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आखिर कितने खास होते हैं जगन्नाथ रथ यात्रा के घोड़े, इनके डर से कैसे कांपती हैं असुरी शक्तियां? क्या है देश के सबसे बड़े कार्यक्रम का महत्व?

जगन्नाथ रथ यात्रा को घोड़ों के बजाय हाथों से क्यों खींचा जाता है? यह सवाल हर किसी के मन में चल रहा है, लेकिन बेहद कम लोग ही जानते हैं कि रथों को खींचने के लिए घोड़े भी होते हैं, लेकिन यह घोड़े केवल प्रतीकात्मक होते हैं. हालांकि इनके बिना रथयात्रा का आगे बढ़ना संभव भी नहीं. क्या है जगन्नाथ रथ यात्रा के घोड़ों की शक्तियों की कहानी? जानिए

01 Jul, 2025
( Updated: 02 Jul, 2025
03:09 AM )
आखिर कितने खास होते हैं जगन्नाथ रथ यात्रा के घोड़े, इनके डर से कैसे कांपती हैं असुरी शक्तियां? क्या है देश के सबसे बड़े कार्यक्रम का महत्व?

ओडिशा के पुरी शहर में ढोल-नगाड़ों की गूंज के बीच हर वर्ष भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकाली जाती है. इस रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ के साथ उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा रथों पर सवार होकर भक्तों से मिलने नगर भ्रमण पर निकलते हैं. इस रथ यात्रा को देखने के लिए सिर्फ धरती ही नहीं बल्कि आसमान भी रुक जाता है. जगन्नाथ रथ यात्रा एक ऐसा उत्सव है, जहां लकड़ी के रथ नहीं चलते बल्कि भगवान खुद अपने भक्तों से मिलने निकलते हैं. इन रथों को घोड़े नहीं भक्त खींचते हैं. रथों को खींचने के लिए ओडिशा ही नहीं बल्कि पूरे देश और विदेश से लाखों की संख्या में भक्त पुरी में इक्कठा होते हैं, लेकिन भक्तों के मन में यात्रा से जुड़ा एक सवाल यह भी रहता है कि इन रथों को घोड़ों की बजाय हाथों से क्यों खींचा जाता है? दरअसल, रथों को खींचने के लिए घोड़े भी होते हैं, लेकिन यह घोड़े केवल प्रतीकात्मक रूप से भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के रथ से जुड़े रहते हैं. 

भगवान जगन्नाथ के रथ और उनके घोड़ों का धार्मिक महत्व 

बता दें कि भगवान जगन्नाथ के रथ को नंदीघोष या गरुड़ध्वज कहा जाता है. इस रथ में 4 प्रतीकात्मक घोड़े लगे रहते हैं. भगवान जगन्नाथ के रथ में लगे चारों घोड़े सफेद रंग के होते हैं. इन घोड़ों के नाम- शंख, बालाहक, श्वेत और हरिदाश्व है. शंख भगवान विष्णु का प्रतीक है. जो पवित्रता, आध्यात्मिक, जागृति का भी प्रतीक है. यह भक्तों को भगवान की ओर आकर्षित करता है. बालाहक घोड़ा जो शक्ति और गति का प्रतीक है. यह जीवन में सकारात्मक दिशा और प्रगति को दर्शाता है. श्वेत घोड़ा शुद्धता और सात्विकता का प्रतीक है. यह भक्तों को शुद्ध मन से भक्ति में लीन होने की प्रेरणा देता है. वहीं हरिदाश्व घोड़ा हरि (विष्णु) का सेवक है. यह भक्ति और समर्पण का प्रतीक है. इसके अलावा यह भक्तों को भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण की सीख देता है. यह घोड़े भगवान जगन्नाथ की सर्वव्यापी शक्ति और उनके भक्तों के प्रति प्रेम को दर्शाते हैं. इनका सफेद रंग शांति और आध्यात्मिकता का प्रतीक है. 

