शहबाज बोले 26 मौतें, सेना ने कहा 31! क्या पाकिस्तान आतंकियों की मौत को छुपा रहा है?
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और सेना द्वारा जारी किए गए अलग-अलग आंकड़ों ने इस शक को गहरा कर दिया है कि पाकिस्तान असली मृतकों की संख्या छुपा रहा है। रिपोर्ट्स बताती हैं कि मारे गए ज़्यादातर लोग आतंकी थे, लेकिन पाक मीडिया और सरकार इस सच्चाई को दबाने में जुटी है।

सच्चाई पर परदा डालना पाकिस्तान की पूरानी आदत रही है, और इस बार भी आदत से मजबूर पाकिस्तान अपने मौत के आंकड़ों पर परदा डालने की पूरी कोशिश में लगा है।
दरअसल 'ऑपरेशन सिंदूर' के तहत भारतीय सेना ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) और पंजाब प्रांत में आतंकी ठिकानों को निशाना बनाकर जबरदस्त कार्रवाई की। इस ऑपरेशन के बाद जो तस्वीरें सामने आईं, उन्होंने साफ कर दिया कि पाकिस्तान की ज़मीन पर पलने वाले आतंकी शिविरों को गहरी चोट पहुंची है। लेकिन इस पूरे घटनाक्रम के बाद अब सबसे बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि पाकिस्तान असली मौतों का आंकड़ा क्यों छुपा रहा है?
शहबाज शरीफ और सेना की गिनती में इतना अंतर?
जिस वक्त भारत ने PoK और पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में यह सर्जिकल ऑपरेशन अंजाम दिया, तभी से पाकिस्तान के अंदरूनी हालात बिगड़ते नजर आने लगे। ऑपरेशन के कुछ ही घंटों के भीतर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने मीडिया को बताया कि इस हमले में 26 लोग मारे गए हैं और 46 घायल हुए हैं। लेकिन यही कहानी महज पांच मिनट में बदल गई।
पाकिस्तानी सेना यानी DG ISPR (Director General, Inter-Services Public Relations) की प्रेस ब्रीफिंग में जब वही सवाल दोहराया गया, तो जवाब आया – “31 पाकिस्तानी नागरिक शहीद हुए हैं और 57 से ज्यादा घायल हैं।” सवाल उठता है कि क्या प्रधानमंत्री और सेना दोनों अलग-अलग देश चला रहे हैं? अगर नहीं, तो मौत के आकड़ा में इतनी अंतर कैसे?
आंकड़ों में उलझा सच या साजिश?
क्या पाकिस्तान वाकई में सच्चाई छिपा रहा है? अंतरराष्ट्रीय मीडिया की कई रिपोर्ट्स बताती हैं कि इन हमलों में मारे गए ज़्यादातर लोग आतंकवादी थे। ये आतंकी अलग-अलग कैंपों में छिपे हुए थे और भारतीय खुफिया एजेंसियों ने इनकी पुख्ता जानकारी जुटाकर हमला किया। लेकिन पाकिस्तान के अधिकारी और मीडिया इस कड़ी सच्चाई को स्वीकारने के बजाय मौतों का आंकड़ा तोड़-मरोड़ कर पेश कर रहे हैं। कहीं 8 लोगों की मौत की बात हो रही है, तो कहीं 26 और फिर कहीं 31। सवाल यह भी है कि अगर मारे गए सभी 'निर्दोष नागरिक' थे, तो उनके नाम, पते और पहचान क्यों नहीं बताई गई?
