जातीय जनगणना: सामाजिक न्याय और नीति निर्माण की नई दिशा... लेकिन चुनौतियां भी कम नहीं
जातीय जनगणना न केवल विभिन्न जातियों की जनसंख्या का आंकड़ा प्रकट करती है, बल्कि सामाजिक असमानता और संसाधनों के न्यायपूर्ण वितरण के लिए भी एक स्तंभ तैयार करती है. हाल ही में बिहार सरकार द्वारा 2023 में जाति आधारित सर्वेक्षण और 2025 में केंद्र सरकार द्वारा जातीय जनगणना को मुख्य जनगणना में शामिल करने का निर्णय ने इस विषय को बहुत महत्वपूर्ण बना दिया है.
Follow Us:
यह भी पढ़ें
भारत विविधताओं से भरा हुआ देश है, जहाँ तमाम अलग जातियों के लोग निवास करते हैं, और जाति में असमानताएँ भी मौजूद हैं. ऐसी स्थिति में जातिगत आंकड़ों का होना महत्वपूर्ण हो जाता है, ताकि हम संसाधनों का न्यायपूर्ण तथा समान वितरण कर सकें.
जातिगत जनगणना के लाभ:-
1. सामाजिक समानता: केंद्र सरकार का 2025 में जातीय जनगणना को मुख्य जनगणना में शामिल करना ऐतिहासिक कदम माना जाएगा. यह विभिन्न जातियों के बीच सामाजिक और आर्थिक असमानताओं को कम करने में मदद करेगी.2. संसाधन आवंटन: सटीक जनसंख्या डेटा के आधार पर संसाधनों का उचित वितरण करने में तथा नीतियाँ बनाने में मदद मिलेगी. उदाहरण के तौर पर बिहार जाति जनगणना 2023.
3. नीति निर्माण में पारदर्शिता: यह एक प्रामाणिक गणना होगी जो वैज्ञानिक प्रमाणों पर आधारित होगी. यह राजनीतिक दलों को केवल वोट बैंक की राजनीति करने के बजाय डेटा आधारित नीतियाँ बनाने के लिए प्रेरित करेगी.
जातीय जनगणना की चुनौतियां
1. यह प्रक्रिया बहुत खर्चीली है. बिहार में 2023 की जातीय जनगणना के लिए लगभग 5 अरब रुपये खर्च किए गए.2. डेटा की गोपनीयता और दुरुपयोग एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन सकता है.
3. जातियों में आपसी तनाव पैदा होने की संभावना भी बनती है.
सभी पक्षों को ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि जातीय जनगणना सामाजिक न्याय, समानता और नीति निर्माण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकती है, लेकिन सामाजिक तनाव और डेटा गोपनीयता का समाधान करना बेहद आवश्यक है.
टिप्पणियाँ 0
कृपया Google से लॉग इन करें टिप्पणी पोस्ट करने के लिए
Google से लॉग इन करें