेद और हरे रंग के धुएँ से तिरंगे की भव्य छवि बनाते हैं. और सोचकर देखिए जब पटना में गंगा तट पर जब ये सबकुछ होगा तो कैसा रोमांचित कर देने वाला दृश्य होगा.वीर कुंवर सिंह के बारे में कहते हैं, तलवार में बिजली सी रफ्तार, शेर सा जिगर, हौसले तूफानी और इरादे चट्टानी. जिसकी गर्जना से अंग्रेजों के खेमे में खलबली मच जाती थी. उनका नाम था वीर कुंवर सिंह. सीना तान चलते थे. अंग्रेज भी उनसे डरते थे. चेतक चलता तो धरती हिल जाती. आसमान में बिजली कौंध जाती. उनका नाम था वीर कुंवर सिंह.  80 साल की उम्र में 21 साल वाले नौजवानों सा पराक्रम दिखाने वाले, अकेले अंग्रेजों के समूह में घुसकर भीषण तांडव करने वाले उन्ही वीर कुंवर सिंह का शौर्य दिवस मनाया जा रहा है. जो सालों से किसी ने नहीं किया वो अब किया जा रहा है. और ऐसा करने वाली है मोदी सरकार. मोदी सरकार के सांसद राजीव प्रताप रूडी ने इसकी पूरी तैयारी कर ली है. आसमान में वायु सेना के फाइटर प्लेन्स गर्जना करेंगे. सूर्य किरण की एरोबेटिक टीम कलाबाजी दिखाएगी. गंगा पथ के जर्रे जर्रे पर बाबू वीर कुंवर सिंह की वीरगाथा छपेगी.



आखिर ये वीर बाबू वींर कुंवर सिंह कौन थे. देश की आजादी में उनका क्या महत्व है. बिहार में उनका नाम इनते फख्र के साथ क्यों लिया जाता है. यकीन मानिए ये कहानी आपके रोम रोम में जुनून की लहर पैदा कर देगी. मनोरंजन प्रसाद ने लिखा
*आग क्रांति की धधक उठी, पहुँची पटने में चिनगारी.
*रणोन्मत्त योद्धा भी करने लगे युद्ध की तैयारी॥
*चंद्रगुप्त के वंशज जागे करने माँ की रखवारी.
*शेरशाह का खून लगा करने तेजी से रफ्तारी॥
*पीर अली फाँसी पर लटका, वीर बहादुर दाना था.
*सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था ॥ 


 वीर कुंवर सिंह का जीवन परिचय 

आरा के जगदीशपुर में राजा साहबजादा सिंह और रानी पंचरत्न कुंवर के घर में पैदा हुए वीर कुंवर सिंह. वीर कुंवर सिंह राजा भोज के वंशज थे. 1827 में कुंवर सिंह के पिताजी का निधन हो गया. उसके बाद जगदीशपुर की गद्दी संभालने की जिम्मेदारी कुंवर सिंह के कंधे पर आ गई. इस जिम्मेदारी को संभालते ही उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के बढ़ते अत्याचार के खिलाफ लोहा लेने का संकल्प ले लिया था. उस वक्त उनकी उम्र हो गई करीब 80 साल. 80 साल की उम्र में वीर कुंवर सिंह ने 15-15 युद्ध किए. ये सारी लड़ाइयां 25 जुलाई 1857 से लेकर 23 अप्रैल 1858 के बीच हुई थी. इस उम्र में भी कुंवर सिंह युद्ध कौशल इसलिए जानते थे क्योंकि बचपन में ही कृपाण-कटार और तलवार चलाने का शौक पाल लिया. युद्ध कलाओं से छोटी उम्र में ही दोस्ती हो गई. बस इंतजार था उस पल का जब अपने इस हूनर से हिन्दुस्तान के भाल को शान से ऊंचा रख सकें. इधर मंगल पांडे के बैरकपुर विद्रोह छेड़ा. उधर बिहार में कुंवर सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. बाबू वीर कुंवर सिंह के नाम से अंग्रेज डरते थे. अंग्रेजों के पास आधुनिक हथियारें थीं, तोपें थी. उसके बाद भी उनके खेमे में दहशत पैदा करने के लिए बस वीर कुंवर सिंह का नाम ही काफी था. 