हमलों के बाद पाकिस्तान के कई शहर बहावलपुर, रावलकोट, मुजफ्फराबाद, कोटली और चकवाल में अफरा-तफरी मच गई। लोगों में इतनी दहशत थी कि वे अपने घरों को छोड़कर सुरक्षित स्थानों की ओर भागने लगे। इन इलाकों में स्कूल-कॉलेज बंद कर दिए गए। अस्पतालों में इमरजेंसी घोषित कर दी गई। रिपोर्ट्स के अनुसार, स्थानीय अस्पतालों में बुरी तरह घायल लोगों की लंबी कतारें देखी गईं। एंबुलेंस लगातार सड़कों पर दौड़ती नजर आईं, लेकिन सरकारी तौर पर किसी भी इलाके के हालात की असली तस्वीर सामने नहीं आई। पाकिस्तानी मीडिया में सेंसरशिप इतनी जबरदस्त है कि किसी चैनल पर मारे गए लोगों के चेहरों तक को नहीं दिखाया जा रहा है। जो तस्वीरें सोशल मीडिया के ज़रिये लीक हुईं, वे आतंक के कैंपों में मलबे और खून से सने कपड़ों को दिखाती हैं।
भारत पर दोषारोपण की पुरानी रणनीति
इतिहास गवाह है कि जब भी पाकिस्तान के अंदर आतंकवाद को लेकर सवाल उठे हैं, वहां की सरकार ने भारत पर उंगली उठाने की कोशिश की है। इस बार भी कुछ अलग नहीं हुआ। पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने इटली के गृह मंत्री माटेओ पियांटेडोसी से मुलाकात के दौरान बयान दिया कि “भारत ने दक्षिण एशिया की शांति को खतरे में डाल दिया है।”
उनका कहना था कि भारत की यह आक्रामक नीति पूरे क्षेत्र के लिए गंभीर परिणाम लाएगी। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या आतंकी संगठनों को संरक्षण देना और भारत विरोधी गतिविधियों को अंजाम देना शांति को बढ़ावा देने वाला कदम है?
‘ऑपरेशन सिंदूर’ की मारक योजना
भारत का ‘ऑपरेशन सिंदूर’ एक सुनियोजित और अत्यधिक गोपनीय अभियान था। खुफिया एजेंसियों ने PoK और पंजाब के आतंकी कैंपों की सटीक लोकेशन ट्रैक की थी। यह हमला सिर्फ आतंक के बुनियादी ढांचे को खत्म करने के लिए था, ना कि आम नागरिकों को नुकसान पहुंचाने के लिए। भारतीय अधिकारियों ने यह भी साफ किया कि सभी टारगेट उन जगहों पर थे जहां आतंकी ट्रेनिंग, हथियारों का स्टोरेज और घुसपैठ की योजना बन रही थी। लेकिन पाकिस्तान इस ऑपरेशन को भारत की 'आक्रामकता' कहकर पेश कर रहा है।
क्यों छुपा रहा है पाकिस्तान मौतों का सच?
इसका जवाब सीधा है दबाव। अंतरराष्ट्रीय दबाव से बचने के लिए, अपने नागरिकों में डर को नियंत्रण में रखने के लिए और सेना की 'नाकामी' को छुपाने के लिए। अगर पाकिस्तान असली आंकड़े सार्वजनिक करता है, तो कई बड़े राज़ उजागर हो जाएंगे मसलन, आतंकी शिविरों की असली संख्या, वहां की गतिविधियां और पाक सेना की मिलीभगत।
‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने यह सच्चाई फिर उजागर कर दी है। लेकिन पाकिस्तान अब वही पुराना खेल खेलने में जुट गया है, ताकि दुनिया को लगे कि भारत ने निर्दोषों पर हमला किया है, जबकि असलियत में मारे गए ज़्यादातर लोग आतंकी संगठन जैसे जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े थे।
शहबाज शरीफ और पाकिस्तानी सेना के एक-दूसरे से मेल न खाते बयानों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि पाकिस्तान न केवल आतंकवाद को पाल रहा है, बल्कि अब उसका बचाव करने के लिए झूठ का सहारा भी ले रहा है, ऐसे में सवाल अब सिर्फ आंकड़ों का नहीं है, सवाल है कि क्या पाकिस्तान अपने देश को आतंक से मुक्त करना चाहता है या फिर वह अब भी आतंक की ढाल बनकर दुनिया को धोखा देता रहेगा?