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हेलिकॉप्टर क्रैश में यात्री की मौत, क्या है मुआवजे का हक? जानिए अधिकार

हेलीकॉप्टर या विमान हादसे जैसे दुखद मामलों में जान तो वापस नहीं लाई जा सकती, लेकिन सरकार और कंपनियों की जिम्मेदारी बनती है कि वो पीड़ित परिवारों को आर्थिक मदद दें. DGCA के कड़े नियम और बीमा पॉलिसी इस बात की गारंटी देते हैं कि हर यात्री को सुरक्षा कवच मिला हुआ है.

16 Jun, 2025
( Updated: 16 Jun, 2025
09:01 AM )
हेलिकॉप्टर क्रैश में यात्री की मौत, क्या है मुआवजे का हक? जानिए अधिकार

Kedarnath Helicopter Crash Compensation: हाल के दिनों में देश में कई दर्दनाक हादसे हुए हैं, जिन्होंने न सिर्फ कई परिवारों को उजाड़ दिया, बल्कि पूरे देश को सदमे में डाल दिया। 12 जून को हुआ एयर इंडिया का विमान हादसा जिसमें 265 लोगों की जान चली गई, और उसके कुछ ही दिन बाद उत्तराखंड के केदारनाथ में हेलीकॉप्टर क्रैश ने फिर से लोगों को झकझोर दिया। इस दुर्घटना में कुल 7 लोगों की मृत्यु हो गई, जिनमें से अधिकतर लोग अपने परिवार के एकमात्र सहारा थे.

इन हादसों ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि जब इस तरह की घटनाएं होती हैं, तो क्या मृतकों के परिवारों को कोई मुआवजा (compensation) मिलता है? और अगर मिलता है, तो कितनी राशि और किसके द्वारा दी जाती है? आइए इसे विस्तार से समझते हैं.

 हेलीकॉप्टर क्रैश में क्या मुआवजा मिलता है?

भारत में हेलीकॉप्टर सेवाओं का संचालन नागर विमानन महानिदेशालय (DGCA) की देखरेख में होता है. DGCA के नियमों के अनुसार, जो भी कंपनियां हेलीकॉप्टर चलाती हैं, उनके लिए यात्रियों का बीमा कराना अनिवार्य होता है. इसका मतलब यह है कि अगर किसी हेलीकॉप्टर क्रैश में किसी यात्री की जान जाती है या वह घायल होता है, तो उसे या उसके परिवार को बीमा के तहत मुआवजा मिलना चाहिए.

कितना होता है मुआवजा?

DGCA के नियमों के अनुसार:

हर यात्री का कम से कम ₹20 लाख का बीमा होना जरूरी है.

अगर हादसे में किसी की मौत होती है, तो बीमा कंपनी द्वारा यह राशि परिजनों को दी जाती है.

यदि हादसे की जांच में यह साबित हो जाए कि पायलट या कंपनी की लापरवाही थी, तो कंपनी पर जुर्माना और अतिरिक्त मुआवजा भी लगाया जा सकता है.

 दुर्घटना की जांच और ज़िम्मेदारी

जब भी कोई विमान या हेलीकॉप्टर हादसा होता है, तो DGCA या अन्य संबद्ध एजेंसियां उसकी पूरी जांच करती हैं. जांच रिपोर्ट में यह तय किया जाता है कि दुर्घटना किस कारण से हुई — तकनीकी खराबी, मानवीय भूल या मौसम जैसी परिस्थितियाँ.

अगर किसी कंपनी की लापरवाही सामने आती है, तो उन्हें सिर्फ बीमा के तहत मुआवजा नहीं, बल्कि अतिरिक्त कानूनी जिम्मेदारी भी उठानी पड़ती है. इसमें परिवारों को अधिक मुआवजा देना, लाइसेंस पर रोक और जुर्माना जैसे प्रावधान भी शामिल होते हैं.

सरकार भी देती है मुआवजा

कई बार राज्य सरकारें या केंद्र सरकारें, जिनके क्षेत्र में यह हादसा हुआ है, वे भी पीड़ितों के परिजनों को अलग से आर्थिक सहायता देती हैं. यह राशि अलग-अलग हो सकती है, और यह स्थानीय प्रशासन या मुख्यमंत्री के निर्णय पर निर्भर करती है.

जैसे कि हाल ही में केदारनाथ हेलीकॉप्टर क्रैश में मृतकों के परिजनों को सरकारी मदद मिलने की संभावना है, ठीक वैसे ही एयर इंडिया विमान हादसे में भी सरकारी और निजी दोनों तरह के मुआवज़े की घोषणा की गई है.

 जिन यात्रियों का अलग बीमा है, उन्हें भी लाभ

कुछ यात्री यात्रा से पहले अपना व्यक्तिगत यात्रा बीमा करवाते हैं. ऐसे मामलों में उन्हें (या उनके परिवारों को) एयरलाइंस या हेलीकॉप्टर कंपनी से मिलने वाले मुआवजे के अलावा, बीमा कंपनी से अलग से क्लेम करने का अधिकार होता है. यह बीमा राशि पॉलिसी के मुताबिक अलग-अलग हो सकती है.

जान बचाना संभव नहीं तो सहायता ज़रूरी

हेलीकॉप्टर या विमान हादसे जैसे दुखद मामलों में जान तो वापस नहीं लाई जा सकती, लेकिन सरकार और कंपनियों की जिम्मेदारी बनती है कि वो पीड़ित परिवारों को आर्थिक मदद दें. DGCA के कड़े नियम और बीमा पॉलिसी इस बात की गारंटी देते हैं कि हर यात्री को सुरक्षा कवच मिला हुआ है.

परिवार के लिए किसी अपने को खोना सबसे बड़ा दुख होता है, लेकिन अगर उन्हें समय पर आर्थिक सहायता मिले, तो भविष्य की ज़रूरतों में थोड़ी राहत मिल सकती है यही वजह है कि इस तरह की योजनाएं और मुआवजा प्रणाली बहुत अहम हैं. 

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