GST विवाद में फंसी टाटा स्टील, जानें क्यों भेजा गया 1007 करोड़ रुपये का नोटिस
टाटा स्टील जैसी प्रतिष्ठित कंपनी पर इस तरह का गंभीर आरोप जरूर चौंकाने वाला है, लेकिन कंपनी ने स्थिति को नियंत्रित बताते हुए भरोसा दिलाया है कि यह सिर्फ एक प्रक्रियात्मक मामला है और इसे नियमानुसार सुलझा लिया जाएगा. अब देखना होगा कि कंपनी इस नोटिस का कैसे जवाब देती है और इसका आगे क्या असर पड़ता है.

GST Notice To Tata Steel: देश की प्रमुख इस्पात उत्पादक कंपनी टाटा स्टील इन दिनों सुर्खियों में है. कारण है रांची स्थित सेंट्रल टैक्स कमिश्नर (ऑडिट) कार्यालय की ओर से भेजा गया 1007 करोड़ रुपये से अधिक का जीएसटी नोटिस. यह नोटिस कंपनी को 27 जून 2025 को जारी किया गया, जिसकी जानकारी टाटा स्टील ने खुद रविवार को स्टॉक एक्सचेंज फाइलिंग के जरिए सार्वजनिक की.
नोटिस का कारण
टैक्स विभाग का आरोप है कि टाटा स्टील ने वित्तीय वर्ष 2018-19 से लेकर 2022-23 के बीच गलत तरीके से इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) का दावा किया है. विभाग के अनुसार, कंपनी ने कुल मिलाकर 1007.41 करोड़ रुपये का आईटीसी लिया, जो कथित रूप से नियमों के अनुरूप नहीं था. इस आधार पर विभाग ने कंपनी को नोटिस भेजा है जिसमें पूछा गया है कि क्यों न उनसे यह राशि वसूली जाए. यह मामला सेंट्रल गुड्स एंड सर्विस टैक्स एक्ट 2017 (CGST), स्टेट GST एक्ट और इंटीग्रेटेड GST एक्ट 2017 (IGST) की धारा 20 के उल्लंघन से जुड़ा बताया गया है.
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कंपनी की सफाई
टाटा स्टील ने इस पूरे मामले पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि वह इस नोटिस का उचित प्लेटफॉर्म पर जवाब देगी. कंपनी ने यह भी स्पष्ट किया है कि यह विवाद उनके ऑपरेशनल कार्यों या वित्तीय स्थिति पर कोई असर नहीं डालेगा. इसके साथ ही टाटा स्टील का यह भी कहना है कि उसने 514.19 करोड़ रुपये पहले ही जीएसटी के तौर पर जमा कर दिए हैं, जो कि उनके अनुसार सामान्य व्यापारिक लेनदेन का ही हिस्सा था.
शेयर बाजार पर संभावित असर
हालांकि कंपनी ने स्पष्ट किया है कि यह मामला उनकी वित्तीय स्थिति को प्रभावित नहीं करेगा, लेकिन फिर भी सोमवार के कारोबारी दिन, यानी हफ्ते की शुरुआत में, इसका असर टाटा स्टील के शेयरों पर देखने को मिल सकता है. ऐसे नोटिस आमतौर पर निवेशकों की धारणा पर असर डालते हैं और शेयर बाजार में अनिश्चितता का कारण बन सकते हैं.
जीएसटी में इनपुट टैक्स क्रेडिट का अर्थ और विवाद की जड़
इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) का मूल उद्देश्य डबल टैक्सेशन को रोकना होता है. जब कोई कंपनी कच्चा माल या सेवाएं खरीदती है, तो उस पर टैक्स चुकाती है. बाद में जब वह उस माल या सेवा को बेचती है, तो फिर से टैक्स लगता है. ऐसे में कंपनी को यह अधिकार होता है कि वह पहले दिए गए टैक्स को अंतिम टैक्स से समायोजित कर सके. लेकिन टैक्स अधिकारियों का कहना है कि टाटा स्टील ने जो आईटीसी क्लेम किया है, वह वास्तव में पात्र नहीं था और नियमों का उल्लंघन करता है. यही इस विवाद की मुख्य वजह है.
आगे क्या होगा?
टाटा स्टील को इस नोटिस के जवाब में 30 दिनों के भीतर अपनी स्थिति स्पष्ट करनी होगी. यदि टैक्स विभाग को संतोषजनक जवाब नहीं मिलता है, तो वह 1007 करोड़ रुपये की रिकवरी की प्रक्रिया शुरू कर सकता है. ऐसे मामलों में आमतौर पर कानूनी प्रक्रिया भी शुरू हो सकती है, जिसमें अपील, समीक्षा और न्यायिक हस्तक्षेप तक की संभावना होती है.
टाटा स्टील जैसी प्रतिष्ठित कंपनी पर इस तरह का गंभीर आरोप जरूर चौंकाने वाला है, लेकिन कंपनी ने स्थिति को नियंत्रित बताते हुए भरोसा दिलाया है कि यह सिर्फ एक प्रक्रियात्मक मामला है और इसे नियमानुसार सुलझा लिया जाएगा. अब देखना होगा कि कंपनी इस नोटिस का कैसे जवाब देती है और इसका आगे क्या असर पड़ता है.