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केजरीवाल का खेल खत्म! AAP की हार के यह हैं 6 बड़े कारण

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में आम आदमी पार्टी (AAP) को करारी हार का सामना करना पड़ा है। 27 साल बाद भाजपा ने दिल्ली में जबरदस्त जीत दर्ज करते हुए 48 सीटों पर कब्जा किया, जबकि केजरीवाल की पार्टी महज 22 सीटों पर सिमट गई। चुनावी नतीजों ने सभी को चौंका दिया और सवाल उठने लगे कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि दिल्ली में AAP का जादू फीका पड़ गया?

08 Feb, 2025
( Updated: 09 Feb, 2025
08:01 AM )
केजरीवाल का खेल खत्म! AAP की हार के यह हैं 6 बड़े कारण
दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में आम आदमी पार्टी (आप) को अप्रत्याशित हार का सामना करना पड़ा है। पिछले दो कार्यकालों में प्रचंड बहुमत से सरकार बनाने वाली 'आप' इस बार मात्र 22 सीटों पर सिमट गई, जबकि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 48 सीटों के साथ 27 वर्षों बाद सत्ता में वापसी की है। इस हार ने राजनीतिक विश्लेषकों और जनता के बीच कई सवाल खड़े कर दिए हैं: आखिर अरविंद केजरीवाल का खेल कैसे बिगड़ा? 'आप' की इस पराजय के पीछे कौन से प्रमुख कारण रहे?

नेतृत्व पर संकट
'आप' के संस्थापक और प्रमुख नेता अरविंद केजरीवाल ने नई दिल्ली सीट से चुनाव लड़ा, जहां उन्हें भाजपा के प्रवेश वर्मा के हाथों हार का सामना करना पड़ा। केजरीवाल की हार ने पार्टी के नेतृत्व पर सवाल खड़े कर दिए हैं। उनकी गिरफ़्तारी और जेल में बिताए गए समय ने उनकी छवि को नुकसान पहुंचाया, जिससे जनता का विश्वास कम हुआ। इसके अलावा, उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया भी जंगपुरा सीट से पराजित हुए, जो पार्टी के लिए एक और बड़ा झटका था।

भ्रष्टाचार के आरोप
पिछले वर्ष केजरीवाल और उनके दो प्रमुख सहयोगियों पर एक शराब वितरक से रिश्वत लेने के आरोप लगे थे, जिसके चलते उन्हें गिरफ्तार भी किया गया था। हालांकि, उन्होंने इन आरोपों को राजनीतिक साजिश बताया, लेकिन इन घटनाओं ने जनता के बीच पार्टी की छवि को धूमिल किया। विपक्ष ने इन मुद्दों को जोर-शोर से उठाया, जिससे 'आप' की साख को गहरा आघात पहुंचा।

विकास कार्यों में कमी

'आप' सरकार ने अपने पिछले कार्यकालों में शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में कई कार्य किए थे, लेकिन इस बार जनता को उम्मीद के मुताबिक नए विकास कार्य नहीं दिखे। पार्टी के वादों और जमीनी हकीकत के बीच अंतर ने मतदाताओं को निराश किया, जिससे वे भाजपा की ओर आकर्षित हुए।

विपक्ष की मजबूत रणनीति

भाजपा ने इस चुनाव में आक्रामक प्रचार अभियान चलाया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने कई रैलियों को संबोधित किया, जिसमें उन्होंने 'आप' सरकार की नाकामियों को उजागर किया और दिल्ली के विकास के लिए नए वादे किए। भाजपा ने गरीबों, महिलाओं और बुजुर्गों के लिए वित्तीय सहायता, रसोई गैस पर सब्सिडी जैसी योजनाओं की घोषणा की, जिसने मतदाताओं को प्रभावित किया।

जनता की बदलती प्राथमिकताएं
दिल्ली की जनता की प्राथमिकताएं समय के साथ बदली हैं। जहां एक समय 'आप' की मुफ्त बिजली, पानी और स्वास्थ्य सेवाओं की नीतियां लोकप्रिय थीं, वहीं अब मतदाता स्थायी विकास, रोजगार और सुरक्षा जैसे मुद्दों पर अधिक ध्यान दे रहे हैं। 'आप' इन बदलती अपेक्षाओं को समझने में विफल रही, जिससे उसे नुकसान उठाना पड़ा।

आंतरिक कलह और संगठनात्मक कमजोरी
पार्टी के भीतर आंतरिक कलह और संगठनात्मक ढांचे की कमजोरी भी हार का एक कारण रही। कई वरिष्ठ नेताओं के पार्टी छोड़ने या निष्क्रिय होने से 'आप' की जमीनी पकड़ कमजोर हुई। इसके अलावा, उम्मीदवारों के चयन में पारदर्शिता की कमी और स्थानीय मुद्दों की अनदेखी ने भी पार्टी की स्थिति को कमजोर किया।
आम आदमी पार्टी की इस हार के पीछे कई कारक जिम्मेदार हैं, जिनमें नेतृत्व संकट, भ्रष्टाचार के आरोप, विकास कार्यों में कमी, विपक्ष की मजबूत रणनीति, जनता की बदलती प्राथमिकताएं और आंतरिक कलह प्रमुख हैं। 'आप' के लिए यह समय आत्ममंथन का है, जहां उसे अपनी नीतियों, रणनीतियों और संगठनात्मक ढांचे पर पुनर्विचार करना होगा, ताकि भविष्य में वह फिर से जनता का विश्वास जीत सके।

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