बॉम्बे हाई कोर्ट का फैसला: कपड़े और खाने पर तंज कसना ‘क्रूरता’ नहीं, पति और ससुराल वाले बरी
बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने शुक्रवार को एक महिला द्वारा अपने पति और ससुराल वालों के खिलाफ दर्ज एफआईआर और चल रही आपराधिक कार्यवाही को रद्द करते हुए कहा कि बीवी के कपड़ों पर ताने मारना या खाना बनाने पर तंज कसना, भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498A के तहत ‘गंभीर क्रूरता’ या ‘उत्पीड़न’ नहीं माना जा सकता है.
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बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने शुक्रवार को एक अहम फैसला देते हुए, एक महिला द्वारा अपने पति और ससुराल वालों के खिलाफ दर्ज एफआईआर और चल रही आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया.
कोर्ट ने कहा कि, "बीवी के कपड़ों पर ताने मारना या खाना बनाने पर तंज कसना, भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498A के तहत ‘गंभीर क्रूरता’ या ‘उत्पीड़न’ नहीं माना जा सकता है."
जस्टिस विभा कंकनवाड़ी और संजय ए. देशमुख की बेंच ने टिप्पणी करते हुए कहा, "जब रिश्ते बिगड़ते हैं, तो अक्सर आरोप बढ़ा-चढ़ाकर लगाए जाते हैं. यदि शादी से पहले सारी बातें स्पष्ट की गई थीं और आरोप सामान्य या कम गंभीर हैं, तो 498A की परिभाषा में यह क्रूरता नहीं मानी जाएगी. ऐसे मामलों में पति और उसके परिवार को ट्रायल का सामना कराना कानून का दुरुपयोग है."
क्या कहती है धारा 498A?
आईपीसी की धारा 498-ए उस क्रूरता से जुड़ी है, जो पति या उसके रिश्तेदार किसी महिला के साथ करते हैं. यह एक संज्ञेय, गैर-जमानती और गैर-समझौतायोग्य अपराध है. यानी पुलिस बिना वारंट के गिरफ्तारी कर सकती है, जमानत आसानी से नहीं मिलती, और मामला अदालत के बाहर सुलझाया नहीं जा सकता.
क्या है पूरा मामला?
बता दें कि दंपति की शादी 24 मार्च 2022 को हुई थी. यह शादी महिला की दूसरी शादी थी, महिला और उसके पहले पति की ने 2013 में आपसी सहमति तलाक ले ली थी. महिला का आरोप था कि शादी के डेढ़ महीने बाद ही उसके साथ दुर्व्यवहार शुरू हो गया था, और उसके पति की मानसिक और शारीरिक बीमारियों को उससे छिपाया गया था.
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हालांकि, कोर्ट ने पाया कि चार्जशीट में मौजूद शादी से पहले की चैट से साफ है कि पति ने अपनी बीमारियों और दवाओं की जानकारी पहले ही पत्नी को दे दी थी. यानी महिला को शादी से पहले ही पति की सेहत के बारे में पता था.
पत्नी ने यह भी आरोप लगाया कि दिवाली के आसपास फ्लैट खरीदने के लिए ₹15 लाख की मांग की गई थी, लेकिन कोर्ट ने इस पर शक जताया, क्योंकि पति के पास पहले से ही अपना फ्लैट था. कोर्ट ने यह भी कहा कि परिवार के सदस्यों पर लगाए गए आरोप "सामान्य" थे, जो धारा 498-ए के तहत "क्रूरता" की श्रेणी में नहीं आते.
इसके अलावा, कोर्ट ने पाया कि चार्जशीट में महिला के बयान के अलावा कोई ठोस सबूत नहीं था और जांच अधिकारी ने पड़ोसियों से भी पूछताछ नहीं की थी.
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