कुंवर सिंह ने अपने भाई अमर सिंह और स्थानीय लोगों के साथ मिलकर जगदीशपुर में विद्रोह का नेतृत्व किया. 27 जुलाई 1857 को कुंवर सिंह ने आरा पर कब्जा कर लिया और अंग्रेजों को खदेड़ दिया जो उनकी पहली बड़ी जीत थी. अंग्रेजों ने वीर कुंवर सिंह के खिलाफ भारी सैन्य बल के साथ कार्रवाई की, लेकिन कुंवर सिंह ने जंगलों और गांवों में छिपकर गुरिल्ला युद्ध से अंग्रेजों की चाल को तबाह-ओ-बर्बाद कर दिया


कुंवर सिंह ने ब्रितानी हुकूमत को दी चुनौती 

2 अगस्त 1857 को मेजर आयर से कुंवर सिंह की सेना की भिड़ंत आरा के बीबीगंज में हुई. कुंवर सिंह ने ब्रितानी हुकूमत की जड़ें उखाड़ दी थी. बीबीगंज में सीमित सेना होने के बाद भी बाबू कुंवर युद्ध से पीछे नहीं भागे. सीमित सेना की वजह से हार मिली लेकिन हिम्म्त नहीं टूटा. तब स्त्रियों और सैनिकों के साथ उन्हें अपना महल छोड़कर जाना पड़ा. लेकिन जाते जाते ये सौगंध खाकर गए कि एक दिन जगदीशपुर किले से अंग्रेजी हुकूमत का झंडा उतार कर ही दम लेंगे. कुंवर सिंह अंग्रेजों के खिलाफ आगे बढ़ते रहे. और 26 मार्च 1858 को आजमगढ़ पर पूर्ण रूप से कब्जा कर लिया था. 20 अप्रैल 1858 को आजमगढ़ पर कब्जे के बाद रात में कुंवर सिंह बलिया के मनियर गांव पहुंचे थे. 22 अप्रैल को सूर्योदय के समय शिवपुर घाट बलिया से एक नाव पर सवार हो गंगा पार कर रहे थे. इसी दौरान अंग्रेजों की गोली उनके बांह में लग गई. गोली का जहर पूरे हाथ में फैलने लगा और वीर कुंवर सिंह बीमार पड़ने लगे. फिर भोजपुरी शेर ने अपने गोली लगे हुए उस हाथ को काटकर गंगा नदी में यह कहते हुए बहा दिया “लो गंगा माई! तेरी यही इच्छा है”. उनके दाहिने हाथ में गोली लगी थी जिसे काटना पड़ा. फिर अपने ही बाएं हाथ से उसे उठाकर गंगा में प्रवाहित कर दिया. 25 अप्रैल 1858 को कुंवर सिंह जगदीशपुर किले से यूनियन जैक का झंडा उतारने में कामयाब हुए. और अपना सौगंध पूरा करने के बाद ही आखिर सांस ली. अंग्रेजों की लाख कोशिशों के बाद भी भोजपुर बहुत लंबे कालखंड तक उनकी गिरफ्त से आजाद रहा. 



लगातार युद्ध और चोटों के कारण उनकी सेहत बिगड़ती गई. और 26 अप्रैल 1858 को जगदीशपुर में अंग्रेजों के खिलाफ अंतिम लड़ाई लड़ते हुए अपने प्राण त्याग दिए. आज 167 साल बाद भी वीर कुंवर सिंह बिहार के लोगों की रगों में एक ललक और जुनून पर जिंदा हैं. इसलिए उनके नाम पर बिहार पर 22 और 23 अप्रैल को शौर्य दिवस मनाया जा रहा है. जब पटना के गंगा पथ पर सूर्य किरण की टीम आसमान में अदम्य साहस का प्रमाण पेश करेगी.

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