शराब और सॉफ्ट ड्रिंक्स होंगी महंगी! WHO ने सभी देशों से की सिफारिश, जानिए भारत पर क्या होगा असर?
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने स्पेन के सेविले में आयोजित यूएन फाइनेंस फॉर डेवलपमेंट सम्मेलन में सभी देशों से तंबाकू, शराब और मीठे पेयों पर टैक्स बढ़ाने का आग्रह किया है. यह “3 by 35” रणनीति का हिस्सा है, जिसका लक्ष्य 2035 तक स्वास्थ्य करों से 1 ट्रिलियन डॉलर जुटाना है. WHO प्रमुख डॉ. टेड्रोस ने इसे स्वास्थ्य प्रणाली मजबूत करने की दिशा में जरूरी कदम बताया है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने दुनिया के सभी देशों से अनुरोध किया है कि वे तंबाकू, शराब और मीठे पेय जैसे पदार्थों पर भारी टैक्स लगाएं. WHO का लक्ष्य है कि आने वाले दस वर्षों में इन उत्पादों की कीमतों में कम से कम 50% की बढ़ोतरी हो, ताकि न केवल बीमारियों को रोका जा सके, बल्कि देशों की स्वास्थ्य प्रणाली के लिए भी आर्थिक संसाधन जुटाए जा सकें.
यह प्रस्ताव हाल ही में स्पेन के सेविले शहर में आयोजित यूएन फाइनेंस फॉर डेवलपमेंट सम्मेलन में पेश किया गया. WHO का कहना है कि यह कदम उनकी “3 by 35” रणनीति का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य साल 2035 तक स्वास्थ्य करों के माध्यम से 1 ट्रिलियन डॉलर का राजस्व इकट्ठा करना है.
स्वास्थ्य के लिए क्यों जरूरी है टैक्स?
WHO के प्रमुख डॉ. टेड्रोस अधानोम घेब्रेयेसस ने कहा, “अब वक्त आ गया है कि सरकारें इस नई सच्चाई को स्वीकार करें और अपनी स्वास्थ्य प्रणाली को मजबूत बनाएं.” इस सिफारिश का मकसद केवल राजस्व इकट्ठा करना नहीं है. WHO का दावा है कि तंबाकू, शराब और मीठे पेयों पर टैक्स बढ़ाकर मधुमेह (डायबिटीज), मोटापा, कैंसर और अन्य गंभीर बीमारियों के मामलों में गिरावट लाई जा सकती है. WHO के सहायक महानिदेशक डॉ. जेरेमी फैरर ने इस नीति को “स्वास्थ्य सुधार का सबसे प्रभावशाली हथियार” बताया.
टैक्स से कितनी बढ़ेगी कीमत?
WHO के स्वास्थ्य अर्थशास्त्री गुइलेर्मो सांडोवाल के अनुसार, अगर आज किसी देश में कोई मीठा पेय ( कोल्ड ड्रिंक) 4 डॉलर में मिलता है, तो 2035 तक वही पेय 10 डॉलर तक पहुंच सकता है. यह कीमत बढ़ोतरी न केवल टैक्स के कारण होगी, बल्कि महंगाई को भी ध्यान में रखते हुए तय की जाएगी. कोलंबिया और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में इस तरह के टैक्स से लोगों की खपत में गिरावट देखी गई है और इसके परिणामस्वरूप स्वास्थ्य सुधार भी हुआ है.
भारत की ओर से उठाए गए कदम
भारत में भी इस दिशा में पहले से सोच-विचार हो रहा है. अप्रैल 2025 में ICMR-NIN (इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन) ने सरकार को सुझाव दिया था कि अत्यधिक वसा, चीनी और नमक वाले खाद्य पदार्थों पर हेल्थ टैक्स लगाया जाए. इस समूह ने यह भी कहा था कि ऐसे अस्वास्थ्यकर उत्पादों को स्कूल कैंटीनों और शिक्षण संस्थानों के आसपास बेचना सख्त रूप से प्रतिबंधित किया जाना चाहिए. यह सलाह FSSAI (भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण) की गाइडलाइंस के अनुरूप है. भारत जैसे देश में, जहां मधुमेह और हृदय रोग की दर तेजी से बढ़ रही है, यह पहल काफी अहम मानी जा रही है.
आलोचना और विरोध भी जारी
WHO की इस सिफारिश की आलोचना भी हो रही है. इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ बेवरेज एसोसिएशंस की कार्यकारी निदेशक केट लॉटमैन ने कहा, “WHO का यह सुझाव कि मीठे पेयों पर टैक्स से मोटापा कम होगा, पिछले एक दशक की असफल नीतियों को नजरअंदाज करता है.” इसी तरह, डिस्टिल्ड स्पिरिट्स काउंसिल की वरिष्ठ उपाध्यक्ष अमांडा बर्जर ने भी WHO की आलोचना करते हुए कहा कि “अल्कोहल पर टैक्स बढ़ाने से नुकसान रुकने का दावा गुमराह करने वाला और गलत दिशा में उठाया गया कदम है.” इन बयानों से साफ है कि यह मुद्दा केवल स्वास्थ्य का नहीं, बल्कि आर्थिक हितों और उद्योगों की आय पर भी असर डालता है. जानकारी देते चलें कि अगर यह नीति लागू होती है, तो आम नागरिक को रोजमर्रा की चीज़ों की कीमत में बड़ी बढ़ोतरी का सामना करना पड़ सकता है. खासकर वे लोग जो नियमित रूप से मीठे पेय पदार्थ, शराब या तंबाकू का सेवन करते हैं, उनके बजट पर सीधा असर पड़ेगा. लेकिन दूसरी ओर, यदि इस बदलाव से लोग इन चीज़ों का कम सेवन करने लगें, तो इससे स्वास्थ्य में सुधार और लंबी उम्र की संभावनाएं भी बढ़ सकती हैं.
बताते चलें कि WHO की यह सिफारिश एक साहसिक कदम है. स्वास्थ्य और आर्थिक स्थिरता दोनों की रक्षा के लिए यह नीति भविष्य में मील का पत्थर साबित हो सकती है. भारत जैसे देशों को अब तय करना होगा कि वे अपने नागरिकों के स्वास्थ्य को प्राथमिकता देंगे या उद्योगों के दबाव में पीछे हटेंगे.