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Sukhoi को मिला भगवान जन्नाथ का आशीर्वाद, 48 साल बाद हुआ बदलाव!

कोलकाता में भी बड़े धूम-धाम से रथयात्रा का पर्व मनाया जाता है. लेकिन कोलकाता के इस्कॉन में रथ बनाया जाना शुरु हो चुका है लेकिन इस बार के यहां के रथ में कुछ अलग और कुछ ख़ास होने वाला है. कोलकाता इस्कॉन के भगवान जगन्नाथ रथयात्रा के रथ के पहियों को 48 साल बाद बदला गया है.

Created By: NMF News
03 Jun, 2025
( Updated: 03 Jun, 2025
05:39 PM )
Sukhoi को मिला भगवान जन्नाथ का आशीर्वाद, 48 साल बाद हुआ बदलाव!

हर वर्ष जब रथयात्रा का पर्व आता है, तो न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया के कोने-कोने में श्रद्धा, भक्ति और उल्लास की लहर दौड़ जाती है. रथयात्रा सिर्फ एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि यह एक सांस्कृतिक उत्सव है जो समय, भाषा और भौगोलिक सीमाओं से परे जाकर करोड़ों लोगों को एक साथ जोड़ता है. इस उत्सव की जड़ें भारत के ओडिशा राज्य के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर में हैं, जहाँ भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को विशाल रथों में बैठाकर नगर भ्रमण कराया जाता है. यह यात्रा दर्शाती है कि भगवान अपने भक्तों के बीच स्वयं आते हैं, उनसे मिलने, उनके दुख-सुख में सहभागी बनने.

आज रथयात्रा की महत्ता केवल धार्मिक नहीं रही, यह अब वैश्विक सांस्कृतिक चेतना का प्रतीक बन चुकी है. अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीका जैसे देशों में भी रथयात्राएं निकाली जाती हैं, जहाँ हजारों लोग बिना किसी धार्मिक भेदभाव के इसमें भाग लेते हैं. यह आयोजन मानवता, एकता और अध्यात्म की भाषा बोलता है.

रथयात्रा हमें यह सिखाती है कि सच्ची भक्ति सीमाओं की मोहताज नहीं होती. यह यात्रा हमें जोड़ती है भगवान से, प्रकृति से और सबसे बढ़कर, एक-दूसरे से. ऐसे में कोलकाता में भी बड़े धूमधाम से रथयात्रा मनाया जाता है. लेकिन कोलकाता के इस्कॉन में रथ बनाया जाना शुरू हो चुका है लेकिन इस बार यहां के रथ में कुछ अलग और कुछ ख़ास होने वाला है. कोलकाता इस्कॉन के भगवान जगन्नाथ रथयात्रा के रथ के पहियों को 48 साल बाद बदला गया है. खास बात ये है कि इस बार रथ में रूसी सुखोई जेट के टायर लगाए जा रहे हैं. बता दें कि फाइटर जेट की टेकऑफ स्पीड 280 किमी/घंटा तक होती है. हालांकि, रथ 1.4 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चलेगा.

बता दें कि जगन्नाथ रथयात्रा हर साल आषाढ़ माह में शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि से शुरू होती है और शुक्ल पक्ष के 11वें दिन जगन्नाथ जी की वापसी के साथ संपन्न होती है. इस बार रथयात्रा की शुरुआत 27 जून से होगी. यह 8 दिन तक चलेगी. 5 जुलाई को इसका समापन होगा. रथयात्रा को एकमात्र ऐसा पर्व माना गया है जब भगवान स्वयं मंदिर से बाहर निकलते हैं और अपने भक्तों को दर्शन देते हैं.

इस्कॉन कोलकाता ने बयान जारी करते हुए बताया कि पिछले कई सालों से रथ को चलाने में समस्या आ रही थी. आयोजक 15 सालों से नए टायर की तलाश में थे. बोइंग विमान के पुराने टायरों का इस्तेमाल किया जा रहा था, लेकिन अब वे बाजार में मिलने मुश्किल हो रहे हैं. इसके बाद आयोजकों ने सुखोई जेट के टायरों को रथ में लगाने का फैसला किया, क्योंकि इसका व्यास (डायमीटर) बोइंग के टायरों से मिलता-जुलता है. मैनेजमेंट ने कंपनी से सुखोई के 4 टायर खरीदे हैं. टायरों को इन दिनों रथ में फिट किया जा रहा है.