बलभद्र के रथ और उनके घोड़ों का धार्मिक महत्व 

बलभद्र के रथ को तालध्वज कहा जाता है. इसमें 4 प्रतीकात्मक घोड़े लगे रहते हैं. इन घोड़ों के नाम- तीव्र, घोरा, दीर्घशर्मा और स्वर्णनाह है. सभी घोड़े काले रंग के होते हैं. इसमें तीव्र नाम का अर्थ है तीव्रता और गति का प्रतीक, जो बलभद्र की शक्ति और युद्ध कौशल को दर्शाता है. यह जीवन में कठिनाइयों पर विजय पाने की प्रेरणा भी देता है. घोरा नाम का घोड़ा साहस का प्रतीक है. यह भक्तों को नकारात्मक शक्तियों का सामना करने की हिम्मत देता है. दीर्घशर्मा दीर्घकालिक परिश्रम और धैर्य का प्रतीक है. यह जीवन में स्थिरता और दृढ़ता की सीख देता है. स्वर्णनाह घोड़ा समृद्धि और शक्ति का प्रतीक है. जो बलभद्र के रक्षक स्वरूप को दर्शाता है. इसके अलावा बलभद्र के घोड़े उनकी रक्षक और योद्धा प्रकृति को दर्शाते हैं. काला रंग शक्ति, रहस्य और तामसिक ऊर्जा का प्रतीक है. 

सुभद्रा के रथ और उनके घोड़ों का  धार्मिक महत्व

भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा के रथ को देवदलन कहा जाता है. इनके रथ में भी चार घोड़े लगे रहते हैं. इन घोड़ों का रंग लाल होता है. घोड़ों के नाम रोचिक, माचिक, संनाद, रथप्रभु है. रोचिक घोड़ा आकर्षण और सौंदर्य का प्रतीक है, जो सुभद्रा के प्रेम और करुणा के स्वरूप को दर्शाता है. माचिस घोड़ा यह गति और चंचलता का प्रतीक है, जो जीवन में उत्साह और ऊर्जा को दर्शाता है. सनांद ध्वनि और संगीत का प्रतीक है, जो सुभद्रा के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व को दर्शाता है. रथ प्रभु घोड़ा रथ का स्वामी है, जो सुभद्रा के रथ को नियंत्रित करता है. यह भक्तों को सही मार्ग दिखाने का प्रतीक है. सुभद्रा के घोड़े प्रेम, करुणा और मातृत्व का प्रतीक हैं. इनका लाल रंग शक्ति, प्रेम और भक्ति की ऊर्जा को दर्शाता है. 

घोड़े से नहीं हाथों से खींचा जाता है यह रथ

लकड़ी से बने यह रथ हर साल बनाए जाते हैं, जो जीवन में नवीकरण और पवित्रता की अवधारणा को दर्शाते हैं. भक्तों की श्रद्धा के स्वरूप रथ को घोड़े से नहीं हाथों से खींचा जाता है. भगवान की शक्ति, सम्मान, आस्था, प्रेम भावना, भक्तों की श्रद्धा के प्रतीक यह घोड़े सांकेतिक रूप से रथों से जुड़े रहते हैं. 

9 दिनों तक चलती है भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा

भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा 9 दिनों तक चलती है. इस दौरान भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के रथ गुंडिचा मंदिर तक जाते हैं, जहां उनकी मौसी का घर है. वहां कुछ दिन आराम के बाद वापस श्रीराम मंदिर लौट आते हैं. वापसी की यात्रा को बाहुड़ा यात्रा कहा जाता है. इस यात्रा में देश विदेश से लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं. 

जगद्गुरु रामभद्राचार्य भी पहुंचे इस रथ यात्रा में

इस विश्व प्रसिद्ध यात्रा में जगद्गुरु रामभद्राचार्य भी पहुंचे थे. इस दौरान उन्होंने कहा कि जगन्नाथ साक्षात पतित पावन हैं और भक्तों के लिए ही प्रभु जगन्नाथ की यात्रा निकलती है, ताकि उनका आशीर्वाद सबको मिल सके. वहीं पुरी से BJP सांसद संबित पात्रा भी इस ऐतिहासिक यात्रा का हिस्सा बने. 

भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा में राजा लगाते हैं झाड़ू 

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भगवान जगन्नाथ कि इस रथ यात्रा में राजा झाड़ू लगाते हैं और रंक ईश्वर के रथ को खींचता है. पुरी की रथ यात्रा की पूरी कहानी यही सिखाती है कि यहां ना कोई राजा होता है ना ही कोई भिखारी. यहां हर हाथ, हर आंख, हर आंसू बस एक ही नाम पुकारता है जय जगन्नाथ...

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