अहोबिलम मंदिर: एक नहीं, नौ अलग-अलग रूपों में भक्तों को दर्शन देते हैं भगवान नरसिंह! जानें पौराणिक महत्व
भगवान विष्णु के ही अवतार भगवान नरसिंह को शत्रुओं पर विजय पाने का प्रतीक माना जाता है. मान्यता है कि जो भी भक्त नरसिंह देव की पूजा करता है उसे भय से मुक्ति मिलती है और उसके शत्रुओं का भी नाश होता है. ऐसे में अगर आप भी भगवान नरसिंह को मानते हैं तो ये आर्टिकल आपके लिए जरूरी होने वाला है. क्योंकि इसमें नरसिंह देव के उन मंदिरों के बारे में बात की गई है जहां वो हिरण्यकश्यप को मारने के लिए खंभे से प्रकट हुए थे. पूरी जानकारी के लिए आगे पढ़ें…
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भगवान विष्णु के अवतार नरसिंह को शक्ति और शत्रुओं पर विजय का प्रतीक माना जाता है. कहा जाता है कि नरसिंह भगवान के दर्शन करने से भक्त भयमुक्त होता है और शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि हिरण्यकश्यप को मारने के लिए भगवान नरसिंह जिस खंभे को फाड़कर प्रकट हुए थे, उसके अवशेष आज भी इस चमत्कारी मंदिर में मौजूद हैं? हम बात कर रहे हैं अहोबिलम मंदिर की. चलिए इसके बारे में आपको विस्तार से बताते हैं…
अहोबिलम मंदिर कहां स्थित है?
अहोबिलम मंदिर आंध्र प्रदेश के कुरनूल जिले के पास अल्लागड्डा मंडल के नल्लामाला पहाड़ी जंगलों में बसा है. मंदिर ऊंची पहाड़ी पर बना है और ऐसे में भक्तों को मंदिर तक पहुंचने के लिए दुर्गम रास्ते से होकर गुजरना पड़ता है. मान्यता है कि भगवान इस स्थान पर उग्र नरसिंह रूप में प्रकट हुए थे, जो नरसिंह का सबसे भयंकर रूप है. इस मंदिर की खास बात ये है कि यहां भगवान नरसिंह के नौ रूपों की पूजा होती है. पूरे विश्व में ये पहला मंदिर है, जहां नरसिंह भगवान के नौ रूपों का वर्णन किया गया है. ये सभी नौ मंदिर 5 किलोमीटर की परिधि में बने हैं और भक्तों को यहां आकर नौ मंदिरों के दर्शन कर परिक्रमा भी लगानी होती है.
भगवान नरसिंह का कौन-सा मंदिर है बेहद पुराना?
मंदिर की वास्तुकला बहुत प्राचीन है और नौ मंदिरों में से कुछ मंदिर गुफाओं के अंदर बने हैं, जो सुख और शांति प्रदान करते हैं. निचले अहोबिलम (पहाड़ पर बनी गुफा) में दो मंदिर और ऊपरी अहोबिलम में चार मंदिर हैं. दो अन्य मंदिर घने जंगल के अंदर हैं और एक बीच में है. इन नौ मंदिरों में से छत्रवटा नरसिंह स्वामी का सबसे प्राचीन मंदिर है, जिन्हें नरसिंह के सभी नौ देवताओं में सबसे बड़े देवता के रूप में पूजा जाता है.
मंदिर में मौजूद है नरसिंह देव की विशेष प्रतिमा!
इस मंदिर में भगवान नरसिंह की आठ भुजाओं वाली मूर्ति है जो हिरण्यकश्यप के वध के दृश्य को दर्शाती है. मंदिर में ही एक पुराने पत्थर के अवशेष हैं, जिसे उस खंभे से जोड़ा जाता है, जहां से भगवान प्रकट हुए थे. मंदिर में एक गाय भी आती है, जो भक्तों के लिए आस्था का प्रतीक है. भक्तों के मुताबिक गाय रोजाना एक निश्चित समय पर मंदिर में आती है और मंदिर में मौजूद पुजारी गाय की पूजा करते हैं और खाने के लिए प्रसाद भी देते हैं.
मंदिर में एक तय समय पर रोजाना आती है एक गाय!
माना जाता है कि गाय में 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास होता है और ये गाय भगवान नरसिंह की आस्था का प्रतीक है. नौ मंदिरों में नरसिंह भगवान भार्गव नरसिंह स्वामी, योगानंद नरसिंह स्वामी, छत्रवटा नरसिंह स्वामी, अहोबिला नरसिंह स्वामी, क्रोडकरा (वराह) नरसिंह स्वामी, करंज नरसिंह स्वामी, मालोला नरसिंह स्वामी, ज्वाला नरसिंह स्वामी और पावना नरसिंह स्वामी के रूपों में विराजमान हैं. सभी नौ रूप अलग-अलग वंशों का प्रतिनिधित्व करते हैं.
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