क्यों नहीं करते अमेरिका और रूस आपस में व्यापार? वजह जानकर रह जाएंगे हैरान
अमेरिका और रूस के बीच दशकों पुरानी दुश्मनी एक बार फिर सामने है, और इसका सबसे बड़ा असर पड़ा है दोनों देशों के व्यापारिक रिश्तों पर। इस ब्लॉग में हमने विस्तार से बताया है कि अमेरिका ने रूस पर प्रतिबंध क्यों लगाए, इन प्रतिबंधों का असर रूस की अर्थव्यवस्था पर कैसे पड़ा, और अब क्यों दोनों देश एक-दूसरे से व्यापार नहीं कर रहे।

दुनिया की दो सबसे बड़ी महाशक्तियाँ अमेरिका और रूस एक बार फिर आमने-सामने हैं। पर ये टकराव सिर्फ जमीनी युद्ध या राजनीतिक बयानबाज़ी तक सीमित नहीं है, ये एक लंबा और जटिल व्यापार युद्ध भी है।
2024 और 2025 में जिस तरह से वैश्विक बाजारों में उथल-पुथल मची है, उसका बड़ा कारण अमेरिका की प्रतिबंध नीति और रूस की जवाबी कार्रवाइयाँ हैं। इस पूरी कहानी की शुरुआत कोई नई नहीं, बल्कि दशकों पुरानी है। यह एक ऐसी कहानी है जिसमें दुश्मनी, रणनीति, गुटबाजी, व्यापार, और कूटनीति सबकुछ शामिल है। लेकिन सवाल उठता है अमेरिका ने रूस पर इतने प्रतिबंध क्यों लगाए? और क्या सच में दोनों देश एक-दूसरे से अब कोई व्यापार नहीं करते? आइए, इस गहरी और पेचीदा कहानी को समझते हैं आसान भाषा में।
इतिहास की नींव पर खड़ी ये जंग
अमेरिका और रूस (या सोवियत संघ, जैसा कि पहले कहा जाता था) के बीच की यह खटास कोई आज की नहीं है। इसकी जड़ें दूसरे विश्व युद्ध के बाद की शीत युद्ध (Cold War) की राजनीति में छुपी हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जब दुनिया दो ध्रुवों में बंटी एक तरफ अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोप के देश थे जो NATO गठबंधन का हिस्सा बने और दूसरी ओर था सोवियत संघ, जिसने वारसा समझौते के तहत पूर्वी यूरोप को जोड़ा। इस खींचतान ने ही शीत युद्ध को जन्म दिया, जिसमें हथियारों की होड़, अंतरिक्ष में प्रतिस्पर्धा और वैश्विक दखल ने दुनिया को अस्थिर बना दिया।
पुतिन का उदय और बिगड़ते रिश्ते
2000 में व्लादिमीर पुतिन के रूस का राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिका-रूस संबंधों में खटास और भी गहराती चली गई। पुतिन का रवैया आक्रामक था, उन्होंने रूस को फिर से 'महाशक्ति' बनाने का सपना दिखाया, जिसकी झलक 2014 में यूक्रेन के क्राइमिया क्षेत्र को कब्जा करने में मिली। अमेरिका और उसके सहयोगियों ने इसे अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन माना और रूस पर प्रतिबंधों की शुरुआत की।
ट्रंप की टैरिफ नीति और रूस की मुश्किलें
जब डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति बने, उन्होंने "America First" की नीति को अपनाया। टैरिफ्स (शुल्कों) और व्यापार प्रतिबंधों के जरिए उन्होंने चीन, भारत, यूरोप और रूस पर आर्थिक दबाव बनाना शुरू किया।
रूस, जो कि तेल, गैस और खनिज संसाधनों के निर्यात पर निर्भर था, इन प्रतिबंधों से सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ। अमेरिकी बैंकों ने रूस को फाइनेंसिंग से दूर कर दिया, और हाई-टेक उपकरणों की बिक्री पर भी रोक लगा दी गई।
यहां से रूस की अर्थव्यवस्था चरमराने लगी। हालांकि चीन और भारत जैसे देशों से रूस को कुछ राहत मिली, लेकिन अमेरिकी टेक्नोलॉजी और पूंजी के बिना वैश्विक प्रतिस्पर्धा में टिके रहना आसान नहीं था।
यूक्रेन युद्ध नया अध्याय, पुराने जख्म
फरवरी 2022 में जब रूस ने यूक्रेन पर फुल-स्केल हमला किया, तब अमेरिका ने इतिहास का सबसे बड़ा प्रतिबंध पैकेज रूस पर लागू किया। रूस के बैंकों को SWIFT सिस्टम से बाहर कर दिया गया। रूसी तेल और गैस पर अमेरिकी आयात बंद कर दिया गया। रक्षा, अंतरिक्ष और चिप टेक्नोलॉजी तक रूस की पहुंच रोक दी गई। रूसी अरबपतियों की संपत्तियों को फ्रीज कर दिया गया। इस प्रतिबंध के जवाब में रूस ने भी अमेरिका और यूरोपीय देशों को गैस की आपूर्ति सीमित कर दी, जिससे यूरोप में ऊर्जा संकट गहराने लगा।
यह कहना गलत होगा कि दोनों देशों के बीच कोई भी व्यापार नहीं हो रहा। अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि कार्यालय (USTR) के अनुसार, 2024 में भी अमेरिका और रूस के बीच लगभग $3.5 बिलियन का व्यापार हुआ। यह व्यापा उर्वरकों, परमाणु ईंधन, और कुछ विशेष धातुओं तक सीमित था। यानी जिन उत्पादों की अमेरिका को तत्काल आवश्यकता थी, उन्हें वह रूस से खरीद रहा था। परंतु अधिकतर उत्पादों और सेवाओं पर पूर्ण प्रतिबंध जारी है।
अमेरिका और रूस के बीच यह तनाव फिलहाल थमता नजर नहीं आता। रूस, चीन और उत्तर कोरिया के साथ मिलकर एक 'नया विश्व आदेश' खड़ा करने की कोशिश कर रहा है, वहीं अमेरिका अपने पारंपरिक सहयोगियों के साथ रूस को अलग-थलग करने की रणनीति में जुटा है। यानी इस टकराव में कूटनीति कम और रणनीतिक दांव ज्यादा नजर आते हैं। और जब तक यूक्रेन युद्ध या वैश्विक शक्ति संतुलन में कोई बड़ा परिवर्तन नहीं होता, तब तक अमेरिका-रूस संबंधों की ये दरार भरती नहीं दिख रही।
आज का दौर वैश्विक व्यापार और तकनीकी युग है, लेकिन अमेरिका और रूस जैसे देश अब भी पुराने राजनीतिक समीकरणों और शक्ति प्रदर्शन के तले व्यापारिक संबंधों की बलि चढ़ा रहे हैं। इस दुश्मनी ने सिर्फ इन दो देशों को ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व को महंगाई, आर्थिक अस्थिरता और असुरक्षा की ओर धकेल दिया है। सवाल ये नहीं कि दोनों एक-दूसरे से व्यापार क्यों नहीं करते, सवाल ये है कि दुनिया क्या इस टकराव की कीमत चुकाने को तैयार है?