वहीं इस्कॉन कोलकाता के प्रवक्ता राधारमण दास ने बताया कि उन्होंने सुखोई टायर बनाने वाली कंपनी से संपर्क किया. टायरों का कोटेशन मांगा, तो कंपनी हैरान रह गई कि आखिर कोई फाइटर जेट के टायर क्यों मांग रहा है. इसके बाद आयोजकों ने कंपनी को पूरी बात समझाई. कंपनी के लोगों को रथ दिखाने के लिए कोलकाता बुलाया गया. तब जाकर कंपनी से चार टायर देने की सहमति बनी.

बता दें कि कोलकाता में इस्कॉन 1972 से भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा का आयोजन कर रहा है. रथयात्रा जैसे प्राचीन वैष्णव उत्सव में हजारों श्रद्धालु सड़कों पर उतरकर रथ खींचते हैं. रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के रथ शहर की सड़कों से गुजरते हैं.

रथयात्रा की कहानी

रथयात्रा की कहानी भगवान जगन्नाथ के रूप में श्रीकृष्ण से जुड़ी हुई है. यह पर्व विशेष रूप से ओडिशा पुरी में मनाया जाता है, जहाँ भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ भव्य रथों पर सवार होकर अपनी मौसी के घर यानी गुंडिचा मंदिर की ओर निकलते हैं. यह एक नौ दिनों की यात्रा होती है, जिसके बाद भगवान वापसी यात्रा के द्वारा अपने मुख्य मंदिर लौटते हैं.

कहा जाता है कि द्वारका लीला के समापन के बाद श्रीकृष्ण ने देह त्याग की और फिर पुरी में भगवान जगन्नाथ के रूप में प्रकट हुए. एक बार माता सुभद्रा ने श्रीकृष्ण और बलराम से वृंदावन की लीलाओं के बारे में जानने की इच्छा जताई. जब वे दोनों भाई उन लीलाओं में तल्लीन होकर बातें कर रहे थे, तो सुभद्रा बीच में खड़ी होकर उन्हें सुन रही थीं.

भगवान नारद ने यह दृश्य देखा और इसे सदैव के लिए मूर्त रूप देने की प्रार्थना की. तब भगवान ने जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के रूप में अलौकिक विग्रहों को जन्म दिया जो आज भी पुरी मंदिर में विद्यमान हैं. इनकी सबसे खास बात है कि ये मूर्तियाँ अधूरी प्रतीत होती हैं, जिनमें हाथ-पाँव स्पष्ट नहीं होते, लेकिन यह अधूरापन ही इनकी दिव्यता का प्रतीक है.

तीनों रथों के बारे में जानें

भगवान जगन्नाथ का रथ
नाम: नन्दीघोष रथ
रंग: पीला और लाल
पहिए: 16
ध्वज: गरुड़ध्वज
रथ की ऊंचाई: लगभग 45 फीट

देवी सुभद्रा का रथ
नाम: दर्पदलन रथ
रंग: काला और लाल
पहिए: 14
ध्वज: पद्मध्वज

भगवान बलभद्र का रथ
नाम: तालध्वज रथ
रंग: हरा और लाल
पहिए: 14
ध्वज: तालध्वज

रथयात्रा का उद्देश्य यह दिखाना है कि भगवान स्वयं भक्तों के द्वार आते हैं, ताकि हर वर्ग, हर जाति और हर व्यक्ति उन्हें देख सके और उनका आशीर्वाद पा सके. पुरी की रथयात्रा में भगवान का रथ खींचना सबसे बड़ा पुण्य माना जाता है.

रथयात्रा अब सिर्फ भारत तक सीमित नहीं रही. इसे आज दुनिया के कई हिस्सों में मनाया जाता है जैसे लंदन, न्यूयॉर्क, मॉरीशस, मेलबर्न और जोहान्सबर्ग, जहाँ इस्कॉन जैसे संगठनों ने इसे वैश्विक आध्यात्मिक आंदोलन में बदल दिया है.

 

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